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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, March 21, 2010

मजदूर


अस्थि-चरम में भेद नहीं,कर लिए फावड़ा बाध माथ.
उर लिए लालसा मधुर-मधुर,धरती सपूत चल दिए साथ.
तोडा पत्थर,तोडा पहाड़,गिरते मोती से सीकर बूँद.
पर लगन विजय को पाने की,पाने को प्रतिफल सहित सूद.
गर्मी की तपती धरती पर,थोड़े पैसे की चाहत में,
थोड़ी सुविधा सब लोगों को,थोड़े पैसे की लालच में,
कर रहे काम जी भर-भर के,धरती माँ के सच्चे सपूत,
अग्नि से आग बुझाते हैं,ये वीर पुत्र धरती सपूत.
-राहुल पंडित

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