भारत भू की पावनता है,ममता की परिभाषा है।
धर्म सनातन की सुचिता है,जन जन की अभिलाषा है।
है प्रभात का पूजन,जन जन के मन का आराधन है।
जिसका रूप स्वरुप स्वयं में गोकुल है वृन्दावन है।
परिवारों का पोषण है हर घर की भाग्य विधाता है।
पशु मत समझो इसे गाय तो हर हिन्दू की माता है।
लेकिन देखो काश्मीर का पंडित कैसे डोल गया।
बामन का वंशज होकर के बाबर की भाषा बोल गया।
अरे काटजू शर्म न आई तुझको ये बतलाने में।
बड़ा मजा आया था तुझको मांस गाय का खाने में।
फिर से तू खायेगा ये भी बड़ी शान से बोला है।
कुल के दुष्ट कलंकी तुझपे खून हमारा ख़ौला है।
जो हिन्दू गर गौ माता की चीर फाड़ कर सकता है।
वो अपनी निज माता का भी बलात्कार कर सकता है।
जिसे गाय के टुकड़ों में प्रोटीन नज़र आ सकती है।
उसको अपनी बहने भी रंगीन नज़र आ सकती हैं।
भूख लगे गर ज्यादा माँ की कमर काट कर खा ले तू।
फिर भी ना यों पेट भरे तो सूअर काट कर खा ले तू।
गौ माता को खाया तू इंसान नहीं हो सकता है।
कुछ भी हो तू हिन्दू की संतान नहीं हो सकता है।
एकदिन तू रौंदा जायेगा प्रतिशोधी उन्मादों में।
तेरा नाम लिखा जायेगा गज़नी की औलादों में।
न्यायधीश है लेकिन तुझमे न्यायाधीश सी बात नहीं।
गौ माता के मूत्र बराबर भी तेरी औकात नहीं।
Sunday, April 12, 2015
काटजू !तू हिन्दू की संतान नहीं हो सकता है
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