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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, October 20, 2013

सेक्युलर बनने के लिए कुछ शर्तें !

कमसे कम ५ शर्त मानिये और सेक्युलर हो जाइये !

- अलगाववादियों का समर्थन
-आतंकवादियों का समर्थन
-कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन
- गौहत्या का समर्थन
- जालीदार टोपी लगाना जरुरी
- अयोध्या में राम मंदिर का विरोध
-आतंकवादियों के परिवार को सहयोग
-शहीदों का अपमान
-हज पर सब्सिडी और अमरनाथ यात्रा पर टैक्स का समर्थन
- आतंकवादियों के परिवार को आर्थिक सहायता का समर्थन
-आतंकवादियों को जेल से छोड़ने का समर्थन
-कम्युनिस्टों और नक्सालियों का समर्थन
-वन्देमातरम का विरोध
-तिरंगे का अपमान करने वालों का समर्थन
-पाकिस्तानी आतंकवादियों को बिरयानी खिलने का समर्थन
आतंकवादियों को अपने घर,राज्य या मोहल्ले की बहु,बेटी,बीटा या ताऊ घोषित करना
-हिन्दू संतों का अपमान

अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो मेरी तरह साम्प्रदायिक बने रहिये और "वन्देमातरम"गाते रहिये.

Friday, October 18, 2013

कुछ ज्ञानवर्धक ट्रिक

अच्छे बुरे की पहचान कैसे करें?


-जिसके खिलाफ दिग्विजय सिंह बोल रहे होंगे वह अच्छा ही होगा


इस समय भारतवर्ष की सबसे बड़ी गाली 



-अबे तू खान्ग्रेसी है क्या?


देश द्रोही को कैसे पहचाने ?



-या तो मुलायम सिंह का करीबी होगा या उसके थोड़े से कष्ट पर भी 



सोनिया गांधी फूट-फूट कर रो रही होंगी.


कैसे पहचाने की भासण देने वाला व्यक्ति राहुल गाँधी ही है?



-भासण का अंश "मेरे माँ की $$$ मेरे माँ ने $$$ मम्मी $$$


दूर से कैसे पहचाने की रैली किस पार्टी की है.



-भाजपा :भारत माता की जय,वन्देमातरम,जय हिन्द 


....
-कांग्रेस : सोनिया जी जिंदाबाद,राहुल गाँधी जिंदाबाद 

Saturday, September 7, 2013

यूपी के सपा सरकार का एक शर्मनिरपेक्ष चेहरा और मुजफ्फरनगर में हो रहे दंगे एवं हिन्दू नरसंघार का सच

मुजफ्फर नगर में हो रहे दंगे की पठकथा उसी दिन लिख दी गयी थी जब एक हिन्दू लड़की के साथ हुए छेड़छाड की घटना के बाद विरोध कर रही भीड़ पर प्रशाशन एकतरफा हिन्दुओं पर करवाई करने में जुटा रहा. लड़की के दोनों भाइयों गौरव और सचिन की हत्या कर दी गयी और प्रशाशन फिर भी चुप रहा और हिन्दुओं को पकड़-पकड़ कर जेल में ठुसता रहा.अखिलेश यादव को अपने मुस्लिम वोट बैंक की चिंता थी और वो जानते थे की हिन्दू तो चूति....हैं वो तो जाति के नाम पर हमें वोट देंगे ही,अतः दोषी मुसलमानों पर कोई करवाई नहीं हुई और छेड़छाड़  करने वाले आराम से घूमते रहे.उल्टा अखिलेश सर्कार ने मुज़फ्फर नगर के एसपी सुरेन्द्र सिंह को हटाकर अब्दुल हमीद को बना दिया गया जिससे हिन्दुओं पर एकतरफा करवाई से मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके.इसकी परिणिति कल की घटना के रूप में हुई जब मुसलमानों द्वारा मस्जिदों से घात लगाकर किये गए हमलों में दर्ज़नो हिन्दू मारे गए,सैकणों घायल हुए और कई अब अभी लापता हैं.
मै यहाँ केवल मुसलमानों को दोष नहीं दे सकता और न ही अखिलेश सरकार को.क्योंकि हिन्दू जातिओं मे बटे रहे और अपनी जाति को वोट देते रहे मुसलमान एक जुट होकर उनकी सुनने वालों को वोट देते है. इसी लिये मुलायम, नीतीश, लालू जैसे नेता पैदा होते हैं और फलते फूलते है जिम्मेदारी हिन्दू जनता की है जो सोंच समझ कर वोट नही करती वो दिन दूर नही जब हिन्दुस्तान मे न हिन्दू बचेगा न कोई हिन्दू जाती हिन्दू खुद आत्मघाती है कोई उसकी क्या मदद करेगा?

Thursday, August 15, 2013

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कुछ गुमनाम चेहरे जिन्होंने देश के लिए सबकुछ अर्पण कर दिया


भगवती चरण वोहरा [ जुलाई 1903 - 28 मई 1930] क्रांतिकारी संगठन के प्रचार सचिव थे। पिता की मौत के बाद वह खुलकर इस लड़ाई में शामिल हो गए। बेहद तंगी के दिनों में भी उन्होंने अपने ससुराल पक्ष से मिले पैसों को आजादी की लड़ाई में खर्च कर दिया। मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह ने संयुक्त रूप से नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की। भगत सिंह व भगवती चरण वोहरा सहित सदस्यों ने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए। वोहरा लखनऊ के काकोरी केस, लाहौर षड़यंत्र केस, लाला लाजपत राय को मारने वाले अंग्रेज साजर्ेंट - सांडर्स की हत्या में भी आरोपित थे। 28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण करते समय वोहरा जी शहीद हो गए थे।

सुशीला दीदी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की बेहदसक्रिय सदस्य थीं। लाला लाजपत राय के हत्यारे सॉन्डर्स को मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने ही कलकत्ता में भगत सिंह के ठहरने की व्यवस्था की थी। 1 अक्टूबर 1933 को उन्होंने यूरोपीय सार्जेट टेलर को खत्म करने में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही। इसके बाद वह अंग्रेजों की आंखों में धूल झौंकने में कामयाब रहीं। आजादी के बाद वह दिल्ली में ही बस गई।

 दुर्गा भाभी [7 अक्टूबर 1902- 14 अक्टूबर 1999] भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की प्रमुख सहयोगी थीं। 18 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह ने इन्ही दुर्गा भाभी के साथ वेश बदल कर कलकत्ता-मेल से ़यात्रा की थी। बेहद निडर और साहसी दुर्गा भाभी का काम साथी क्रांतिकारियों के लिए राजस्थान से पिस्तौल लाना व ले जाना था। चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी उसे दुर्गा भाभी ने ही लाकर उनको दी थी। उस समय भी दुर्गा भाभी उनके साथ ही थीं। 14 अक्टूबर 1999 को 97 वर्ष की आयु में उनका निधन उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में हो गया।

अशफाक उल्ला खान (1900-1927) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका दिया गया। अशफाक उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे।

उधम सिंह का [26 दिसंबर 1899- 31 जुलाई 1940]1919 में आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। वह 13 अप्रैल, 1919 को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। वह इसके दोषी जनरल डायर को इसका सबक सिखाना चाहते थे। इसके चलते उन्हें काफी लंबा इंतजार करना पड़ा। सन 1934 में वह डायर का पीछा करते हुए लंदन पहुंचे। 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में एक बैठक के माइकल ओ डायर भी मौजूद था। उधम सिंह ने उसको वहीं दो गोलियां मारकर ढेर कर दिया। उन्हें गिरफ्तार कर उनके ऊपर केस चलाया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

काला सिंह [12 फरवरी 1882- 12 अगस्त, 1915] जगतपुरा निवासी सुरमुख सिंह के घर 12 फरवरी, 1882 को पैदा हुए थे। अंग्रेजी हकूमत की गुलामी बर्दाश्त न होने पर काला सिंह ने फौज की नौकरी छोड़ दी और गदर पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने कई अंग्रेज सिपाहियों को मौत के घाट उतारने के साथ-साथ उनके कई मुखबिरों को भी मार दिया। इस पर अंग्रेज हकूमत ने उसे पकड़ लिया और 12 अगस्त, 1915 को आतंकी करार देकर फांसी के फंदे पर लटका दिया।


Saturday, July 27, 2013

गोधरा और गुजरात : सच्चाई की अनभिज्ञता है विवादों की वज़ह


गुजरात दंगे का सच आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फेसबुक हो या फिर टीवी चैनेल | रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं | रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है| सबका निशाना केवल एक नरेन्द्र मोदी | जिसे देखो वो अपने को को जज दिखाता है| हर कोई सेकुलर के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं |
कारसेवको को मारने के लिए ट्रेन को जलाने की कई दिनों से योजना बन रही थी-
साबरमती ट्रेन हादसे में मौत की सजा प्राप्त अब्दुल रजाक कुरकुर के अमन गेस्टहाउस पर ही कारसेवको को जिन्दा जलाने की कई हप्तो से योजना बनी थी ... इसके गेस्टहाउस से कई पीपे पेट्रोल बरामद हुए थे |
पेट्रोल पम्प के कर्मचारीयो ने भी कई मुसलमानों को महीने से पीपे में पेट्रोल खरीदने की बात कही थी और उन्हें पहचान परेड में पहचाना भी था .. पेट्रोल को सिगनल फालिया के पास और अमन गेस्टहाउस में जमा किया जाता था |
गोधरा से तत्कालीन सहायक स्टेशन मास्टर के द्वारा वडोदरा मंडल ट्रेफिक कंट्रोलर को भेजी गयी गुप्त रिपोर्ट ::-
गोधरा के तत्कालीन सहायक स्टेशन मास्टर राजेन्द्र मीणा ने वडोदरा मंडल के ट्रेफिक कंट्रोलर को आरपीएफ के गुप्तचर शाखा के जानकारी के आधार पर एक रिपोर्ट भेजी थी जिसमे उन्होंने कहा था की गोधरा आउटर पर किसी भी सवारी ट्रेन को रोकना और खासकर अयोध्या जाने वाली या आने वाली साबरमती एक्सप्रेस को रोकना बहुत खतरनाक होगा क्योकि कुछ संदिग्ध लोग कारसेवको को नुकसान पहुचाने की योजना बना रहे है उन्होंने लिखा था की ट्राफिक को इस तरह से कंट्रोल किया जाए की साबरमती ट्रेन को आउटर पर रुकना न पड़े

गौरतलब है की जिस जगह यानी सिगनल फलिया पर साबरमती ट्रेन को जलाया गया था ठीक उसी जगह पर 28 November 1990 को पांच हिन्दू टीचरों को जलाकर मारा गया था जिसमे दो महिला टीचर थी ..इस केस में भी बीस मुसलमानों को आरोपी पाया गया था

आखिर ट्रेन हादसे के दो दिनों के बाद गुजरात में दंगे क्यों भडके ?
मित्रो कभी आपने सोचा है कि जब ट्रेन 27 फरवरी को जलाई गयी तो गुजरात में पहली हिंसा दो दिन के बाद यानी 29 फरवरी को क्यों हुई ?

मित्रो साबरमती हादसे की किसी भी मुस्लिम सन्गठन ने निंदा नही की .. उलटे जमायत ये इस्लामी हिन्द के तत्कालीन प्रमुख ने इसके लिए कारसेवको को ही जिम्मेदार ठहरा दिया .. शबाना आजमी ने भी कहा की कारसेवको को उनके किये की सजा मिली है ..आखिर क्या जरूरत थी अयोध्या जाने की ...तीस्ता जावेद सेतलवाड और मल्लिका साराभाई और शबनम हाश्मी ने एक संयुक्त प्रेस कांफेरेस के कहा की हमे ये नही भूलना चाहिए की वो कार सेवक किसी नेक मकसद के नही गये थे बल्कि विवादित जगह पर मन्दिर बनाने गये थे |
मशहूर पत्रकार वीर संघवी ने भी इंडियनएक्सप्रेस में एक आर्टिकल लिखा था ""they condemn the crime, but blame the victims" उन्होंने लिखा था की ऐसे बयानों ने हिन्दुओ को झकझोर दिया था |
जब भी मीडिया गुजरात दंगो की बात करता है तब वो दंगे भडकने के पहले और गोधरा ट्रेन हादसे के बाद 27 February 2002 को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े कांग्रेसी नेता अमरसिंह चौधरी का टीवी पर आकर दिया गया बयान क्यों नही दिखाता ?
मित्रो, अमरसिंह चौधरी ने साबरमती ट्रेन हादसे की निंदा नही की बल्कि उलटे वो कारसेवको को कोसने लगे और मृत कारसेवको के बारे में अनाप सनाप बकने लगे .. और कहा की ये लोग खुद अपनी मौत के जिम्मेदार है ..इन सब बातो ने गुजरात की जनता को भडकाने का काम लिया ..
अब सवाल उठता है की गुजरात दंगा हुआ क्यों ? 27 फरवरी 2002 साबरमती ट्रेन के बोगियों को जलाया गया गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब ८२६ मीटर की दुरी पर स्थित जगह सिगनल फालिया पर | इस ट्रेन में जलने से 58 लोगो को मौत हुई | 25 औरते और 19 बच्चे भी मारे गये |
प्रथम दृष्टया रहे वहा के 14 पुलिस के जवान जो उस समय स्टेशन पर मौजूद थे और उनमे से ३ पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुचे और साथ ही पहुचे अग्नि शमन दल के एक जवान सुरेशगिरी गोसाई जी | अगर हम इन चारो लोगो की माने तो म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल भीड़ को आदेश दे रहे थे ट्रेन के इंजन को जलने का| साथ ही साथ जब ये जवान आग बुझाने की कोशिस कर रहे थे तब ट्रेन पर पत्थरबाजी चालू कर दी गई भीड़ के द्वारा| अब इसके आगे बढ़ कर देखे तो जब गोधरा पुलिस स्टेशन की टीम पहुची तब २ लोग १०,००० की भीड़ को उकसा रहे थे ये थे म्युनिसिपल प्रेसिडेंट मोहम्मद कलोटा और म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल|
अब सवाल उठता है की मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए?
असल में गोधरा की मुख्य मस्जिद का मौलाना मौलवी हाजी उमर जी ही इस कांड का मुख्य आरोपी पाया गया और उसे अदालत ने फांसी की सजा दी ..जिसे बाद में आजीवन कारावास में तब्दील किया गया | दुसरे आरोपीयो ने विभिन्न जाँच एजेंसियों और कोर्ट में बताया की मौलाना उमरजी कई हप्तो से मस्जिद में नमाज के बाद भडकाऊ तकरीर देता था और कहता था की हमे बदला लेना है ..इन कारसेवको ने बाबरी मस्जिद तोड़ी है इसलिए हर मुसलमान का फर्ज है की वो बदला ले |सवालो के बाढ़ यही नहीं रुकते हैं बल्कि सवालो की लिस्ट अभी लम्बी है|अब सवाल उठता है की क्यों मारा गया ऐसे राम भक्तो को| कुछ मीडिया ने बताया की ये मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे....अब क्या कोई बताएगा की क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं?लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ २७ फ़रवरी २००२ को सुबह ७:४३ मिनट ४ घंटे की देरी से जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा तो प्लेटफ़ॉर्म से १०० मीटर की दुरी पर ही १००० लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए पर यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया| पर जैसे ही ट्रेन मुस्किल से ८०० मीटर चली अलग अलग बोगियों से कई बार चेन खिंची गई |बाकि की कहानी जिसपर बीती उसकी जुबानी | उस समय मुस्किल से १५-१६ साल की बच्ची की जुबानी |ये बच्ची थी कक्षा ११ में पढने वाली गायत्री पंचाल जो की उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी की माने तो ट्रेन में राम धुन चल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी एक दम से रोक दिया गई चेन खिंच कर | उसके बाद देखने में आया की एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है | हथियार भी कैसे लाठी डंडा नहीं बल्कि तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बल्ब्स और पता नहीं क्या क्या | भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे वो कार सेवको को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बहार खड़ी भीड़ मरो-काटो के नारे लगा रही थी | एक लाउड स्पीकर जो की पास के मस्जिद पर था उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था की "मारो, काटो. लादेन ना दुश्मनों ने मारो" | साथ ही बहार खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया जिससे कोई जिन्दा ना बचे| ट्रेन की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल भरा हुआ था| दरवाजे बहार से बंद कर दिए गए थे ताकि कोई बहार ना निकल सके| एस-६ और एस-७ के वैक्यूम पाइप कट दिया गया था ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके| जो लोग जलती ट्रेन से बहार निकल पाए कैसे भी उन्हें काट दिया गया तेज हथियारों से कुछ वही गहरे घाव की वजह से मारे गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए|
गोधरा फायर सर्विस के जवानो का बयान
नानावती औरशाह आयोग को दिए अपने बयानों में फायर बिग्रेड के लोगो ने कहा की जबहमे सुचनामिली की ट्रेन जलाई गयी है तो हम तुरंत पहुचे लेकिन सिग्लन फालिया के पास कई मुस्लिम महिलाये और बच्चे हमारा सामने लेट गये ..और कई लोग चिल्ला रहे थे की इनको तब तक मत जाने देना जबतक की ट्रेन पूरी तरह जल न जाये |
हिन्दू सड़क पर उतारे 29 फ़रवरी 2002 के दोपहर से | पूरा दो दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठा रहा| अगर वो दंगा हिंदुवो या मोदी को करना था तो 27 फ़रवरी 2002 की सुबह 8 बजे से क्यों नहीं चालू हुआ? जबकि मोदी ने 28 फ़रवरी 2002 की शाम को ही आर्मी को सडको पर लाने का आदेश दिया जो की अगले ही दिन १ मार्च २००२ को हो गया और सडको पर आर्मी उतर आयी गुजरात को जलने से बचाने के लिए | पर भीड़ के आगे आर्मी भी कम पड़ रही थी तो १ मार्च २००२ को ही मोदी ने अपने पडोसी राज्यों से सुरक्षा कर्मियों की मांग करी| ये पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलाश राव देशमुख मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग विजय सिंह मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत मुख्य मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) | क्या कभी किसी ने भी इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा की अपने सुरक्षा कर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी | या ये एक सोची समझी गूढ़ राजनीती द्वेष का परिचायक था इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना|
साबरमती ट्रेन हादसा और लालूप्रसाद यादव की घटिया राजनीती जो बाद में गलत साबित हुई
साबरमती ट्रेन हादसे के ढाई साल के बाद जब घटिया और नीच सोच रखने वाले लालूप्रसाद यादव रेलमंत्री बने तो उन्होंने इस हादसे पर अपनी नीच और गिरी हुई राजनितिक रोटी सेकने के लिए रेलवे के द्वारा बनर्जी आयोग बनाया .. और इस आयोग को पहले ही बता दिया गया था की आपको क्या रिपोर्ट देनी है | असल में कुछ महीनों के बाद बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले थे और लालूप्रसाद यादव चाहते थे की किसी भी हिंदूवादी दल को इसका फायदा न मिले बल्कि हिंदूवादी संघटनों को और कारसेवको को ही दोषी ठहरा दिया जाये |
सोचिये जो बोगी ढाई सालो तक खुले आसमान के पड़ी रही उस बोगी की जाँच करके बनर्जी आयोग ने कहा की ट्रेन अंदर से जलाई गयी थी .. मतलब वो कहना चाह रहे थे की सभी कारसेवको को सामूहिक आत्मदाह करने की इच्छा हो गयी इसलिए उन्होंने खुद ही ट्रेन में आग लगा ली और किसी ने भी बाहर निकलने की कोशिस नही की | मजे की बात देखिये की जस्टिस बनर्जी ने जनवरी २००५ को यानी बिहार चुनाव घोषित होने के ठीक दो दिन पहले अपना विवादास्पद रिपोर्ट सार्वजनिक किये ताकि इस रिपोर्ट के आधार पर लालूप्रसाद यादव बिहार के मुसलमानों को भड़काकर उनका वोट हासिल कर सके |
लेकिन गोधरा ट्रेन हादसे में जख्मी हुए नीलकंठ तुलसीदास भाटिया नामक एक शक्स ने बनर्जी आयोग के झूठे रिपोर्ट को गुजरात हाईकोर्ट में चेलेंज किया | गुजरात हाईकोर्ट ने विश्व के जानेमाने फायर विशेषज्ञ और फोरेंसिक एक्पर्ट का एक पैनेल बनाया . और जस्टिस उमेश चन्द्र बनर्जी को इस पैनेल के सामने पेश होने का सम्मन दिया ... तीन सम्मनो के बाद पेश हुए बनर्जी साहब ने ये नही बता पाया की आखिर उन्होंने ये कैसे निष्कर्ष निकला की ट्रेन में आग भीतर से लगी है .. जबकि आग के पैटर्न और सभी गवाहों और खुद अभियुक्तों के बयानों पे अनुसार आग बाहर से लगाई गयी थी और दरवाजो को बाहर से बंद कर दिया गया था ..जस्टिस बनर्जी कोई जबाब नही दिए और कोर्ट में कहा की वो एक आयोग के मुखिया होने के नाते किसी भी सवाल का जबाब देने के लिए बाध्य नही है .. मेरा काम था रेलवे को रिपोर्ट देना इसे सही या गलत मानना तो रेलवे का काम है |
यानी ये पूरी तरह साबित हो गया था की लालूप्रसाद यादव में जस्टिस उमेशचन्द्र बनर्जी आयोग का गठन सिर्फ अपने राजनीतक रोटिया सेकने के लिए ही किया था | इस आयोग को लालू ने पहले ही बता दिया था की मुझे किस तरह की जाँच रिपोर्ट चाहिए |
फिर ओक्टूबर २००६ के गुजरात हाईकोर्ट की चार जजों की बेंच ने जिसमे सभी जज एक राय पर सहमत थे उन्होंने लालू के बनर्जी आयोग की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया और टिप्पड़ी करते हुए कहा की कोई रिटायर जज किसी नेता के हाथ की कटपुतली न बने ..गुजरात हाईकोर्ट ने बनर्जी रिपोर्ट को रद्दी, बकवास कहा .. अपनी टिप्पड़ी में गुजरात हाईकोर्ट ने कहा
"Gujarat High Court quashed the conclusions of the Banerjee Committee and ruled that the panel was "unconstitutional, illegal and null and void", and declared its formation as a "colourable exercise of power with mala fide intentions", and its argument of accidental fire "opposed to the prima facie accepted facts on record."


लेकिन ताज्ज्जुब हैकी मीडिया और दोगले सेकुलर लोग सिर्फ एक तरफी बाते ही चलाते है

Tuesday, July 9, 2013

हे राम दुबारा मत आना !!

हे राम दुबारा मत आना, अब यहाँ लखन हनुमान नही.
90 करोड़ इन मुर्दों मे, अब बची किसी में जान नही .
भाई भाई का दुश्मन है,बहनो का भी सम्मान नही .
हम कैसे कह दें कि हिंदू अब, तुर्कों की संतान नही .
इतिहास स्वयं का भूल गए ,भगवापर भी अभिमान नही.
अब याद इन्हे बस अकबर है, राणा प्रताप बलवान नही .
हल्दी घाटी सूनी सी है ,चेतक का भी तूफान नही .
हिंदू भी होने लगे दफ़न ,अब जलने को शमशान नही .
भारत की चीखें गूँज रही ,निज देश का भी सम्मान नही .
साई ही इनके सब कुछ हैं , अब महादेव भगवान नही.


Friday, June 28, 2013

ब्यंग : हमारे केजरीवाल जी तो जन्मजात धर्मनिरपेक्ष हैं !

मित्रोँ , आप सबको तो पता ही है कि हमारे केजरीवाल जी कोई मामूली इंसान नहीँ हैँ, वे धरती पर नेकी और धर्मनिरपेक्षता फैलाने के लिए साक्षात् खुदा द्वारा भेजे गए फरिश्ते हैँ . 
लेकिन धरती पर आने के बाद से उन्होँने अपने आपको बिल्कुल एक "आम-आदमी" की तरह पेश किया है , परंतु किसी भी हालत मेँ धर्मनिरपेक्षता से सौदा नहीँ किया.
आज आपको उनके बचपन का एक वाकया सुनाता हूँ , ये बात उन दिनोँ की है जब केजरीवाल जी एक नन्हेँ से प्रखर बुद्धि बालक थे और "दारुल-अल-इस्लामिया" नामक एक मदरसे मेँ तालीम ले रहे थे.
हुआ यूँ कि जब उनके पाँचवेँ दर्जे के सालाना पर्चे चल रहे थे तो भूगोल के पर्चे मेँ एक बड़ा ही अजीब सा सवाल था , "पृथ्वी की परिधि की लंबाई बताइए?" 
यह सवाल देखकर युगपुरुष जी की आँखेँ फटी की फटी रह गईँ, उन्हेँ किसी साजिश की बू आने लगी, वे सोच मेँ पड़ गए कि मदरसा कमिटी के चेयरमैन मौलाना मरदूद उल्लाह मदनी ने तो ये बताया था कि धर्मनिरपेक्ष ग्रन्थोँ के मुताबिक पृथ्वी चपटी है , तो फिर चपटी चीज की परिधि कैसे हो सकती है और ये भी बताया था उस ग्रन्थ मेँ लिखी प्रत्येक बात सार्वभौमिक सत्य है। -
फिर क्या था मित्रोँ , आदरणीय केजरीवाल जी ने वो नापाक सवाल ही छोड़ दिया , और सिर्फ इसी वजह से भूगोल के पर्चे मेँ उनके 100 मेँ से 99 अंक ही आए ,
मित्रोँ वो चाहते तो अन्य छात्रोँ के माफिक गलत उत्तर लिखकर 1 अतिरिक्त अंक प्राप्त कर सकते थे , लेकिन ये उनकी फितरत ही नहीँ कि महज एक अंक के लिए धर्मनिरपेक्षता से समझौता कर लेँ . -
हालांकि एक महीने बाद ही उन्होँने ये खुलासा कर दिया कि पेपर सेट करनेवाला आदमी संघी था और मदरसे जैसी पाक और धर्मनिरपेक्ष जगह को सांप्रदायिक बनाना चाहता था।
देखा मित्रोँ , हमारे केजरीवाल जी आज से नहीँ जन्म जन्मांतर से इन संघियोँ के निशाने पर रहे हैँ , लेकिन आजतक हार नहीँ मानी , आज भी वो नित-नए उत्साह के साथ सांप्रदायिकता के खिलाफ झंडा गाड़े हुए हैँ।
जय हो केजरीवाल जी की।

Saturday, June 15, 2013

मेरी डायरी से

कुछ दिन पहले मेरे आफिस में मेरे मित्र संजय जी, अशोक जी, नदीम भाई और अफरोज भाई बैठे थे । बात चल रही थी राजनीति की । नदीम भाई ने मुझसे सवाल किया कि इस देश की जनता के बारे में आप की क्या राय है ??मैंने दो पल सोंचने के बाद मुस्कुराते हुए कहा "इस देश की जनता इस देश के मुसलमान की तरह बेवकूफ है" । मेरा ये कहना था की नदीम भाई और अफरोज भाई मुझपर बिदक गएऔर आपत्ति करने लगे क्यूंकि मैंने एक तीर से दो शिकार कर दिए थे । जनता के साथ-साथ मुसलमानों को भी बेवकूफ कह दिया था । पर मैंने अपने शब्द वापस नहीं लिए औरदृढ़तापूर्वक अपनी बात पर डटा रहा । आखिर अफरोज भाई ने मुझसे पूछ ही लिया कि मैंने आखिर ऐसा क्यूँ कहा ।मैंने अफरोज भाई से पूछा कि : बाबर और औरंगजेब के बारे में आप की क्या राय है ?अफरोज: वो असली मर्द थे, उन्होंने इस्लाम को भारत में फैलाया । औरंगजेब निहायत ही ईमानदार शख्स था । और उन्होंने भारत में कई मस्जिद बनवाई ।मैं: पर बाबर और औरंगजेब ने मन्दिरों को तोड़ कर मस्जिदें बनवाई थी ।अफरोज: सिर्फ अल्लाह होता है और उसके सिवा कुछ नहीं होता । मूर्ती पूजा काफिर करते हैं । काफिरों को सही रास्ते पर लाने के लिए मस्जिदें बनवाई गई ।बाबर और औरंगजेब काबिल-ए -तारीफ थे ।मैं: पर उन्होंने ने गरीब जनता पर बहुत ज़ुल्म किये । कई हिन्दुओं को जबरन इस्लाम क़ुबूल करवाया । जिन्होंने ने विरोध किया, उनको क़त्ल कर दिया गया और उनकी माँ-बहन-बेटियों के साथ बलात्कार किये गए ।अफरोज: (गर्व के साथ) ये इस्लाम की शक्ति है । इस्लाम से ज्यादा ताकतवर खुछ भी नहीं । महान औरंगजेब ने हिन्दुओं को उनकी औकात बता दी थी ।मैं: पर ये तो अत्याचार था ।अफरोज: (घमंड और थोड़े गुस्से से) वो सब काफिर थे , वो इसी लायक थे ।मैं: नहीं भाई ... वो काफिर नहीं थे । वो सब जो मार दिए गए थे , वो आप के ही दादा-परदादा थे और जिनके साथ बलात्कार हुआ, वो आपकी दादी-परदादी थी । उन्ही से जो संताने पैदा हुई, वो आज के मुसलमान हैं । मुझे ताजुब्ब हैकी आपको अपने घर की माँ-बहनों के साथ बलात्कार करने वाले असली मर्द नज़र आते हैं । कैसे इंसान हैं आप ??अफरोज: आप मनगढ़ंत और फ़ालतू की बात कर रहे हो ।मैं: अच्छा, अगर ऐसा नहीं है तो तो क्या आप असली तुर्क है ? क्या आप ये कहना चाहते हैं की आप के परदादा तुर्क थे और वो घोड़े पर बैठ कर बाबर के साथ भारत आये थे ?अफरोज: अमां, ऐसा नहीं है ।मैं: अरे भाई, तो क्या आप आसमान से आये हो । कम से कम आप ही बताओ कि आप के खानदान की उत्पत्ति कैसे हुई ??अफरोज : (आश्चर्यचकित एवं खामोश)!!!मैं: जिस प्रकार आपको आपकी माँ-बहन के साथ बलात्कार करने वाला अलसी मर्द नज़र आता है, और आप उसको protect कर रहे हैं, उसी प्रकार इस देश की जनता को वो नेता पसंद आता है जो उसका शोषण और बलात्कार करता है । जनता का हित करने वाला नेता तो जनता को चूतिया नज़र आता है । दरअसल,मूर्ख जनता अपना भला करने वाले नेता के बारे में ये सोंचती है की "ज़रूर इनका कोई फायदा होगा" । इसीलिए मैंने कहा की इस देश की जनता इस देश के मुसलमान की तरह बेवकूफ है ।अफरोज : (आश्चर्यचकित और दो पल मौन रहने के बाद) चलें भाई, आज बहुत काम है.(कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी आज के बाबर औरऔरंगजेब हैं । क्या अब समझ में आया की अल्पसंख्यक इनको क्यूं पसंद करते हैं ?)

Friday, June 14, 2013

हैदराबाद का भारत में विलय और एम्आईएम्, नेहरु व सरदार पटेल :इतिहास के कुछ अनजान पहलू

क्या आप को सरदार पटेल , हैदराबाद निजाम औरएम्आईएम् का किस्सा पता है ?
जिसकी खबर सुन के नेहरु ने फ़ोन तोड़ दिया था | तथ्य जो कभी बताये नहीं गए -

1- हैदराबाद विलय के वक्त नेहरु भारत में नहीं थे |
2- हैदराबाद के निजाम और नेहरु ने समझौता किया था अगर उस समझौते पे ही रहा जाता तो आज देश के बीच में एक दूसरा पकिस्तान होता |
3 - मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एम्आईएम्) के पास उस वक़्त २००००० रजाकार थे जो निजाम के लिए काम करते थे और हैदराबाद का विलय पकिस्तान में करवाना चाहते थे या स्वतंत्र रहना |

बात तब की है जब १९४७ में भारत आजाद हो गया उसके बाद हैदराबाद की जनता भी भारत में विलय चाहती थी | पर उनके आन्दोलन को निजाम ने अपनी निजी सेना रजाकार के द्वारा दबाना शुरू कर दिया |

रजाकार एक निजी सेना (मिलिशिया) थी जो निजाम ओसमान अली खान के शासन को बनाए रखने तथा हैदराबाद को नव स्वतंत्र भारत में विलय का विरोध करने के लिए बनाई थी। यह सेना कासिम रिजवी द्वारा निर्मित की गई थी। रजाकारों ने यह भी कोशिश की कि निजाम अपनी रियासत को भारत के बजाय पाकिस्तान में मिला दे।

रजाकारों का सम्बन्ध 'मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एम्आईएम्) नामक राजनितिक दल से था।
नोट -ओवैसी भाई इसी MIM की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं और कांग्रेस की मुस्लिम परस्ती और देश विरोधी नीतियों की वजह से और पकिस्तान परस्त मुल्लो की वजह से ये आज तक हिन्दुस्तान में काम कर रही है |

चारो ओर भारतीय क्षेत्र से घिरे हैदराबाद राज्य की जनसंख्या लगभग 1करोड60लाख थी जिसमें से 85%हिंदु आबादी थी।
29नवंबर1947 को निजाम-नेहरू में एक वर्षीय समझौता हुआ कि हैदराबाद की यथा स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के पहले थी।
नोट - यहाँ आप देखते हैं की नेहरु कितने मुस्लिम परस्त थे की वो देश द्रोही से समझौता कर लेते हैं |
पर निजाम नें समझौते का उलंघन करते हुए राज्य में एक रजाकारी आतंकवादी संगठन को जुल्म और दमन के आदेश दे दिए और पाकिस्तान को 2 करोड़ रूपये का कर्ज भी दे दिया.

राज्य में हिंदु औरतों पर बलात्कार होने लगे उनकी आंखें नोच कर निकाली जाने लगी और नक्सली तैय्यार किए जाने लगे.

सरदार पटेल निजाम के साथ लंबी लंबी झुठी चर्चाओं से उकता चुके थे अतः उन्होने नेहरू के सामने सीधा विकल्प रखे कि युद्ध के अलावा दुरा कोई चारा नही है। पर नेहरु इस पे चुप रहे |

कुछ समय बीता और नेहरु देश से बाहर गए सरदार पटेल गृह मंत्री तथा उप प्रधान मंत्री भी थे इसलिए उस उस वक़्त सरदार पटेल सेना के जनरलों को तैयार रहने का आदेश देते हुए विलय के कागजों के साथ हैदराबाद के निजाम के पास पहुचे और विलय पे हस्ताक्षर करने को कहा |

निजाम ने मना किया और नेहरु से हुए समझौते का जिक्र किया उन्होंने कहा की नेहरु देश में नहीं है तो वो ही प्रधान हैं |

उसी वक्त नेहरु भी वापस आ रहे थे अगर वो वापस भारत की जमीन पे पहोच जाते तो विलय न हो पाता इस को ध्यान में रखते हुए पटेल ने नेहरु के विमान को उतरने न देने का हुक्म दिया तब तक भारतीय वायु सेना के विमान निजाम के महल पे मंडरा रहे थे | बस आदेश की देरी को देखते हुए निजाम ने उसी वक़्त विलय पे हस्ताक्षर कर दिए | और रातो रात हैदराबाद का भारत में विलय हो गया |

उसके बाद नेहरु के विमान को उतरने दिया गया लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने नेहरु को फ़ोन किया और बस इतना ही कहा " हैदराबाद का भारत में विलय " ये सूनते ही नेहरु ने वो फ़ोन वही एअरपोर्ट पे पटक दिया "

उसके बाद रजाकारो (एम्आईएम्) ने सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया जो 13 सितम्बर 1948 से 17 सितम्बर 1948 तक चला |

भारत के तत्कालीन गृहमंत्री एवं 'लौह पुरूष' सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पुलिस कार्रवाई करने हेतु लिए गए साहसिक निर्णय ने निजाम को 17 सितम्बर, 1948 को आत्म-समर्पण करने और भारत संघ में सम्मिलित होने पर मजबूर कर दिया।

इस कार्यवाई को 'आपरेशन पोलो' नाम दिया गया था। इसलिए शेष भारत को अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद हैदराबाद की जनता को अपनी आजादी के लिए 13 महीने और 2 दिन संघर्ष करना पड़ा था।

यदि निजाम को उसके षड़यंत्र में सफल होने दिया जाता तो भारत का नक्शा वह नहीं होता जो आज है।

वो फ़ोन आज भी संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है |

Sunday, June 2, 2013

एक छोटी सी जानकारी


वेदो के बारे मे तथाकथित दलित विचारक कहते है की वेद पढने का अधिकार कभी शुद्रो को नही था. खैर ये क्या कहते है क्या नही कहते उससे कोई खास फर्क तो नही पङता पर उन महान शुद्र विद्वानो के नाम बताना मै जरुरी समझता हुं जिन्होने वेद लिखने मे अहम भूमिका अदा की.
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1- आचार्य कवस 2- एलुस 3- महिदास 4- ऐतरेय 5- दीर्घतमा 6- औशिज 7- काच्छीवान 8- वत्स 9- काण्वायन 10- सुदछिनच्छेमि 11- रैक्यमुनि 12- सत्यकाम 13- जाबाल
इन सब महान विद्वानो के चरणो मे कोटि कोटि नमन..
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वे आर्य जो न तो वैश्य थे न च्छत्रिय थे वो या तो ब्राह्मण थे या शुद्र थे. वे ब्राह्मण जो अध्ययन के बजाय शिल्प कार्य मे लगे उन्हे शुद्र कहा गया. ( तो क्या ब्राह्मण और शुद्र एक उत्पत्ति के नही हुए???मतलब ब्राह्मण और शुद्र एक ही हैं.) - रिगवेद मण्डल सात सुक्त 32 मंत्र 20
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जो ब्राह्मण वेद पठन पाठन नही करते कराते, अन्यत्र श्रम करते है वे और उनके तत्कालीन वंशज शुद्र होते है. - मनुस्मृति
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महान वैदिक संस्कृति और सभ्यता मे कमी वही निकाल सकते हैं जिन्होने कभी इसका अध्ययन भी नहीं किया हैं ऐसे म्लेच्छो से हम सभी को सावधान रहना चाहीये जो हम लोगो को बाटने के लिये झुठ का सहारा लेते है.कोई भी ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शुद्र जन्म के आधार पर नहीं हो सकता."कर्म" ही इसका पैमाना है,अगर ब्राह्मण शूद्रों की तरह काम करता है तो वह शुद्र है और शुद्र ब्राह्मण की तरह तो वह ब्राह्मण.यही हमारे वेदों की शिक्षा है.इसको तोड़ मरोड़ कर पेश करने वाले तथाकथित ब्राह्मणों और इसे दलित विरोधी बताने वाले स्वयंभू दलित विचारकों से ही महान वैदिक धर्म को खतरा है.

Saturday, June 1, 2013

कहीं देश न जला दे वोटबैंक की राजनीति!

अभी-अभी खबर पढ़ी है की उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार अपने जगजाहिर "आतंकवादी प्रेम" पर एक और  ठप्पा लगते हुए वाराणसी के विश्व विख्यात संकटमोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर सात मार्च, 2006 को हुए आतंकी हमले के आरोपी शमीम के खिलाफ चल रहे मुकदमे को वापस लेने का निर्णय ले लिया है।जैसा की आप जानते हैं की सात मार्च, 2006 को संकट मोचन व कैंट रेलवे स्टेशन पर हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोट के बाद दशाश्वमेध इलाके में भी डेढ़सी पुल के नजदीक एक कुकर बम बरामद हुआ था, जिसे पुलिस ने निष्क्रिय कर दिया था। जांच के दौरान पुलिस व एसटीएफ ने इलाहाबाद के वलीउल्लाह को गिरफ्तार किया था। पूछताछ व सर्विलांस से मिली जानकारी में चंदौली निवासी शमीम अहमद का भी नाम सामने आया।इस सीरियल धमाके में २७ लोग मारे गए थे और दर्शनो घायल हो गए थे.तो क्या अब हमारी राजनितिक पार्टियाँ वोट के लए इतने निचे तक गिर गयी हैं  की आतंकवादियों-देशद्रोहियों को जेल से छोड़ रही हैं और जैसा की अभी कुछ दिन पहले की ख़बरों के मुताबिक एक सिरिअल ब्लास्ट के आरोपी की लू से मौत पर ६ लाख का मुआवजा भी इसी सरकार ने दिया था.अगर इन आतंकवादियों का कोई गुनाह नहीं था तो तमाम सुरक्षा एजेंसियों ने इन्हें पकड़ा ही क्यूँ?या समाजवादी पार्टी की सरकार आते ही सारे आतंकी निर्दोष क्यों हो जाते हैं?ये मनन-चिंतन का विषय है.यूपी की जातिवादी जनता को भी सोचना चाहिए,आखिर जातिवाद के नाम पर इन आतंकवादी विचारधारा की पोषक सरकारों को कब तक सत्ता देंगे?आज स्वर्ग में बैठ कर समाजवाद के प्रणेता राम मनोहर लोहिया की भी आत्मा रो रही होगी की मैंने तो समाजवादी पार्टी बनायीं थी और हमारे अनुयायी इसे नमाज़वादी पार्टी बना दिए.यहाँ एक तथ्य स परिचित कराना और जरूरी है की सपा का यह आतंकवादी प्रेम सिर्फ मुस्लिम वोटबैंक के लिए है लेकिन शायद वो भूल रहे हैं की जिस हमले के दोषी को ये छोड़ रहे हैं उसी हमले में ३ मुसलमान भी मरे थे.लेकिन इससे इनको फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इन्हें तो कुछ ऐसा दिखाना है जिससे इनका मुस्लिम प्रेम उजागर हो.

Thursday, May 16, 2013

ब्रेकिंग न्यूज़


यदि 2014 में कांग्रेस चुनाव जीत जाय तो ब्रेकिंग न्यूज ऐसे हुआ करेंगी -

ब्रेकिंग न्यूज़ - दूध पर लगा बैन अब पीना होगा खून
ब्रेकिंग न्यूज़ - फेसबुक परलगा बैन, सरकार चलाएगी अपनेअखबार
ब्रेकिंग न्यूज़ - शाकाहरी भोजन पर लगेगा tax
ब्रेकिंग न्यूज़ - चीन को सौंपा जाएगा अरुणाचल प्रदेश
ब्रेकिंग न्यूज़ - पाकिस्तान को सौंपा जाएगा आधा कश्मीर ..अब होगी दोस्ती
ब्रेकिंग न्यूज़ - हिन्दू महिला का रेप करने की मुसलमान को होगी आज़ादी (ये क़ानून साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक में कांग्रेस ने शामिल किया है,जिसे अभी पेश नहीं कर पाई है )

यदि 2014 में मोदी की जीत होती है तो

ब्रेकिंग न्यूज़ - सीबीआई नेगिरफ्तार किये सभी केंद्रीय मंत्री, दिग्विजय सिह को हवाई अड्डे पर पाकडागया
ब्रेकिंग न्यूज़- पाक अधिकृत कश्मीर में सेना का ओपरेशन, मारे गए सैंकड़ो आतंकी
ब्रेकिंग न्यूज़ -भारत की सीमा चारो और से सील,,चीन हटा पीछे ..
ब्रेकिंग न्यूज़ -पूरे भारत में अस्त्र शास्त्र बनाने कलिए फैक्ट्री खोली गई.. बड़े पैमाने पर युवाओं की सेना में भरती, रक्षा अनुसन्धान के लिए क़ानून पारित
ब्रेकिंग न्यूज़ - नरेन्द्र मोदी ने काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया...भारत को शुरू में 100 लाख करोड़ रूपया मिला वापस
ब्रेकिंग न्यूज़- पेट्रोल 40 रूपए सस्ता हुआ, डीज़ल सरकार खुद बनाएगी, नहीं होगा आयात,,मिलेगा 10 रूपए में
ब्रेकिंग न्यूज़ - भारत में पहली बार ..योग्यता अनुसार रोजगार का अधिकार कानून पारित
ब्रेकिंग न्यूज़ -सब्सिडी समाप्त, गरीबो को मुफ्त ही मिलेगी gas, मध्यम वर्ग के लिए बनाए जाएंगे बायो gasप्लांट ...
ब्रेकिंग न्यूज़ - विदेशी कंपनियों से वापस लिए गए कोयला भण्डार ... अब बन सकेगीसस्ती बिजली, बाद में दी जाएगी मुफ्त !!
ब्रेकिंग न्यूज़ -बंगलादेशियो को भगाया जाएगा वापस, हिन्दू धर्म परशोध के लिए कमेटी गठित
ब्रेकिंग न्यूज़ -संस्कृत भारत की राष्ट्र भाषा घोषित, संस्कृत विद्वानों का पेनल गठित, किया जाएगा सरलीकरण !! सभी भारतीय भाषाओको मिलेगा अन्ग्रेजी से अधिक सम्मान !! ....... !!
मित्रो ये तो एक छोटा सा प्रस्तुती कारन है ...2014 के बाद भारत का इतिहास सदैवके लिए बदल जाएगा !! ऊपर जाएगा या नीचे ..ये भारत की जनता के कर्मो और वोटिंग वाले दिन किये जाने वाली हरकत पर निर्भर है !!

Sunday, April 14, 2013

कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है


मेरा भी मन करता है की लिखूं फुहारे सावन की
बिंदिया,काजल,कंगन,कुमकुम लिखूं किसी मनभावन की
पर जब भूखे प्यासे बच्चे सड़कों पर चीत्कार करें
कैसे कवितायेँ लिख दूं प्रेयसी और लोकलुभावन की
राजनीति जब गिर जाती है अपराधी के चरणों पर
पुलिस नहीं कुछ कर पाती है हत्या और अपहरणों पर
तब कवि को सत्ता का असली रूप दिखाना पड़ता है
कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है 

न्याय व्यवस्था जब गुंडों के हाथों में बिक जाती है
और कश्मीर की घाटी लाशों से पट जाती है
देशद्रोहियों का जब-जब अभिनन्दन होने लगता है
तब-तब रंग बसंती वाला चोला रोने लगता है 
अफशरशाही जब सत्ता के चरणों पर गिर जाती है
और गीदड़ों की टोली शेरों को आँख दिखाती है
तब कवि को सत्ता का असली रूप दिखाना पड़ता है
कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है 

जब जनसेवक जनता को ही गाली देने लगते हैं
और विदेशी सौदों पर दलाली लेने लगते हैं
राष्ट्रवाद जब सिमित हो जाता हिन्दू हित के नारों तक
और सेकुलर की परिभाषा आतंकी छुडवाने तक
वोट बैंक की राजनीति जब देश जलाने लगती है
और राम की उपस्थिति पर हाथ उठाने लगती है
तब कवि को सत्ता का असली रूप दिखाना पड़ता है
कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है 

युवा शक्ति जब मदिरा के बोतल में गुम हो जाती है
और पश्चिमी सोच हमारी संस्कृति को खा जाती है
शाहरुख़ को जब आदर्शों सा युवा मानने लगता है
अशफाकुल्ला की फांसी पर धूल डालने लगता है
लालबहादुर गुम हो जाते इतिहासों की यादों में
जनता मुर्ख बनी रहती है नेताओं के वादों में
तब कवि को सत्ता का असली रूप दिखाना पड़ता है
कलम उठाकर क्रान्तिकाल का आग जलाना पड़ता है 

Thursday, April 11, 2013

धर्मनिरपेक्षता बनाम शर्मनिरपेक्षता


मित्रों!आज कल धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा एक धर्म विशेष के विरोध तक सीमित हो गयी है.अगर आप हिन्दुओं की बात करते हैं तो सांप्रदायिक हैं और ......की तो धर्मनिरपेक्ष.पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों की बात हो या बांग्लादेश और न्यामार से आये मुसलमानों की.दोनों के मामले में धर्मनिरपेक्षता के अलग-अलग तराजू हैं,बांग्लादेशी घुसपैठियों को नागरिकता देने की जल्दी है,पाकिस्तानी शरणार्थी हिन्दुओं की पीड़ा अनदेखी की जा रही है.मै आभार प्रकट करता हूँ कुछ प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मिडिया की जिन्होंने इस मुद्दे को लोगों के सामने लाने की हिम्मत की और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और मानवाधिकार आयोगों की अप्रत्यक्ष रूप से कलई खोल दी.हाल के कुछ वर्षों में घटित कुछ शर्मनिरपेक्ष(मै इसे धर्मनिरपेक्ष नहीं कह सकता) बयानों की कड़ियाँ आपको प्रस्तुत कर रहा हूँ.निर्णय स्वयं आप को लेना है.यह धर्मनिरपेक्षता है या शर्म निरपेक्षता है.
जरा इनके बयानों का विरोधाभास देखिये....
हजारों सिखों का कत्लेआम – एक गलती
कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार – एक राजनैतिक समस्या
गुजरात में कुछ हजार लोगों द्वारा मुसलमानों की हत्या – एक विध्वंस
बंगाल में गरीब प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी – गलतफ़हमी
गुजरात में “परजानिया” पर प्रतिबन्ध – साम्प्रदायिक
“दा विंची कोड” और “जो बोले सो निहाल” पर प्रतिबन्ध –धर्मनिरपेक्षता
कारगिल हमला – भाजपा सरकार की भूल
चीन का 1962 का हमला – नेहरू को एक धोखा
जातिगत आधार पर स्कूल-कालेजों में आरक्षण – सेक्यूलर
अल्पसंख्यक संस्थाओं में भी आरक्षण की भाजपा की मांग – साम्प्रदायिक
सोहराबुद्दीन की फ़र्जी मुठभेड़ – भाजपा का सांप्रदायिक चेहरा
ख्वाजा यूनुस का महाराष्ट्र में फ़र्जी मुठभेड़ – पुलिसिया अत्याचार
गोधरा के बाद के गुजरात दंगे - मोदी का शर्मनाक कांड
मेरठ, मलियाना, मुम्बई, मालेगाँवमथुरा,फैजाबाद,पश्चिम बंगाल  आदि-आदि-आदि दंगे - एक प्रशासनिक विफ़लता
हिन्दुओं और हिन्दुत्व के बारे बातें करना – सांप्रदायिक
इस्लाम और मुसलमानों के बारे में बातें करना – सेक्यूलर
संसद पर हमला – भाजपा सरकार की कमजोरी
अफ़जल गुरु को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सालों तक टाले रखना – मानवीयता
भाजपा के इस्लाम के बारे में सवाल – सांप्रदायिकता
कांग्रेस के “राम” के बारे में सवाल – नौकरशाही की गलती
यदि कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीती – सोनिया को जनता नेस्वीकारा
मोदी गुजरात में चुनाव जीते – फ़ासिस्टों की जीत
सोनिया मोदी को कहती हैं “मौत का सौदागर” – सेक्यूलरिज्म को बढ़ावा
जब मोदी अफ़जल गुरु के बारे में बोले – मुस्लिम विरोधी !

Sunday, March 31, 2013

अविश्वसनीय किन्तु सत्य


आप माने या न माने लेकिन हमारे देश में मरने के बाद भी तीन दशकों से एक सिपाही सरहदों की रक्षा कर रहा है। इस सिपाही को अब लोग कैप्टन बाबा हरभजन सिंह के नाम से पुकारते हैं।

4 अक्टूबर 1968 में सिक्किम के साथ लगती चीन की सीमा के साथ नाथुला पास में गहरी खाई में गिरने से मृत्यु हो गई थी। लोगों का ऐसा मानना है कि तब से लेकर आज तक यह सिपाही की आत्मा सरहदों की रक्षा कर रही है। इस बात पर हमारे देश के सैनिकों को पूरा विश्ववास तो है ही लेकिन चीन के सैनिक भी इस बात को मानते हैं क्योंकि उन्होंने कैप्टन बाबा हरभजन सिंह को मरने के बाद घोड़े पर सवार होकर सरहदों की गश्त करते हुए देखा है। कैप्टन हरभजन सिंह का जन्म 3 अगस्त 1941 को पंजाब के कपूरथला जिला के ब्रोंदल गांव में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1966 में 23वीं पंजाब बटालियन ज्वाइन की थी। वह सिक्किम जब 4 अक्टूबर 1968 में टेकुला सरहद से घोड़े पर सवार होकर अपने मुख्यालय डेंगचुकला जा रहे थे तो वह एक तेज बहते हुए झरने में जा गिरे और उनकी मौत हो गई। उन्हें पांच दिन तक जीवित मानकर लापता घोषित कर दिया गया था। पांचवें दिन उनके साथी सिपाही प्रीतम सिंह को सपने में आकर मृत्यू की जानकारी दी और बताया की उनका शव कहां पड़ा है। उन्होंने प्रीतम प्रीतम सिंह से यह भी इच्छा जाहिर की कि उनकी समाधि भी वहीं बनाई जाए। पहले प्रीतम सिंह कि बात का किसी ने विश्वास नहीं कि लेकिन जब उनका शव उसी स्थल पर मिला जहां उन्होंने बताया था तो सेना के अधिकारियों को उनकी बात पर विश्वास हो गया। और सेना के अधिकारियों ने उनकी छोक्या छो नामक स्थान पर उनकी समाधि बना डाली। उनके आज भी रात को ही जवान वर्दी को प्रेस कर देते हैं उनके जूतों को पॉलिश कर दिया जाता है क्योंकि ऐसी धारणा है कि उन्हें सुबह सरहद पर डयूटी पर जाना होता है। उनके कमरे में रोजाना सफाई की जाती है सरकार ने उन्हें मृत न घोषित करते हुए उनकी सेवाओं को जारी रखा, उनके परिवार के सदस्यों को पेंशन नहीं मिलती थी उनका वेतन उनके घर बाकायदा फौज के जवान देकर जाते थे। मरने के बाद बाबा कैप्टन बाबा को सेना के अधिकारियों ने सिपाही से पदोन्नत कर कैप्टन बना दिया। वह किसी न किसी तरह सीमा के पार होने वाली गतिविधियों की जानकारी आज भी सेना के अधिकारियों को दे देते हैं। अब काफी समय के बाद सेना ने उनका वेतन बंद कर दिया है। हालांकि उनकी समाधि पर चढऩे वाला चढ़ावा उनके घर आज भी भिजवा दिया जाता है।


हर वर्ष उन्हें 15 सितंबर से 15 नंवबर तक वार्षिक छुट्टी पर जाना होता है। इस दौरान फौज के दो सिपाही उनका सामान लेकर घर जाते हैं और उनकी छुट्टी खतम होने पर उनका सामान वापस लेकर आते है। इस दौरान युनिट के सभी फौजियों की छुट्टियां रद्द कर दी जाती हैं। सिक्कम के लोग भगवान कंचनजुंगा के बाद दूसरा भगवान इन्हें मानते हैं।


Tuesday, March 19, 2013

मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की 101 वजहें




साभार-हरीश चन्द्र बर्णवाल
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1- मोदी इस समय देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। हाल के तमाम सर्वे से ये जाहिर है। यहां तक कि कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हों या सोनिया गांधी या फिर बीजेपी की तरफ से कोई भी नेता उनके आसपास नहीं टिकता।
2- प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी ज्यादा लोगों की पहली पसंद हैं। हाल के सर्वे से भी यही बात सामने आई है। नीलसल सर्वे के साथ किए गए एक न्यूज चैनल के सर्वे के मुताबिक मोदी को 48 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री पद के लिए पहली पसंद बताया जबकि महज सात फीसदी लोगों की पसंद मनमोहन सिंह हैं। सर्वे में कोई दूसरा नेता मोदी के आसपास नहीं दिखता। वहीं एक न्यूज साइट पर कराए गए ओपन सर्वे में 90 फीसदी लोगों ने मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी पहली पसंद बताया।
3- मोदी आम लोगों से जुड़े नेता हैं। ये बात कई दूसरे नेताओं के लिए भी कही जा सकती है लेकिन सवाल प्रधानमंत्री पद के दावेदारों का है। दावेदारों की लिस्ट में जिन लोगों के नाम लीजिए। उनमें से कई तो पार्टी को मिलने वाली सीटों के आधार पर छंट जाएंगे (मसलन नीतीश कुमार) या फिर वो आम इंसान की तरह जिंदगी गुजारते हुए इतने ऊंचे ओहदे तक नहीं पहुंचे होंगे (मसलन राहुल गांधी) या फिर वो आम लोगों से जुड़े नेता नहीं होंगे (मसलन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह)।
4- मोदी चुनाव जीतकर सियासी मैदान में आते हैं, सिर्फ गुटबाजी या रणनीति बनाने में ही माहिर नहीं हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मोदी न सिर्फ कभी भी, कहीं भी चुनाव जीतने का माद्दा रखते हैं बल्कि रणनीतिक तौर पर भी कुशल राजनीतिक कारीगर हैं। कम से कम गुजरात में न कोई राजनीतिक विरोध दिखता है और न ही पार्टी के भीतर कोई प्रभावशाली गुट हावी हो पाया है।
5- सियासी तौर पर मोदी की आभा को डिकोड करने की कोशिश करूं तो वो न सिर्फ अपने राज्य से बाहर देश के कई इलाकों से अपनी सीट जीतने का माद्दा रखते हैं बल्कि अगर घोषित तौर पर उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार बना दिया जाए तो अकेले दम पर कम से कम 100-150 लोकसभा सीटों पर असर डाल सकते हैं।
6- मोदी को पूरे देश में बड़ा जनाधार हासिल है। सिर्फ गुजरात ही नहीं देश के कई राज्यों का एक बड़ा तबका मोदी की ओर देख रहा है। मोदी जहां जाते हैं, लोगों और मीडिया के आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।
7- चुनावी नतीजे मोदी की दावेदारी को और पुख्ता करते हैं। लगातार तीन बार उन्होंने गुजरात का चुनाव भारी बहुमत से जीता है। भारी विरोध और विपक्ष द्वारा पूरी ताकत लगाने के बावजूद मोदी का कद बढ़ा ही है।
8- मोदी खुद को गुजरात ही नहीं बल्कि देश के एक बड़े तबके में विकास पुरुष के तौर पर प्रोजेक्ट करने में कामयाब रहे हैं।
9- मोदी को यूथ से खुद को जोड़ने में कामयाबी मिली है। कई सर्वे से भी ये बात सामने आई है। इस समय देश का एक बड़ा तबका युवाओं का है, जिनके लिए बेरोजगारी, विकास, महंगाई और भ्रष्टाचार एक बडा मुद्दा है। मोदी इन मुद्दों को एक विजन के साथ पेश करते हैं। दिल्ली के SRCC कॉलेज में मोदी के भाषण में इसकी झलक दिखाई पड़ी।
10- मोदी महिलाओं में भी उतने ही लोकप्रिय हैं। Open/C-Voter के सर्वे से साफ है कि राहुल की तुलना में मोदी न सिर्फ पुरुष वोटरों की पसंद हैं बल्कि ज्यादातर महिलाओं ने भी मोदी पर ही भरोसा जताया है।
11- हर उम्र के लोगों में नरेंद्र मोदी ज्यादा लोकप्रिय है। Open/C-Voter के सर्वे में यूथ, बीच की उम्र के लोग और सीनियर सिटीजन्स के ऊपर सर्वे किया गया। मोदी सारे ग्रुप में ज्यादा लोकप्रिय हैं। हालांकि सोशल ग्रुपिंग, एजुकेशनल और इनकम ग्रुप में कहीं-कहीं वो कमजोर पड़ते नजर आते हैं लेकिन कुल मिलाकर औसत निकालें तो मोदी सब पर भारी नजर आते हैं।
12- इस समय के हालात में 2014 के चुनाव को देखते हुए एक तरफ जहां कांग्रेस खुलकर राहुल गांधी पर खेलने का फैसला कर चुकी है, वहीं बीजेपी की तरफ से मोदी की दावेदारी मजबूत है। अब अगर इन दोनों में ही तुलना की जाए तो राहुल की तुलना में मोदी ज्यादा लोगों की पसंद हैं। एक न्यूज चैनल के साथ कराए गए नीलसन सर्वे के मुताबिक देश की 48 फीसदी जनता ने अगर मोदी को पहली पसंद बताया तो महज 18 फीसदी जनता राहुल के साथ नजर आई। वहीं इंडिया टुडे पत्रिका ने भी 12,823 लोगों से बातचीत के आधार पर एक सर्वे किया। इसमें भी प्रधानमंत्री पद के लिए 36 फीसदी लोगों की पसंद मोदी थे, जबकि महज 22 फीसदी लोगों ने राहुल को अपनी पहली पसंद बताया। बाकी कई चैनलों के सर्वे का भी यही हाल है।
13- मोदी हर वक्त आम जनता से जुड़े रहते हैं। चाहे वो सोशल नेटवर्किंग साइट ही क्यों न हो, इंटरव्यू के लिए बड़ी आसानी से उपलब्ध रहते हैं। गुजरात जैसे राज्य का मुख्यमंत्री होने के बावजूद कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी हर जगह के लिए न सिर्फ उपलब्ध होते हैं, बल्कि उनकी इस व्यस्तता के बावजूद सरकारी कामकाज में भी कोई फर्क नहीं पड़ता। जरा किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री या किसी पार्टी के ही बड़े नेता को बुलाकर देख लीजिए। कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं।
14- मोदी में निर्णय लेने की क्षमता है, वो बिना किसी दबाव के फैसले ले सकते हैं। क्या प्रधानमंत्री के दावेदारों में किसी दूसरे नेता के लिए ये बात बोल सकते हैं?
15- सिर्फ जेडीयू को छोड़ दें सहयोगी दलों में किसी को भी मोदी को समर्थन देने में कोई दिक्कत नहीं है। एक अहम सवाल तो खुद जेडीयू को लेकर है कि आखिर 20 सीटों के साथ जेडीयू की हैसियत ही क्या है। बल्कि बिहार बीजेपी के लोगों की मानें तो नीतीश की वजह से बिहार में पार्टी दोयम दर्जे की हो गई है। अगर नीतीश को छोड़कर बीजेपी मोदी के भरोसे चुनाव लड़े, तो बड़ी आसानी से न सिर्फ पुरानी परफोर्मेंस को दोहरा सकती है बल्कि उससे ज्यादा सीट भी हासिल कर सकती है। यही नहीं अगर नीतीश बीजेपी से अलग रास्ते पर चलना चाहते हैं तो क्या जेडीयू 20 सीट दोबारा हासिल कर पाएगी।
16- खुद जेडीयू में मोदी को लेकर मतभेद हैं। मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व का आलम ये है कि जेडीयू सांसद जय नारायण निषाद ने ही न सिर्फ मोदी को खुला समर्थन दे दिया, बल्कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपने घर में दो दिनों का यज्ञ करवाया। इससे मोदी की लोकप्रियता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
17- बीजेपी में मोदी के नाम में एकमत बन सकता है। पार्टी के कई बड़े नेता खुलकर मोदी को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाने की वकालत कर चुके हैं। क्या पिछले चंद सालों में किसी दूसरे नेता के लिए ये बात कही जा सकती है?
18- बीजेपी के भीतर भी मोदी के अलावा कोई दूसरा बड़ा नाम नहीं, जो जमीन से जुड़ा हो। यहां तक कि ज्यादातर सर्वे में आडवाणी भी मोदी से पिछड़ते नजर आए।
19- नरेंद्र मोदी को संघ का भी पूरा समर्थन हासिल है। ये सब कुछ जानते हुए भी कि मोदी की कार्यशैली संघ की कार्यशैली से बिल्कुल अलग है। खुद मोदी के नेतृत्व में गुजरात में संघ उतना प्रभावशाली नहीं रहा।
20- दंगों के दाग लगने के बाद भी मोदी अपनी छवि बदलने में कामयाब रहे हैं।
21- मोदी पर भ्रष्टाचार का कभी कोई आरोप नहीं लगा
22- महज एक राज्य का मुख्यमंत्री होने के बावजूद मोदी ने गुजरात मॉडल को पूरी दुनिया के सामने पेश किया, जिसकी हर तरफ वाहवाही हो रही है।
23- मोदी की धीरे-धीरे विदेशों में भी स्वीकार्यता बढ़ी है। यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन और अमेरिका के राजदूत ने इस बात को माना है।
24- मोदी को लेकर पूरी दुनिया की सोच बदली है। खुद बड़े देश सामने आ कर उनसे संपर्क साधने में जुटे हैं। ब्रिटेन के राजदूत गुजरात जाकर नरेंद्र मोदी से मिले। साफ है मोदी ने विकसित देशों के नुमाइंदों को भी झुकने के लिए मजबूर किया। अगर मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएं तो इस देश की विदेश नीति कितनी मजबूत और ताकतवर होगी, आप समझ सकते हैं।
25- अमेरिका में वार्टन इंडिया इकोनॉमिक फोरम ने भले ही मुट्ठी भर लोगों के विरोध के बाद मुख्य वक्ता नरेंद्र मोदी के भाषण को रद्द कर दिया, लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ, उससे मोदी के प्रभाव का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर करने वाली सभी कंपनियों ने हाथ पीछे खींच लिए। सबसे पहले मुख्य स्पॉन्सर अडानी ग्रुप ने किनारा किया। इसके बाद सिल्वर स्पॉन्सर कलर्स और फिर ब्रॉन्च स्पॉन्सर हेक्सावेअर ने हाथ खींच लिए। यही नहीं इस ग्रुप से जुड़े लोगों ने भी शामिल होने से इनकार कर दिया। शिवसेना नेता सुरेश प्रभु ने फोरम में जाने से इनकार कर दिया। पेन्सिलवेनिया मेडिकल स्कूल की एसोसिएट प्रोफेसर डा. असीम शुक्ला ने इसके खिलाफ मुहिम छेड़ दी। वहीं अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट से संबद्ध और वाल स्ट्रीट जर्नल के स्तंभकार सदानंद धूमे ने ट्वीट कर वार्टन इंडिया इकोनॅामिक फोरम से दूर रहने का एलान किया। न्यूजर्सी में रहने वाले प्रख्यात चिकित्सक और पद्मश्री से सम्मानित सुधीर पारिख ने विरोध दर्ज करते हुए इस सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया।
26- यही नहीं वॉल स्ट्रीट जनरल द्वारा कराए गए जनमत सर्वेक्षण में 94 फीसदी लोगों ने मोदी के आमंत्रण रद्द करने को गलत माना है। इसके बाद अमेरिका में फ्री स्पीच को लेकर एक मुहिम भी छेड़ दी गई। US India Business Council के चेयरमैन रॉन सोमर्स ने भी मोदी का कार्यक्रम रद्द करने पर नाखुशी जताई
27- गुजरात दंगों को छोड़ दें तो मोदी कभी विवादों में नहीं रहे, कभी आपत्तिजनक बयानबाजी नहीं की, जैसे कि इस समय तमाम दिग्गज नेताओं का मीडिया में छाए रहने का शगल बन चुका है।
28- मोदी एक सुलझे हुए नेता माने जाते हैं। वो दूरदर्शी हैं। किसी भी मुद्दे को लेकर उहापोह की स्थिति में नहीं रहते, जो कि एक अच्छे statesman की पहचान है।
29- मोदी का मीडिया के साथ भी बहुत मित्रतापूर्ण बर्ताव रहा है।
30- मोदी बीजेपी के इस समय करिश्माई नेता हैं। उनकी तुलना में बीजेपी के सेकेंड जेनरेशन का कोई नेता टिकता नजर नहीं आता है।
31- मोदी के प्रति शहरी और युवा मतदाताओं में आकर्षण है। मोदी इनका भरोसा जीतने में कामयाब रहे हैं।
32- मोदी टेक्नोलॉजी फ्रेंडली हैं। नई-नई तकनीक का न सिर्फ इस्तेमाल करते हैं बल्कि युवाओं को प्रोत्साहित भी करते हैं।
33- आम लोगों के बीच लोकप्रिय होने के अलावा उद्योगपतियों के बीच भी मोदी बेहद लोकप्रिय है। उद्योगपतियों के बीच अच्छी पैठ है। मोदी की तमाम बैठकों और कार्यक्रमों में जिस तरह से उद्योगपति खिंचे चले आते हैं, यही कोशिश तो विकास के नाम पर देश की तमाम सरकारें कर रही हैं।
34- नैनो के बंगाल से गुजरात जाने के दौरान मोदी ने विकास को लेकर अपनी एक बेहतरीन छवि बनाई। बंगाल में भले ही टाटा के इस प्रोजेकट को लेकर काफी हंगामा हुआ हो, लेकिन गुजरात शिफ्ट करने के दौरान न तो वहां के आम लोगों को दिक्कत हुई और न ही टाटा को।
35- सिर्फ उद्योगों के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि मोदी ने बाकी क्षेत्रों में भी विकास का काम किया है।
36- समग्र विकास को लेकर मोदी के पास अपना विजन है। कम से कम दिल्ली के एसआरसीसी कॉलेज में मोदी ने अपने लेक्चर के दौरान इसे बेहतरीन तरीके से पेश किया। इसमें खेती से लेकर उद्योग तक हर मुद्दे पर बात हुई।
37- 2002 के गुजरात दंगों को छोड़ दें तो गुजरात में इसके बाद कोई दंगा नहीं हुआ।
38- दंगों को लेकर भले ही नरेंद्र मोदी के दामन पर दाग लगाने की कोशिश की जाती रही हो, लेकिन हकीकत ये है कि अब तक किसी अदालत ने उन्हें दोषी करार नहीं दिया है। खासकर गोधरा कांड के बाद जिस तरह से प्रतिक्रिया में गुजरात दंगे हुए उसे रोकना वाकई मुश्किल था। भारत में बदले को लेकर दंगा फसाद पहले भी हो चुका है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जिस तरह से सिखों का कत्लेआम किया गया, उसके बाद खुद राजीव गांधी ने ही कहा था कि \"When a big tree falls the earth must shake\". हालांकि न तो इस स्टेटमेंट का समर्थन किया जा सकता है और न ही गुजरात दंगों को कभी जायज ठहराया जा सकता है। इस मामले में मेरी राय ये है कि दोषियों को भी सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए, लेकिन क्या एक खास परिस्थिति में दंगों को न रोक पाने की वजह से मोदी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर सवाल उठाना सही है?
39- दंगों की वजह से गुजरात की न सिर्फ देश में बदनामी हुई बल्कि दूसरे शब्दों में कहें तो पूरी दुनिया में भारत की जमकर बदनामी हुई, लेकिन जिस तरह से पिछले चंद सालों में मोदी ने अपनी मेहनत की वजह से गुजरात की पहचान बदली। इसे मोदी की बड़ी सफलता माना जाएगा। क्या देश को ऐसे ही Statesperson की जरूरत नहीं है?
40- दंगों को लेकर भले ही ये आरोप लगते रहे हों कि मोदी ने इसे होने दिया और पूरा प्रशासनिक अमला हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा, लेकिन हकीकत ये है कि मोदी न सिर्फ सक्रिय थे, बल्कि तमाम कार्रवाई सुनिश्चित कराने के अलावा उन्होंने 28 फरवरी 2002 को रक्षा मंत्री से भी बात की और तत्काल कार्रवाई करने की मांग की। रामजेठमलानी ने SUNDAYGUARDIAN में लिखे अपने लेख में इसे विस्तार से बताया गया है। साथ ही बताया है कि कैसे मोदी फौरन सक्रिय हो गए और दंगों को रोकने की भरपूर कोशिश की।
41- वरिष्ठ वकील रामजेठमलानी ने तथ्यों के आधार पर ये भी सिद्ध करने की कोशिश की है कि गोधरा कांड के बाद दंगा स्टेट प्रायोजित नहीं था। लेख के मुताबिक दंगों के शुरुआती छह दिनों में 61 हिंदुओं और 40 मुस्लिमों की मौत हुई थी। जेठमलानी के तर्क आप SUNDAYGUARDIAN में छपे उनके लेख में पढ़ सकते हैं।
42- 27 दिसंबर 2002 को गोधरा कांड के फौरन बाद मोदी ने अपने सभी 70 हजार सुरक्षाकर्मियों को सड़कों पर उतार दिया। (The Hindustan Times Feb 28, 2002), गुजरात पुलिस ने शुरुआती तीन दिनों में 4,000 राउंड फायर किए। 27 हजार लोगों को गिरफ्तार किया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन जॉन जोसेफ ने लिखा कि - 6 अप्रैल तक 126 लोग पुलिस की गोलियों में मारे गए। इसमें 77 हिंदू थे। साफ है मोदी के खिलाफ मुस्लिमों पर भेदभाव बरतने के आरोप गलत साबित होते हैं। बल्कि उस समय मीडिया में छपे कई लेख में तो गुजरात पुलिस के खिलाफ कुछ दूसरे ही आरोप लगे हैं...वो भी पत्रिकाओं के हवाले से।
43- मोदी को भले ही हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय के तौर पर प्रचारित किया जाता रहा हो, लेकिन मोदी के राज में कई मंदिरों को गैर कानूनी निर्माण की वजह से ढहा दिया गया। सिर्फ एक महीने के भीतर 80 ऐसे मंदिरों को गिरा दिया गया, जिसका निर्माण गैर कानूनी तौर पर सरकारी जमीन पर हुआ था। साफ है मोदी के मिशन का पहला नारा विकास है।
44- 2001 की जनगणना के मुताबिक गुजरात की आबादी का 9 फीसदी हिस्सा मुस्लिमों का है, यानी गुजरात में 45 लाख मुस्लिम हैं। लेकिन इनकी साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा 73 फीसदी थी। यही नहीं सेक्स रेशियो और कामकाज में जुटे आंकड़ों में ये राष्ट्रीय औसत से बेहतर हैं। जामनगर के एक आर्किटेक्ट अली असगर ने एक लेख में लिखा कि \"अगर लोग बेरोजगार होंगे, तो हिंसा होगी। अब चूंकि हर किसी काम मिल रहा है... तो दंगे क्यों होंगे।\"
45- समय गुजरने के साथ मुस्लिमों का भरोसा भी नरेंद्र मोदी पर बढ़ा है। Open/C-Voter सर्वे के मुताबिक मुस्लिमों की भलाई और साम्प्रादियक सद्भाव के मुद्दे पर भी अल्पसंख्यकों का भरोसा मोदी पर बढ़ता नजर आता है। दलित, नक्सल औऱ कश्मीर जैसे मुद्दे के हल के लिए तो लोगों ने मोदी पर खुलकर भरोसा जताया है।
46- भले ही देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोधी पार्टी और नेता मोदी को दंगों के आधार पर घेरने की कोशिश करते हैं, लेकिन खुद गुजरात में मुसलमानों के रुख में नरमी आई है और कई जगह पर मुस्लमों ने मोदी के लिए वोट किया है - ये कहना है खुद जमीयते उलेमा के महासचिव मौलाना महमूद मदनी का। इंडिया टुडे में छपे एक इंटरव्यू में मदनी ने यहां तक कहा कि गुजरात में मुस्लिमों ने बहुत तरक्की की है, बल्कि तथाकथित कुछ सेक्युलर सरकारों से ज्यादा तरक्की गुजरात के मुसलमानों ने की है।
47- मोदी को न सिर्फ अल्पसंख्यक लोगों का समर्थन धीरे-धीरे हासिल हो रहा है, बल्कि जरूरत पड़ने पर मोदी ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को टिकट देने में भी पूरा भरोसा जताया है। लोकल बॉडी चुनाव में जामनगर इलाके में मोदी ने 27 सीटों के लिए 24 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को खड़ा कर दिया, इसमें 9 महिलाएं थीं। आश्चर्य की बात ये है सभी 24 मुस्लिम उम्मीदवारों ने यहां बीजेपी के कोटे से जीत हासिल की।
48- अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि निचले तबके के लोगों का भी मोदी को समर्थन हासिल है।
49- मोदी ने कभी जात-पांत की राजनीति नहीं की, जो कि इस समय देश के कई बड़े राज्यों के लिए जहर के समान हो चुकी है।
50- मोदी ने कभी भी क्षेत्रवाद को प्रश्रय नहीं दिया और न ही राजनीति की, बल्कि हमेशा राष्ट्रीय सोच के साथ आगे बढ़े।
51- मोदी ने न सिर्फ क्षेत्रवाद की राजनीति को रोका बल्कि एक कदम आगे बढ़कर देश के हर राज्य के युवाओं को गुजरात आने के लिए कहा। एक तरफ जहां देश के हर राज्य में लोग दूसरे राज्य के लोगों का विरोध करते हैं। राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं, वहीं मोदी ताल ठोककर ये कहते हैं कि गुजरात आकर रोजी रोटी कमाओ और देश का विकास करो।
52- क्षेत्रवाद से परे मोदी ने जिस तरह से गुजरात के लोगों की सोच बदली, ऐसे मौके पर मोदी देश की एक बड़ी जरूरत बन चुके हैं। खासतौर पर राष्ट्रीय एकता बहाल करने के लिए मोदी को हर हाल में देश की केंद्रीय सत्ता सौंपनी चाहिए।
53- मोदी गुजरात का मुख्यमंत्री होने के बाद भी खुद को राष्ट्रीय नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने में कामयाब रहे हैं।
54- एक आश्चर्यजनक तथ्य ये है कि मोदी की स्वीकार्यता पूरे देश में बढ़ी है। अब वो सिर्फ पश्चिम भारत ही नहीं बल्कि पूर्व, उत्तर और दक्षिण भारत में भी लोगों की पहली पसंद बन चुके हैं। Open/C-Voter के सर्वे में एक खास तथ्य ये सामने आया कि मोदी दक्षिण भारत में किसी भी दूसरे नेता के मुकाबले दोगुना ज्यादा लोगों की पसंद बन चुके हैं। जबकि हकीकत ये है कि दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़कर बीजेपी का कोई जनाधार नहीं है। एक आश्चर्य ये भी है कि पश्चिम भारत में ही मोदी राहुल से एक प्वाइंट पीछे नजर आते हैं।
55- मोदी एक मजबूत सियासी नेता हैं। सियासत की जमीन पर तप कर आगे बढ़े हैं और उन्हें सियासत की बारीक समझ है। जाहिर है स्थायित्व और विकास के लिए इस देश को तपस्वी राजनीतिज्ञ की जरूरत है।
56- सियासी हलकों में और मीडिया के लिहाज से ये माना जाता है एक बड़ा नेता वो है, जिसके सबसे ज्यादा सियासी दुश्मन हों। इस देश में इस समय नरेंद्र मोदी इस लिस्ट में नंबर वन पर आएंगे जिनके सियासी दुश्मन सबसे ज्यादा होंगे, लेकिन इसके बाद भी मोदी कभी मैदान छोड़कर नहीं भागे, बल्कि मुकाबला करते हुए आगे ही बढ़ रहे हैं।
57- इस समय देश के सामने सबसे बड़ी विडंबना ये है कि मुश्किल की घड़ी में सर्वोच्च पद पर बैठे नेता सामने नहीं आते। खुलकर अपने बयान नहीं देते, बल्कि खुद को एसी कमरों में कैद कर लेते हैं। मोदी के सत्ता के शिखर पर बैठने से ये मुश्किल दूर हो जाएगी।
58- मोदी भले ही संघ की पसंद बन गए हों, लेकिन ऐसा नहीं है कि मोदी सिर्फ संघ के आदेशों का अनुसरण करेंगे, बल्कि अपने हिसाब से फैसले लेंगे। मोदी के अब तक के तेवर से साफ है कि वो वहीं काम करेंगे जो विकास के लिए जरूरी होगा।
59- मोदी एक्सपेरिमेंट करने में माहिर हैं, चाहे वो अपनी ब्रांडिंग हों, नई तकनीक से जुड़ाव हो या फिर विकास की कोई नई नीति। मसलन - गुजरात वाइब्रेंट, गूगल प्लस से लोगों से जुड़ना, राज्य में आयोजित कई तरह के महोत्सव। हकीकत ये है कि देश का विकास करना हो या फिर नई राह पर ले जाना हो तो एक्सपेरिमेंट करने ही होंगे। वर्ना पुराने रास्ते को पकड़कर तेज प्रगति मुश्किल है।
60- मोदी को अपने विरोधियों से निपटने का हुनर मालूम है। मसलन चुनाव से पहले गुजरात में कांग्रेस ने वादों की झड़ी लगाकर एकबारगी मोदी के लिए मुश्किल पैदा कर दी, लेकिन मोदी के वादों ने कांग्रेस के दावों को हवा कर दिया। हालांकि इस हुनर का गलत इस्तेमाल होने की भी आशंका है, लेकिन ये डर तो हर किसी के साथ है।
61- मोदी को इसलिए भी प्रधानमंत्री बनना चाहिए क्योंकि वो सत्ता पक्ष में बैठे लोगों के भी पहले नंबर के सियासी दुश्मन हैं। इसके बाद भी वो न सिर्फ डटे हुए हैं, बल्कि गुजरात से ही केंद्र को सीधी चुनौती देते हैं।
62- मोदी पर भले ही गुजरात दंगों के आरोप हों, लेकिन मोदी ने कभी भी सांप्रदायिक बात नहीं की। उन्होंने खुद को विकास पुरुष के तौर पर पेश करने में सफलता पाई, जबकि हकीकत यही है कि आज तमाम पार्टियां खुलकर अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए नियम कायदे ताक पर रख देती हैं, लेकिन क्या कभी मोदी ने बहुसंख्यकों के समर्थन में ही कभी कोई सांप्रदायिक बात की?
63- मोदी ने ये वादा भी किया कि गुजरात में दोबारा ऐसे दंगे नहीं होने दिए जाएंगे। ये खुद जर्मन राजदूत ने मीडिया के सामने बयान में कहा। उदाहरण भी सामने है कि गुजरात में मोदी के शासन में दोबारा कोई दंगा नहीं हुआ। यही नहीं एक दूसरा उदाहरण दूं तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश राज में एक साल के भीतर 100 से ज्यादा दंगे हुए। ये अब भी जारी है। क्या सिर्फ इसी वजह से अखिलेश को मुख्यमंत्री पद से हटा देना चाहिए या फिर उन्हें हमेशा के लिए प्रधानमंत्री पद से वंचित कर दिया जाना चाहिए। साफ है कि हालात को देखते हुए इसका आकलन करना चाहिए।
64- अगर सिर्फ विकास के नाम पर चुनाव लड़ा जाए तो मोदी सब पर भारी पड़ेंगे। अब ये देश तो तय करना है कि दंगे के विवाद को लेकर हर वक्त रोना रोया जाए और अदालती फैसले से पहले ही मोदी को दोषी करार दिया जाए या फिर विकास का सपना देख रहे लोग मोदी को एक मौका दें।
65- मोदी बहुत अच्छे मैनेजर हैं। देश के प्रधानमंत्री पद पर ऐसे शख्स का होना जरूरी है, जो सभी चीजों को एक साथ मैनेज कर सके।
66- मोदी के नेतृत्व में पार्टी में अनुशासन कायम है। हकीकत ये है कि कोई भी नेता तभी अच्छा काम कर पाएगा जब उसे पार्टी के भीतर ही गुटबाजी का सामना न करना पड़े। हर जगह ये परेशानी बहुतायत में दिखती है, लेकिन गुजरात में मोदी के नेतृत्व में ऐसा कभी नहीं हुआ। कभी कोई पार्टी के भीतर गुटबाजी करने के बाद भी पार्टी को नुकसान नहीं पहुंचा पाया
67- मोदी सियासी विरोधियों को भी अपने करीब लाने का हुनर जानते हैं। ये सबको पता ही है कि किस तरह से केशुभाई ने गुजरात में मोदी को परेशान करने की कोशिश की, लेकिन आखिरकार जब मोदी चुनाव जीते तो सबसे पहले केशुभाई का आशीर्वाद लेकर उनका दिल जीत लिया। इस देश का एक सच ये है कि जब कोई शख्स सत्ता के शिखर पर पहुंच जाता है तो अपने सियासी दुश्मनों ने गिन-गिनकर बदले लेता है, लेकिन मोदी की यही अदा उन्हें सबसे अलग बनाती है।
68- मोदी पारिवारिक दुनिया से दूर नजर आते हैं। सत्ता और रिश्ते का कभी घालमेल नहीं दिखता। ऐसे शख्स की खासियत ये होती है कि उसे धन दौलत से ज्यादा मोह नहीं होता। इस मामले में मोदी वाजपेयी जैसे नजर आते हैं।
69- मोदी की कोई संतान नहीं, सिवाय बुजुर्ग मां के कभी किसी रिश्तेदार से करीबी नहीं, जिसके लिए भ्रष्टाचार करने की नौबत आए। (अतिश्योक्तिपूर्ण लग सकता है आपको? लेकिन ऐसे लोग ही इतिहास बदलते हैं, जिसकी मिसाल मोदी देते आए हैं।)
70- मोदी की उम्र 62 साल है, यानी वो इतनी उम्र पूरी कर चुके हैं अच्छा खासा अनुभव जुटा सकें। साथ ही ऐसी उम्र भी नहीं जहां भारतीय राजनीति का मतलब बुजुर्ग नेता ही नजर आते हों। गौरतलब है कि कैबिनेट में मंत्रियों की औसत उम्र 64 साल है।
71- मोदी में आज भी वही सादगी बरकरार है, जो उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले मौजूद थी। वो भले ही चार बार से गुजरात के मुख्यमंत्री हों, लेकिन सादगी में कभी कोई कमी नहीं आई। उनकी मां आज भी उसी मकान में रहती हैं, जहां पहले रहती थीं।
72- इस चुनाव में बीजेपी की सबसे बड़ी मजबूरी ये है कि उसने पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए हिंदुत्व के मॉडल को अपना लिया है। एक समय जहां आडवाणी हिंदुत्व के नाम पर सबसे बड़ा चेहरा थे, वहीं आज मोदी से बड़ा दूसरा चेहरा नहीं है।
73- बीजेपी की दूसरी बड़ी मजबूरी ये है कि सिर्फ हिंदुत्व की चाशनी से काम नहीं चलेगा, बल्कि पार्टी ने इसके साथ-साथ विकास का कॉकटेल भी शुरू किया है और इन दोनों हुनर में मोदी से बड़ा दूसरा नेता नहीं। आडवाणी कभी हिंदुत्व और विकास को एक साथ मिला नहीं पाए। कभी वो हिंदुओं के हृदय सम्राट बने, तो अब विकास का नारा देते वक्त उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे को पीछे छोड़ दिया।
74- दुनिया की सबसे प्रभावशाली पत्रिका टाइम ने मार्च 2012 में नरेंद्र मोदी को अपने कवर पेज पर जगह दी। साथ ही ये लिखा कि मोदी का मतलब बिजनेस होता है। पत्रिका ने गुजरात के विकास के लिए न सिर्फ मोदी को श्रेय दिया, बल्कि ये भी लिखा कि मोदी एक दृढ़ और गंभीर नेता हैं, जो देश को विकास के रास्ते पर ले जा सकते हैं, जिससे ये देश चीन से मुकाबला कर सके। इससे मोदी की अंतरराष्ट्रीय तौर पर पहचान की झलक मिलती है।
75- मोदी आम लोगों से सीधे जुड़े होते हैं। उन्हें किसी बिचौलिए की जरूरत नहीं पड़ती। चाहे ये जुड़ाव सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिये ही क्यों न हो। आप उनकी साइट के जरिये उनसे सीधे सवाल जवाब कर सकते हैं। मिलने का वक्त मांग सकते हैं, अपने कॉलेज-स्कूल या संस्थान के लिए बुलावा भेज सकते हैं। क्या बाकी कोई मुख्यमंत्री इतनी सहजता से उपलब्ध हैं।
76- मोदी की एक बड़ी ताकत उनकी भाषा है। वो बहुत अच्छी हिन्दी जानते हैं। गुजराती होने के बाद भी हिन्दी भाषा में पूरे देश के साथ बहुत ही बेहतरीन तरीके से खुद को कनेक्ट कर सकते हैं, यानी देश की बहुसंख्यक आबादी की मुश्किलों को उनकी भाषा में सुन सकते हैं और आसानी से उसका जवाब दे सकते हैं।
77- नरेंद्र मोदी न सिर्फ अच्छे वक्ता हैं, बल्कि उन्होंने कई कविताएं लिखी हैं, साथ ही कई लेख लिखकर अपने विचार भी सामने रखते रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने शिक्षा, प्रकृति और अपने अनुभव को भी कई किताबों में समेटा है। इसका मतलब ये है कि वो एक मौलिक चिंतक है, जिसकी इस देश को सख्त जरूरत है।
78- आम लोगों को सुरक्षा मुहैया कराने के मामले में IBN7 Diamond States Award में गुजरात को सर्वश्रेष्ठ राज्य का अवॉर्ड मिला। मोदी के नेतृत्व में ये बड़ा योगदान है क्योंकि देश में इस समय लोगों की सुरक्षा एक बड़ा विषय बन चुका है
79- समग्र कृषि उत्पादों के मामले में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुजरात को सर्वश्रेष्ठ राज्य का अवॉर्ड दिया। इसका मतलब है कि मोदी के राज में सिर्फ उद्योगों का ही विकास नहीं हुआ या फिर उद्योगपति ही खुश नहीं हुए बल्कि किसानों के लिए भी खुशखबरी आई। कृषि प्रधान इस देश को आखिर और क्या चाहिए।
80- इस समय देश की बड़ी समस्या महंगाई, भ्रष्टाचार और आर्थिक विकास है। इस मुद्दे पर भी हाल में ओपन पत्रिका और openthemagazine.com ने सर्वे कराया। साथ ही पूछा कि आखिर देश की कौन सी शख्सियत इन मुश्किलों से निजात दिला सकती है। इस मुद्दे पर भी लोगों ने राहुल के मुकाबले मोदी पर ज्यादा भरोसा जताया है।
81- गुजरात में भारत की सिर्फ 5 फीसदी आबादी रहती है जबकि 6 फीसदी एरिया है। लेकिन योगदान की बात करें तो \"Value of Output\" 16.10 फीसदी है, जबकि निर्यात का 16 फीसदी हिस्सा गुजरात से होता है। स्टॉक मार्केट कैपिटलाइजेशन में 30 फीसदी हिस्सा है। औद्योगिक उत्पादन में गुजरात का हिस्सा 16.2 फीसदी है। 10वीं पंचवर्षीय योजना में भारत का विकास दर 8.2 फीसदी तय किया गया, लेकिन गुजरात ने 10.2 फीसदी की रफ्तार से विकास किया। पहले साल में तो रिकॉर्ड 15 फीसदी के हिसाब से विकास हुआ। तटवर्ती क्रूड ऑयल के प्रोडक्शन में गुजरात का हिस्सा 54 फीसदी है। नेचुरल गैस के प्रोडक्शन में 50 फीसदी हिस्सा, भारत की रिफायनरी कैपेसिटी का 46 फीसदी और भारत के कुल क्रूड ऑयल आयात की 60 फीसदी फैसिलिटी गुजरात में है।
82- स्वास्थ्य के मुद्दों पर भी मोदी ने भरपूर ध्यान दिया है, जिसकी देश-विदेश में भरपूर चर्चा हुई। WHO ने गुजरात के स्कूल हेल्थ कार्यक्रम की प्रशंसा की है। इसके तहत 1 करोड़ बच्चों की सेहत हर साल प्राइमरी स्कूल में चेक की जाती है। गर्भवती महिलाओं की देखरेख के लिए चिरंजीवी योजना की भरपूर तारीफ की गई है। सिंगापुर में एशियन इनोवेशन अवॉर्ड में इसकी पहचान पूरी दुनिया के सामने आई। UNICEF की रिपोर्ट \" State of World Children 2009 में भी इसकी भरपूर तारीफ की गई। यही नहीं गुजरात मेडिकल टूरिज्म के तौर पर पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा है।
83- मोदी का मिशन \"Water for all\" विकास की एक नई कहानी बयान करता है। गुजरात में वाटर मैनेजमेंट बाकी राज्यों के लिए नजीर साबित हुआ है। चाहे वो बारिश के पानी को सहेजना हो, वैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल हो, 21 नदियों को आपस में जोड़ना हो। राज्य के 14 हजार गांवों और 154 शहरों में पीने के पानी के लिए वाटर ग्रिड की स्थापना की गई है। इससे पहले जहां 4 हजार गांवों में टैंकर के जरिये पीने का पानी भेजना पड़ता था अब वो घटकर 185 गांव रह गए हैं। (3 साल पहले के आंकड़ों पर आधारित)
84- ज्योति ग्राम योजना की वजह से गुजरात देश का पहला राज्य बन गया जहां के सभी गांव में बिजली मुहैया करा दी गई है। ये नरेंद्र मोदी की कोशिशों का असर है।
85- आम लोगों को न्याय दिलाने में गुजरात की मोदी सरकार ने भी बेहतरीन काम किया है। उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर 2005 में गुजरात में 45 लाख केस पेंडिंग थे जो 2009 में घटकर 22 लाख हो गए। जबकि इन मामलों को आगे शून्य तक करने का इरादा था। सरकार ने 67 ईवनिंग कोर्ट का भी गठन किया, जिससे लोगों को वर्किंग आवर में दिक्कत न हो। लोक अदालत और नारी अदालत से भी इस काम में काफी मदद मिली।
86- भुखमरी निवारण की नीति के कार्यान्वयन को लेकर गुजरात ने तेजी से काम किया है। मोदी के समय ही पहली बार किसी राज्य ने लगातार चार बार इस मामले में पहला स्थान हासिल किया।
87- मोदी के समय में ही गुजरात देश का पहला राज्य बना, जहां कि नगरपालिकाओं और कॉरपोरेशन में ई-गवर्नेंस को पूरी तरह से लागू किया गया। अर्बन हेल्थ पॉलिसी को भी विस्तारपूर्वक लागू करने वाला गुजरात पहला राज्य है। देश का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में गुजरात पहला राज्य है, जहां के 590 विलेज काउंसिल कंप्यूटर नेटवर्क से जुड़े हैं। अब तक 13,693 पंचायत या विलेज काउंसिल में कम्प्यूटर मुहैया कराया गया है। साथ ही लोगों को कंप्यूटर सिखाया जा रहा है या सिखाया जा चुका है।
88- एक तरफ जहां देश के बाकी मुख्यमंत्री गिफ्ट के जरिये अपना खजाना भरने में लगे होते हैं, वहीं इस मामले में मोदी का कोई सानी नहीं है। मोदी ने अब तक मिले सभी गिफ्ट को महिलाओं की शिक्षा के लिए सरकारी कोष में जमा करा दिया है। सिर्फ शुरुआती 5 साल के रिकॉर्ड में ही मोदी ने करीब 287 लाख 37 हजार रुपये जमा कराए।
89- एक तरफ जहां बाकी मुख्यमंत्री अगले चुनाव की तरफ देखते हैं, वहीं मोदी अगली पीढ़ी की तरफ देखते नजर आते हैं, यानी मोदी की दूरदर्शिता का कोई मुकाबला नहीं है। शायद इसीलिए एक बार उद्योगपति अनिल अंबानी ने कहा था अगर गुजरात अलग देश होता तो ये अलग ही देशों की कतार में होता, जिसमें दुनिया के विकसित देश नजर आते हैं।
90- India Today - ORG MARG के सर्वे में पांच सालों में तीन बार नरेंद्र मोदी को नंबर 1 मुख्यमंत्री का खिताब दिया गया। ये किसी भी मुख्यमंत्री को दिया गया एक अनोखा सम्मान है
91- मशहूर लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी ने गुजरात की तारीफ करते हुए लिखा कि - \"मैं गुजरात का कई बार दौरा कर चुकी हूं। खासकर 2002 के दंगों के दौरान भी। गुजरात की कार्य संस्कृति को देखकर मैं दंग रह गई। गांव हो या शहर - हर तरफ जबरदस्त सड़कें... यहां तक की सुदूर गांवों में भी बिजली और पीने के पानी की व्यवस्था थी। मैं खास तौर पर पंचायत और स्थानीय लेवल में स्वास्थ्य सेवाओं को देखकर चकित थी।\" इसके बाद बंगाल में 30 साल के लेफ्ट के शासन की तुलना करती हुई वो कहती हैं- \"ये हालत पश्चिम बंगाल के जैसी नहीं है, जहां गांवों और पंचायतों में भी बिजली नहीं है। सरकार की स्वास्थ्य परिसेवा का कहीं कोई अस्तित्व नजर नहीं आता।\"
92- मोदी पर ये आरोप लगता रहा है कि वो तानाशाह प्रवृत्ति के हैं। वो न तो आरएसएस की सुनते हैं और न ही उन्होंने पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी की सुनी। अब ये भले ही आरोप के तौर पर लग रहे हों, लेकिन यही मोदी की ताकत है। सवाल ये है कि मोदी के इस रुख से देश को कोई नुकसान हुआ। क्या संस्था के तौर पर बीजेपी तहस नहस हो गई? सवाल ये भी है कि क्या देश को ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत नहीं जो अपने हिसाब से फैसले ले क्योंकि इस समय सबसे बड़ी कमी ये है कि देश के बड़े नेता फैसले लेने से कतराते हैं। लेकिन गठबंधन वाली सरकार में कोई भी प्रधानमंत्री तानाशाह नहीं बन सकता।
93- मोदी के विरोधियों पर उनके खिलाफ लगातार दुष्प्रचार फैलाने के आरोप लगते रहे हैं। वैसे हकीकत ये है कि मोदी के समर्थक अगर 1 फीसदी होंगे तो उनके दुश्मन कम से कम 50 गुना ज्यादा। इसके बावजूद अगर मोदी अपना वर्चस्व बचाने में कामयाब रहे हैं तो इसे उनकी खासियत और ताकत के तौर पर समझना चाहिए।
94- जस्टिस काटजू हाल के दिनों में मोदी को लेकर कट्टर विरोधी के तौर पर सामने आए हैं। प्रेस काउंसिल का चेयरमैन होने के बावजूद उन्होंने व्यक्तिगत विचार रखते हुए तीखी आलोचना की है। Firstpost.com पर अनिरुद्ध दत्ता ने काटजू के बयान को लिखते हुए कई सवाल खड़े किए हैं... अनिरुद्ध ने लिखा कि --
\"And in the survey conducted by Katju (what else can it be since he has so emphatically written about it), \"The truth today is that Muslims in Gujarat are terrorized and afraid that if they speak out against the horrors of 2002 they may be attacked and victimized. In the whole of India Muslims (who are over 200 million of the people of India) are solidly against Modi (though there are a handful of Muslims who for some reason disagree).\" So Katju has surveyed over 200 million Muslims. But then what explains BJPs victory in Muslim dominated constituencies in recent Gujarat elections as well as the recent municipal elections? Probably in Justice Katju\'s views, a silly question by an Indian idiot.
How many Muslims in Gujarat has Katju spoken to? During my visit to Gujarat in November, I spoke to two for considerable length of time. They certainly did not look terrorised and discussed politics quite freely. While Katju may not know the reason why some Muslims disagree, these two Muslims very clearly said that communalism has been a scourge of Gujarat, like the rest of India, for long and this is the first time that ten years of tranquillity and peace has been enjoyed in Gujarat. Both these individuals run businesses - one is Nadeem Jaffri who runs Hearty Mart enterprises, a retail venture and the other is Talha Sareshwala, CEO & MD, of Parsoli Motors. Of course, there are Muslims who would not discuss politics and would shy away from it. But even in the lanes of Juhapura, during an earlier visit, small entrepreneurs like tentwallahs happily said that business was booming since Gujarat was growing.
95- गुजरात में मानव विकास सूचकांक को लेकर भी सवाल खड़े किए जाते रहे हैं... लेकिन लेखक अनिरुद्ध दत्ता की मानें तो गुजरात में पिछले दस सालों में बेहतरीन तरीके से मानव विकास सूचकांक में बढ़ोतरी हुई है। अनिरुद्ध ने लिखा कि - Katju has criticised the human development indicators of the people of Gujarat and has rightly asked should they eat electricity, roads and factories. Like all of Gujarat\'s development has not happened in the last ten years, similarly Gujarat\'s human development indicators are not necessary a reflection of what has happened only in the last ten years. It\'s a legacy of the last sixty years of \"development\". Gujarat\'s human development indicators (HDI) in most cases is better than the all India average. While it is not the best in India, it is nowhere close to being the worst and its improvement in the last ten years is in most cases among the best. That is why it features among the top performing states in India Today\'s annual rankings consistently. However, there is no gain saying that the HDI indicators of India and Gujarat as well are appalling. When starvation deaths happen in Thane district, what can be more shameful than that for India.
96- आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में गुजरात ने देश में नंबर 1 स्थान हासिल किया। एक सर्वे के बाद Economic Freedom of the States of India (EFSI), 2012 नाम से रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। इस सर्वे में आर्थिक स्वतंत्रता का पता लगाने के लिए तीन पैमाने का चयन किया गया। ये थे 1) सरकार का आकार, 2) कानूनी ढांचा और 3) संपत्ति के अधिकार, कारोबार और श्रम के रेग्लुलेशन का। तीनों पैमाने को मिलाकर गुजरात को नंबर एक स्थान मिला। जानकारी के लिए बता दें कि इस मामले में भारत का स्थान 144 देशों में 111वां है, जो कि पहले 76वां था। समझ लीजिए कि अगर नंबर 1 राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएं तो क्या देश की किस्मत नहीं बदलेगी?
97- मोदी की सकारात्मक सोच उन्हें एक मजबूत दावेदार बनाती है। वो विवादों में पड़ने की जगह खुद को मजबूती से एक मिशन में लगाते हैं। आज मोदी जहां भी जाते हैं, उनके भाषणों को लेकर नहीं, बल्कि विवाद खड़े कर चर्चा की जाती है कि कहां कितना विरोध हुआ। कैसे मोदी ने कांग्रेस को ललकारा, गांधी परिवार को चुनौती दी। हाल के दिनों में दिल्ली यूनिवर्सिटी के SRCC कॉलेज में उनके दौरे को भी लेकर यही बातें कही गईं, लेकिन LIVEMINT में संदीपन देब ने अनंत रंगास्वामी के हवाले से कई नई बातें सामने रखीं और 'मोदीवेशन' के बारे में बताया -
\"Anant Rangaswami has very perceptively pointed out in firstpost.com: \"Decode (Modi\'s) speech, and these are the words which pop out: Development, education, youth, progress, brands, india, success, profit and wealth creation, going abroad, pride, technology, brains and employment. That about covers all that the youth focus on.\" Dripping with positivity, Modi almost seemed like a professional motivational speaker, using pithy metaphors, humorous anecdotes and simple examples. One metaphor will surely be remembered for a long time. Holding up a glass of water, he said: \"Some say this is half empty, others say this is half full. I say this is full, half with water, and half with air.\" This is corny, but this is young populist corn at its best. In social media, a new word has already been born: Modivation.
He delighted his audience with the sort of acronyms that the young thrive on: P2G2 (pro-people good governance), 5F (farm to fibre to fabric to fashion to foreign), 3S (skill, scale, speed). He spoke of building India\'s largest convention centre in 162 days, of having 50% of India\'s gross domestic product under one roof in his Vibrant Gujarat summit, of having completely eradicated 120 cattle diseases in six years (SRCC\'s principal provided further proof of Modi\'s efficiency when he said that the college had invited 11 people, including five cabinet ministers, to address the students, and Modi\'s office was the first to reply; some replies were still awaited).\"
98- जस्टिस काटजू ने मोदी पर ये सवाल उठाया कि क्या गुजरात के कुपोषित बच्चे सड़कों, बिजली और फैक्ट्रियों को खाएंगे, लेकिन हकीकत ये है कि विकास के इन्हीं पैमाने पर चलकर गरीबी को दूर किया जा सकता है। यही नहीं जिस आधार पर काटजू ने आरोपों की झड़ी लगाई, उसका विकास भी गरीबों के लिए किया गया। कार्तिकेय ताना ने अपने एक लेख What Leftists won't tell you about Modi's 'pro-industrialist obsession' में विस्तारपूर्वक इसका जवाब दिया है। जवाब से सहमति-असहमति हो सकती है, लेकिन इसे सिर्फ इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि गरीबों का पेट भरना हो तो सड़क न बनाए जाएं, बिजली का विकास न हो और फैक्ट्रियों की स्थापना का विरोध किया जाए। लेख में कई योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो सिर्फ गरीबों के लिए गुजरात में चलाई जा रही हैं।
99- गुजरात में नरेंद्र मोदी के विकास के काम ने सभी दायरे तोड़कर उन्हें प्रशंसक दिए हैं। ऐसे ही एक प्रशंसक हैं दिग्गज कांग्रेसी नेता, पूर्व सांसद और इस सबसे बढ़कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रपौत्री सुमित्रा गांधी कुलकर्णी। सुमित्रा खुलकर मोदी के समय में हुए गुजरात में विकास के कार्यों की तारीफ करती हैं। सुमित्रा के मुताबिक मोदी के समय में गुजरात में काफी बदलाव आए हैं।
100- मोदी के खिलाफ भले ही जितने आरोप लगाए गए हों, उन्हें मौत का सौदागर भी कहा गया, लेकिन हकीकत यही है कि तमाम आरोपों और धमकियों के आगे कभी मोदी ने अपनी भावनाओं को नहीं खोया, बल्कि उन्होंने गांधीवादी तरीका ही अपनाया। दो मामलों में मोदी को जान से मारने की धमकी दी गई। 2002 में रज्जाक कासिर कासिम और 2006 में ओमर फारुख सिद्दीकी ने ये मेल भेजा था। इन मामलों में इन्हें सख्त सजा हो सकती थी, लेकिन मोदी ने न सिर्फ माफ किया, बल्कि कासिम के पूरे परिवार को बुलाकर अपनी तरफ से सफाई दी। केस खत्म करवाया और जिस कंपनी ने उसे नौकरी से निकाला था। उसे वापस रखने का आग्रह किया। आज के हालात की तुलना करें तो अगर कोई फेसबुक पर या मेल पर इस तरह की बात किसी बड़े नेता या मंत्री के खिलाफ लिख दें तो क्या हश्र होगा... अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। क्या देश को ऐसे गांधीवादी नेता नहीं चाहिए?
101- आम लोगों के बीच रिसर्च में ही नहीं, बल्कि एक मार्केट रिसर्च एजेंसी के सर्वे में भी मोदी सबसे आगे हैं। IPSOS एजेंसी के सर्वे के मुताबिक 43 फीसदी लोगों ने मोदी को पहली पसंद बताया है, जबकि 36 फीसदी लोगों ने राहुल को अपनी पहली पसंद बताया। साफ है विकास के नाम पर भी लोगों की पहली पसंद नरेंद्र मोदी हैं। खास बात ये है कि दक्षिण के कई शहरों में भी मोदी को ज्यादा लोगों ने पसंद किया है, जहां बीजेपी की पकड़ कमजोर है।
मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की ये वजहें कई तरह के अलग-अलग आंकड़ों और दिग्गजों की राय पर आधारित हैं। हो सकता है आपके पास प्रधानमंत्री न बनाने की भी दमदार वजहें हो सकती हैं। अगर आपके पास ऐसी ही वजहें हैं तो कृप्या अपना जवाब जरूर दें।