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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Friday, June 28, 2013

ब्यंग : हमारे केजरीवाल जी तो जन्मजात धर्मनिरपेक्ष हैं !

मित्रोँ , आप सबको तो पता ही है कि हमारे केजरीवाल जी कोई मामूली इंसान नहीँ हैँ, वे धरती पर नेकी और धर्मनिरपेक्षता फैलाने के लिए साक्षात् खुदा द्वारा भेजे गए फरिश्ते हैँ . 
लेकिन धरती पर आने के बाद से उन्होँने अपने आपको बिल्कुल एक "आम-आदमी" की तरह पेश किया है , परंतु किसी भी हालत मेँ धर्मनिरपेक्षता से सौदा नहीँ किया.
आज आपको उनके बचपन का एक वाकया सुनाता हूँ , ये बात उन दिनोँ की है जब केजरीवाल जी एक नन्हेँ से प्रखर बुद्धि बालक थे और "दारुल-अल-इस्लामिया" नामक एक मदरसे मेँ तालीम ले रहे थे.
हुआ यूँ कि जब उनके पाँचवेँ दर्जे के सालाना पर्चे चल रहे थे तो भूगोल के पर्चे मेँ एक बड़ा ही अजीब सा सवाल था , "पृथ्वी की परिधि की लंबाई बताइए?" 
यह सवाल देखकर युगपुरुष जी की आँखेँ फटी की फटी रह गईँ, उन्हेँ किसी साजिश की बू आने लगी, वे सोच मेँ पड़ गए कि मदरसा कमिटी के चेयरमैन मौलाना मरदूद उल्लाह मदनी ने तो ये बताया था कि धर्मनिरपेक्ष ग्रन्थोँ के मुताबिक पृथ्वी चपटी है , तो फिर चपटी चीज की परिधि कैसे हो सकती है और ये भी बताया था उस ग्रन्थ मेँ लिखी प्रत्येक बात सार्वभौमिक सत्य है। -
फिर क्या था मित्रोँ , आदरणीय केजरीवाल जी ने वो नापाक सवाल ही छोड़ दिया , और सिर्फ इसी वजह से भूगोल के पर्चे मेँ उनके 100 मेँ से 99 अंक ही आए ,
मित्रोँ वो चाहते तो अन्य छात्रोँ के माफिक गलत उत्तर लिखकर 1 अतिरिक्त अंक प्राप्त कर सकते थे , लेकिन ये उनकी फितरत ही नहीँ कि महज एक अंक के लिए धर्मनिरपेक्षता से समझौता कर लेँ . -
हालांकि एक महीने बाद ही उन्होँने ये खुलासा कर दिया कि पेपर सेट करनेवाला आदमी संघी था और मदरसे जैसी पाक और धर्मनिरपेक्ष जगह को सांप्रदायिक बनाना चाहता था।
देखा मित्रोँ , हमारे केजरीवाल जी आज से नहीँ जन्म जन्मांतर से इन संघियोँ के निशाने पर रहे हैँ , लेकिन आजतक हार नहीँ मानी , आज भी वो नित-नए उत्साह के साथ सांप्रदायिकता के खिलाफ झंडा गाड़े हुए हैँ।
जय हो केजरीवाल जी की।

Saturday, June 15, 2013

मेरी डायरी से

कुछ दिन पहले मेरे आफिस में मेरे मित्र संजय जी, अशोक जी, नदीम भाई और अफरोज भाई बैठे थे । बात चल रही थी राजनीति की । नदीम भाई ने मुझसे सवाल किया कि इस देश की जनता के बारे में आप की क्या राय है ??मैंने दो पल सोंचने के बाद मुस्कुराते हुए कहा "इस देश की जनता इस देश के मुसलमान की तरह बेवकूफ है" । मेरा ये कहना था की नदीम भाई और अफरोज भाई मुझपर बिदक गएऔर आपत्ति करने लगे क्यूंकि मैंने एक तीर से दो शिकार कर दिए थे । जनता के साथ-साथ मुसलमानों को भी बेवकूफ कह दिया था । पर मैंने अपने शब्द वापस नहीं लिए औरदृढ़तापूर्वक अपनी बात पर डटा रहा । आखिर अफरोज भाई ने मुझसे पूछ ही लिया कि मैंने आखिर ऐसा क्यूँ कहा ।मैंने अफरोज भाई से पूछा कि : बाबर और औरंगजेब के बारे में आप की क्या राय है ?अफरोज: वो असली मर्द थे, उन्होंने इस्लाम को भारत में फैलाया । औरंगजेब निहायत ही ईमानदार शख्स था । और उन्होंने भारत में कई मस्जिद बनवाई ।मैं: पर बाबर और औरंगजेब ने मन्दिरों को तोड़ कर मस्जिदें बनवाई थी ।अफरोज: सिर्फ अल्लाह होता है और उसके सिवा कुछ नहीं होता । मूर्ती पूजा काफिर करते हैं । काफिरों को सही रास्ते पर लाने के लिए मस्जिदें बनवाई गई ।बाबर और औरंगजेब काबिल-ए -तारीफ थे ।मैं: पर उन्होंने ने गरीब जनता पर बहुत ज़ुल्म किये । कई हिन्दुओं को जबरन इस्लाम क़ुबूल करवाया । जिन्होंने ने विरोध किया, उनको क़त्ल कर दिया गया और उनकी माँ-बहन-बेटियों के साथ बलात्कार किये गए ।अफरोज: (गर्व के साथ) ये इस्लाम की शक्ति है । इस्लाम से ज्यादा ताकतवर खुछ भी नहीं । महान औरंगजेब ने हिन्दुओं को उनकी औकात बता दी थी ।मैं: पर ये तो अत्याचार था ।अफरोज: (घमंड और थोड़े गुस्से से) वो सब काफिर थे , वो इसी लायक थे ।मैं: नहीं भाई ... वो काफिर नहीं थे । वो सब जो मार दिए गए थे , वो आप के ही दादा-परदादा थे और जिनके साथ बलात्कार हुआ, वो आपकी दादी-परदादी थी । उन्ही से जो संताने पैदा हुई, वो आज के मुसलमान हैं । मुझे ताजुब्ब हैकी आपको अपने घर की माँ-बहनों के साथ बलात्कार करने वाले असली मर्द नज़र आते हैं । कैसे इंसान हैं आप ??अफरोज: आप मनगढ़ंत और फ़ालतू की बात कर रहे हो ।मैं: अच्छा, अगर ऐसा नहीं है तो तो क्या आप असली तुर्क है ? क्या आप ये कहना चाहते हैं की आप के परदादा तुर्क थे और वो घोड़े पर बैठ कर बाबर के साथ भारत आये थे ?अफरोज: अमां, ऐसा नहीं है ।मैं: अरे भाई, तो क्या आप आसमान से आये हो । कम से कम आप ही बताओ कि आप के खानदान की उत्पत्ति कैसे हुई ??अफरोज : (आश्चर्यचकित एवं खामोश)!!!मैं: जिस प्रकार आपको आपकी माँ-बहन के साथ बलात्कार करने वाला अलसी मर्द नज़र आता है, और आप उसको protect कर रहे हैं, उसी प्रकार इस देश की जनता को वो नेता पसंद आता है जो उसका शोषण और बलात्कार करता है । जनता का हित करने वाला नेता तो जनता को चूतिया नज़र आता है । दरअसल,मूर्ख जनता अपना भला करने वाले नेता के बारे में ये सोंचती है की "ज़रूर इनका कोई फायदा होगा" । इसीलिए मैंने कहा की इस देश की जनता इस देश के मुसलमान की तरह बेवकूफ है ।अफरोज : (आश्चर्यचकित और दो पल मौन रहने के बाद) चलें भाई, आज बहुत काम है.(कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी आज के बाबर औरऔरंगजेब हैं । क्या अब समझ में आया की अल्पसंख्यक इनको क्यूं पसंद करते हैं ?)

Friday, June 14, 2013

हैदराबाद का भारत में विलय और एम्आईएम्, नेहरु व सरदार पटेल :इतिहास के कुछ अनजान पहलू

क्या आप को सरदार पटेल , हैदराबाद निजाम औरएम्आईएम् का किस्सा पता है ?
जिसकी खबर सुन के नेहरु ने फ़ोन तोड़ दिया था | तथ्य जो कभी बताये नहीं गए -

1- हैदराबाद विलय के वक्त नेहरु भारत में नहीं थे |
2- हैदराबाद के निजाम और नेहरु ने समझौता किया था अगर उस समझौते पे ही रहा जाता तो आज देश के बीच में एक दूसरा पकिस्तान होता |
3 - मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एम्आईएम्) के पास उस वक़्त २००००० रजाकार थे जो निजाम के लिए काम करते थे और हैदराबाद का विलय पकिस्तान में करवाना चाहते थे या स्वतंत्र रहना |

बात तब की है जब १९४७ में भारत आजाद हो गया उसके बाद हैदराबाद की जनता भी भारत में विलय चाहती थी | पर उनके आन्दोलन को निजाम ने अपनी निजी सेना रजाकार के द्वारा दबाना शुरू कर दिया |

रजाकार एक निजी सेना (मिलिशिया) थी जो निजाम ओसमान अली खान के शासन को बनाए रखने तथा हैदराबाद को नव स्वतंत्र भारत में विलय का विरोध करने के लिए बनाई थी। यह सेना कासिम रिजवी द्वारा निर्मित की गई थी। रजाकारों ने यह भी कोशिश की कि निजाम अपनी रियासत को भारत के बजाय पाकिस्तान में मिला दे।

रजाकारों का सम्बन्ध 'मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एम्आईएम्) नामक राजनितिक दल से था।
नोट -ओवैसी भाई इसी MIM की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं और कांग्रेस की मुस्लिम परस्ती और देश विरोधी नीतियों की वजह से और पकिस्तान परस्त मुल्लो की वजह से ये आज तक हिन्दुस्तान में काम कर रही है |

चारो ओर भारतीय क्षेत्र से घिरे हैदराबाद राज्य की जनसंख्या लगभग 1करोड60लाख थी जिसमें से 85%हिंदु आबादी थी।
29नवंबर1947 को निजाम-नेहरू में एक वर्षीय समझौता हुआ कि हैदराबाद की यथा स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के पहले थी।
नोट - यहाँ आप देखते हैं की नेहरु कितने मुस्लिम परस्त थे की वो देश द्रोही से समझौता कर लेते हैं |
पर निजाम नें समझौते का उलंघन करते हुए राज्य में एक रजाकारी आतंकवादी संगठन को जुल्म और दमन के आदेश दे दिए और पाकिस्तान को 2 करोड़ रूपये का कर्ज भी दे दिया.

राज्य में हिंदु औरतों पर बलात्कार होने लगे उनकी आंखें नोच कर निकाली जाने लगी और नक्सली तैय्यार किए जाने लगे.

सरदार पटेल निजाम के साथ लंबी लंबी झुठी चर्चाओं से उकता चुके थे अतः उन्होने नेहरू के सामने सीधा विकल्प रखे कि युद्ध के अलावा दुरा कोई चारा नही है। पर नेहरु इस पे चुप रहे |

कुछ समय बीता और नेहरु देश से बाहर गए सरदार पटेल गृह मंत्री तथा उप प्रधान मंत्री भी थे इसलिए उस उस वक़्त सरदार पटेल सेना के जनरलों को तैयार रहने का आदेश देते हुए विलय के कागजों के साथ हैदराबाद के निजाम के पास पहुचे और विलय पे हस्ताक्षर करने को कहा |

निजाम ने मना किया और नेहरु से हुए समझौते का जिक्र किया उन्होंने कहा की नेहरु देश में नहीं है तो वो ही प्रधान हैं |

उसी वक्त नेहरु भी वापस आ रहे थे अगर वो वापस भारत की जमीन पे पहोच जाते तो विलय न हो पाता इस को ध्यान में रखते हुए पटेल ने नेहरु के विमान को उतरने न देने का हुक्म दिया तब तक भारतीय वायु सेना के विमान निजाम के महल पे मंडरा रहे थे | बस आदेश की देरी को देखते हुए निजाम ने उसी वक़्त विलय पे हस्ताक्षर कर दिए | और रातो रात हैदराबाद का भारत में विलय हो गया |

उसके बाद नेहरु के विमान को उतरने दिया गया लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने नेहरु को फ़ोन किया और बस इतना ही कहा " हैदराबाद का भारत में विलय " ये सूनते ही नेहरु ने वो फ़ोन वही एअरपोर्ट पे पटक दिया "

उसके बाद रजाकारो (एम्आईएम्) ने सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया जो 13 सितम्बर 1948 से 17 सितम्बर 1948 तक चला |

भारत के तत्कालीन गृहमंत्री एवं 'लौह पुरूष' सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पुलिस कार्रवाई करने हेतु लिए गए साहसिक निर्णय ने निजाम को 17 सितम्बर, 1948 को आत्म-समर्पण करने और भारत संघ में सम्मिलित होने पर मजबूर कर दिया।

इस कार्यवाई को 'आपरेशन पोलो' नाम दिया गया था। इसलिए शेष भारत को अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद हैदराबाद की जनता को अपनी आजादी के लिए 13 महीने और 2 दिन संघर्ष करना पड़ा था।

यदि निजाम को उसके षड़यंत्र में सफल होने दिया जाता तो भारत का नक्शा वह नहीं होता जो आज है।

वो फ़ोन आज भी संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है |

Sunday, June 2, 2013

एक छोटी सी जानकारी


वेदो के बारे मे तथाकथित दलित विचारक कहते है की वेद पढने का अधिकार कभी शुद्रो को नही था. खैर ये क्या कहते है क्या नही कहते उससे कोई खास फर्क तो नही पङता पर उन महान शुद्र विद्वानो के नाम बताना मै जरुरी समझता हुं जिन्होने वेद लिखने मे अहम भूमिका अदा की.
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1- आचार्य कवस 2- एलुस 3- महिदास 4- ऐतरेय 5- दीर्घतमा 6- औशिज 7- काच्छीवान 8- वत्स 9- काण्वायन 10- सुदछिनच्छेमि 11- रैक्यमुनि 12- सत्यकाम 13- जाबाल
इन सब महान विद्वानो के चरणो मे कोटि कोटि नमन..
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वे आर्य जो न तो वैश्य थे न च्छत्रिय थे वो या तो ब्राह्मण थे या शुद्र थे. वे ब्राह्मण जो अध्ययन के बजाय शिल्प कार्य मे लगे उन्हे शुद्र कहा गया. ( तो क्या ब्राह्मण और शुद्र एक उत्पत्ति के नही हुए???मतलब ब्राह्मण और शुद्र एक ही हैं.) - रिगवेद मण्डल सात सुक्त 32 मंत्र 20
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जो ब्राह्मण वेद पठन पाठन नही करते कराते, अन्यत्र श्रम करते है वे और उनके तत्कालीन वंशज शुद्र होते है. - मनुस्मृति
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महान वैदिक संस्कृति और सभ्यता मे कमी वही निकाल सकते हैं जिन्होने कभी इसका अध्ययन भी नहीं किया हैं ऐसे म्लेच्छो से हम सभी को सावधान रहना चाहीये जो हम लोगो को बाटने के लिये झुठ का सहारा लेते है.कोई भी ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शुद्र जन्म के आधार पर नहीं हो सकता."कर्म" ही इसका पैमाना है,अगर ब्राह्मण शूद्रों की तरह काम करता है तो वह शुद्र है और शुद्र ब्राह्मण की तरह तो वह ब्राह्मण.यही हमारे वेदों की शिक्षा है.इसको तोड़ मरोड़ कर पेश करने वाले तथाकथित ब्राह्मणों और इसे दलित विरोधी बताने वाले स्वयंभू दलित विचारकों से ही महान वैदिक धर्म को खतरा है.

Saturday, June 1, 2013

कहीं देश न जला दे वोटबैंक की राजनीति!

अभी-अभी खबर पढ़ी है की उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार अपने जगजाहिर "आतंकवादी प्रेम" पर एक और  ठप्पा लगते हुए वाराणसी के विश्व विख्यात संकटमोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर सात मार्च, 2006 को हुए आतंकी हमले के आरोपी शमीम के खिलाफ चल रहे मुकदमे को वापस लेने का निर्णय ले लिया है।जैसा की आप जानते हैं की सात मार्च, 2006 को संकट मोचन व कैंट रेलवे स्टेशन पर हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोट के बाद दशाश्वमेध इलाके में भी डेढ़सी पुल के नजदीक एक कुकर बम बरामद हुआ था, जिसे पुलिस ने निष्क्रिय कर दिया था। जांच के दौरान पुलिस व एसटीएफ ने इलाहाबाद के वलीउल्लाह को गिरफ्तार किया था। पूछताछ व सर्विलांस से मिली जानकारी में चंदौली निवासी शमीम अहमद का भी नाम सामने आया।इस सीरियल धमाके में २७ लोग मारे गए थे और दर्शनो घायल हो गए थे.तो क्या अब हमारी राजनितिक पार्टियाँ वोट के लए इतने निचे तक गिर गयी हैं  की आतंकवादियों-देशद्रोहियों को जेल से छोड़ रही हैं और जैसा की अभी कुछ दिन पहले की ख़बरों के मुताबिक एक सिरिअल ब्लास्ट के आरोपी की लू से मौत पर ६ लाख का मुआवजा भी इसी सरकार ने दिया था.अगर इन आतंकवादियों का कोई गुनाह नहीं था तो तमाम सुरक्षा एजेंसियों ने इन्हें पकड़ा ही क्यूँ?या समाजवादी पार्टी की सरकार आते ही सारे आतंकी निर्दोष क्यों हो जाते हैं?ये मनन-चिंतन का विषय है.यूपी की जातिवादी जनता को भी सोचना चाहिए,आखिर जातिवाद के नाम पर इन आतंकवादी विचारधारा की पोषक सरकारों को कब तक सत्ता देंगे?आज स्वर्ग में बैठ कर समाजवाद के प्रणेता राम मनोहर लोहिया की भी आत्मा रो रही होगी की मैंने तो समाजवादी पार्टी बनायीं थी और हमारे अनुयायी इसे नमाज़वादी पार्टी बना दिए.यहाँ एक तथ्य स परिचित कराना और जरूरी है की सपा का यह आतंकवादी प्रेम सिर्फ मुस्लिम वोटबैंक के लिए है लेकिन शायद वो भूल रहे हैं की जिस हमले के दोषी को ये छोड़ रहे हैं उसी हमले में ३ मुसलमान भी मरे थे.लेकिन इससे इनको फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इन्हें तो कुछ ऐसा दिखाना है जिससे इनका मुस्लिम प्रेम उजागर हो.