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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, March 21, 2010

पर बनारस कभी न बदला


धरती बदली,सागर बदला
नारी बदली,नर भी बदला
मलयांचल की पवने बदली
हिंद महासागर भी बदला
बदल गयी है सभी हवाएं
बदल गई हैं सभी दिशाएं
बदल गया मानव स्वभाव भी
पे बनारस कभी न बदला
कभी न बदला-कभी न बदला
गलियां वैसी की वैसी हैं
नदियाँ वैसी की वैसी हैं
गंगा की लहरों की मचलन
अब भी वैसी की वैसी है
मणिकर्णिका का घाट वही है
सारनाथ का नाथ वही है
महादेव की बोल वही है
बाबा विश्वनाथ वही हैं
सोचे बदली-चाहत बदला
पर बनारस कभी न बदला
कभी न बदला-कभी न बदला
चौराहों पे साड़ वही है
बात-बात में रार वही है
घंटो की गुंजन भी वैसी
वरुण में भी बाढ़ वही है
वही लोग हैं वही दुकाने
वही राह हैं-वही मखाने
वही भंग का अद्भुत गोला
बम-बम केते वही दीवाने
शाशक बदला-शाशन बदला
पर बनारस कभी न बदला
कभी न बदला-कभी न बदला
-राहुल पंडित

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