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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, April 14, 2013

कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है


मेरा भी मन करता है की लिखूं फुहारे सावन की
बिंदिया,काजल,कंगन,कुमकुम लिखूं किसी मनभावन की
पर जब भूखे प्यासे बच्चे सड़कों पर चीत्कार करें
कैसे कवितायेँ लिख दूं प्रेयसी और लोकलुभावन की
राजनीति जब गिर जाती है अपराधी के चरणों पर
पुलिस नहीं कुछ कर पाती है हत्या और अपहरणों पर
तब कवि को सत्ता का असली रूप दिखाना पड़ता है
कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है 

न्याय व्यवस्था जब गुंडों के हाथों में बिक जाती है
और कश्मीर की घाटी लाशों से पट जाती है
देशद्रोहियों का जब-जब अभिनन्दन होने लगता है
तब-तब रंग बसंती वाला चोला रोने लगता है 
अफशरशाही जब सत्ता के चरणों पर गिर जाती है
और गीदड़ों की टोली शेरों को आँख दिखाती है
तब कवि को सत्ता का असली रूप दिखाना पड़ता है
कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है 

जब जनसेवक जनता को ही गाली देने लगते हैं
और विदेशी सौदों पर दलाली लेने लगते हैं
राष्ट्रवाद जब सिमित हो जाता हिन्दू हित के नारों तक
और सेकुलर की परिभाषा आतंकी छुडवाने तक
वोट बैंक की राजनीति जब देश जलाने लगती है
और राम की उपस्थिति पर हाथ उठाने लगती है
तब कवि को सत्ता का असली रूप दिखाना पड़ता है
कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है 

युवा शक्ति जब मदिरा के बोतल में गुम हो जाती है
और पश्चिमी सोच हमारी संस्कृति को खा जाती है
शाहरुख़ को जब आदर्शों सा युवा मानने लगता है
अशफाकुल्ला की फांसी पर धूल डालने लगता है
लालबहादुर गुम हो जाते इतिहासों की यादों में
जनता मुर्ख बनी रहती है नेताओं के वादों में
तब कवि को सत्ता का असली रूप दिखाना पड़ता है
कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है 

Thursday, April 11, 2013

धर्मनिरपेक्षता बनाम शर्मनिरपेक्षता


मित्रों!आज कल धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा एक धर्म विशेष के विरोध तक सीमित हो गयी है.अगर आप हिन्दुओं की बात करते हैं तो सांप्रदायिक हैं और ......की तो धर्मनिरपेक्ष.पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों की बात हो या बांग्लादेश और न्यामार से आये मुसलमानों की.दोनों के मामले में धर्मनिरपेक्षता के अलग-अलग तराजू हैं,बांग्लादेशी घुसपैठियों को नागरिकता देने की जल्दी है,पाकिस्तानी शरणार्थी हिन्दुओं की पीड़ा अनदेखी की जा रही है.मै आभार प्रकट करता हूँ कुछ प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मिडिया की जिन्होंने इस मुद्दे को लोगों के सामने लाने की हिम्मत की और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और मानवाधिकार आयोगों की अप्रत्यक्ष रूप से कलई खोल दी.हाल के कुछ वर्षों में घटित कुछ शर्मनिरपेक्ष(मै इसे धर्मनिरपेक्ष नहीं कह सकता) बयानों की कड़ियाँ आपको प्रस्तुत कर रहा हूँ.निर्णय स्वयं आप को लेना है.यह धर्मनिरपेक्षता है या शर्म निरपेक्षता है.
जरा इनके बयानों का विरोधाभास देखिये....
हजारों सिखों का कत्लेआम – एक गलती
कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार – एक राजनैतिक समस्या
गुजरात में कुछ हजार लोगों द्वारा मुसलमानों की हत्या – एक विध्वंस
बंगाल में गरीब प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी – गलतफ़हमी
गुजरात में “परजानिया” पर प्रतिबन्ध – साम्प्रदायिक
“दा विंची कोड” और “जो बोले सो निहाल” पर प्रतिबन्ध –धर्मनिरपेक्षता
कारगिल हमला – भाजपा सरकार की भूल
चीन का 1962 का हमला – नेहरू को एक धोखा
जातिगत आधार पर स्कूल-कालेजों में आरक्षण – सेक्यूलर
अल्पसंख्यक संस्थाओं में भी आरक्षण की भाजपा की मांग – साम्प्रदायिक
सोहराबुद्दीन की फ़र्जी मुठभेड़ – भाजपा का सांप्रदायिक चेहरा
ख्वाजा यूनुस का महाराष्ट्र में फ़र्जी मुठभेड़ – पुलिसिया अत्याचार
गोधरा के बाद के गुजरात दंगे - मोदी का शर्मनाक कांड
मेरठ, मलियाना, मुम्बई, मालेगाँवमथुरा,फैजाबाद,पश्चिम बंगाल  आदि-आदि-आदि दंगे - एक प्रशासनिक विफ़लता
हिन्दुओं और हिन्दुत्व के बारे बातें करना – सांप्रदायिक
इस्लाम और मुसलमानों के बारे में बातें करना – सेक्यूलर
संसद पर हमला – भाजपा सरकार की कमजोरी
अफ़जल गुरु को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सालों तक टाले रखना – मानवीयता
भाजपा के इस्लाम के बारे में सवाल – सांप्रदायिकता
कांग्रेस के “राम” के बारे में सवाल – नौकरशाही की गलती
यदि कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीती – सोनिया को जनता नेस्वीकारा
मोदी गुजरात में चुनाव जीते – फ़ासिस्टों की जीत
सोनिया मोदी को कहती हैं “मौत का सौदागर” – सेक्यूलरिज्म को बढ़ावा
जब मोदी अफ़जल गुरु के बारे में बोले – मुस्लिम विरोधी !