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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Wednesday, November 24, 2010

बिहार में बहार और लालू हुए बेकार


बिहार बिधानासभा के परिणाम कुछ भी अप्रत्याशित नहीं जान पड़ते हैं.पुरे बिहार में ऐसा माहौल बन चूका था जो सीधे सीधे बता रहा था की बिहार की जनता आब पहले जैसी नहीं रही जो की लालू यादव के चुटकुले पर वोट देगी.जनता विकाश चाहती थी जो जनता दल(यु) और भाजपा गठबंधन सरकार उन्हें दे रही थी और जनता विक्स के इस रफ़्तार को रोकना नहीं चाहती थी.जिसका परिणाम आज हमारे सामने है और एन.डी.ए २४३ सदस्यों के बिधानासभा में २०६ सीटें जीतकर दुबारा से सरकार बनाने जा रही है.हमें ये मानने से परहेज नहीं करना चाहिए की यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है.कुछ सालों पहले जो जनता जाति-धर्म और चुटकुलों पर वोट देती थी उन्होंने महसूस किया किया और विकास को ही सर्वोपरि माना.इस जीत के कई मायने हैं...कईयों का भ्रम टुटा जो अपने आप को जादूगर समझते थे और बातों के बल पर सत्ता लूट ले जाते थे-यह महान जीत एक दिन के मेहनत का परिणाम नहीं है.इसके लिए पांच साल पहले जब nda सरकार आई थी तभी इसकी नीव पड़ चुकी थी. सरकार ने अपने किये हुए बड़ों को पूरा करने की पूरी कोशिश की और जनता ने देखा भी.शायद अब वो दिन दूर नहीं जब लोग जितना गर्व मराठी-गुजराती-मराठी कालने में करते hain उतना ही गर्व अपने आप को बिहारी कहलाने में करेंगे.अब कोई शीला दीक्षित कॉमन वेअल्थ से पहले बिहार की की ट्रेनों का जनरल क्लास मुफ्त नहीं करेंगी की बिहारी देल्ही छोड़ के बिहार जाएँ जिससे उनकी बेइज्जती न हो और नहीं कोई शीला दीक्षित कहेंगी की सारी अब्यावस्था बिहारिओं के कारण है.शायद अब वो दिन दूर नहीं जब राज ठाकरे "आमची मुंबई" के नाम पर केवल बिहारिओं को परेशान नहीं करेंगे एन.डी ए. को विजयश्री देकर जनता ने कुछ सीख हमारे तथाकथित महान नेताओं की दी है--

जनता ने काग्रेसी धर्मनिरपेक्षता(शर्मनिरपेक्षता) को नकार दिया

नितीश कुमार और कांग्रेस,लालू पासवान के धर्मनिरपेक्षता में अंतर जनता समझ चुकी है.जनता जानती है की धर्मनिरपेक्षता का मतलब एक धर्म विशेष के साथ लगाव नहीं होता बल्कि सभी धर्मों के साथ संभव होता है.कांग्रेस,लालू पासवान की मुस्लिम तुस्टीकरण की नीति को जनता ने ठुकरा कर बता दिया है की इस ब्रांड की धर्मनिरपेक्षता हमें पसंद नहीं है.जिसका परिणाम हमारे सामने है.जनता चाहती है की हिन्दू मुस्लिम और अन्य कौम एक साथ रहें लेकिन वह यह नहीं चाहती की हमारे प्रधानमंत्री की तरह तुष्टिकरण की धर्मनिरपेक्षता कबूल करना पड़े.

नहीं पका लालू का आलू

बिहार की जनता समझ चुकी थी की आलू से समोसे तो बनाये जा सकते हैं लेकिन आलू को सत्ता नहीं दिया जा सकता.चुट्कुलें सुनने के लिए जनता इतना बड़ा त्याग नहीं करना चाहती थी कि लालू को फिर से अपना भाग्य बिधाता बना दे.भोजपुरी फिल्मों में ही जनता अब मनोरंजन करना चाहती है न कि लालू कि सभाओं में वो भी जब २० रस कि टिकट कि जगह पूरा प्रदेश सौपकर.

पासवान को नाकारा मुसलमानों ने


बिहार के मुसलमान भी जान चुके थे कि भले ही पासवान जी रमजान के महीने में एक दिन के लिए टोपी पहन कर इफ्तार में शरीक हों...लेकिन इसका फायदा तभी होगा जब प्रदेश का विकाश हो.मुसलमानों ने भी वोट बटोरने के लिए दिखावटी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने वालों को करारा जवाब दिया जिसका परिणाम नितीश कि फतह के रूप में सबके सामने है.

जनता ने समझी सोनिया-राहुल कि असलियत

बिहार की जनता को समझाने कि जरुरत नहीं पड़ी कि १० जनपथ में बैठ कर सत्ता चलने वालों से बिहार नहीं चलने वाला.जनता समझ चुकी थी कि युवराज और रानी तो उस मौसम की तरह हैं जो कुछ समय के लिए आयेंगे और फिर चले जायेंगे जबकि नितीश तो खुद में एक पूरा बिहार हैं और अपने आप को कोई कैसे छोड़ सकता है.अगर एक दिन के लिए राहुल हमारी झोपड़ी में लिट्टी गुड खा कर चले भी जाय तो क्या हमें तो रोज ही खाना है..एक दिन में कोई क्या दर्द समझेगा.नितीश तो जमीन के बन्दे थे...और जनता ने उनको जीत का शेहरा पहनाया.
और आखिरी में मेरितारफ से बिहार कि जनता को सलाम.
वन्देमातरम

Thursday, November 18, 2010

मै पीडावों का गायक हूँ

कल तुम मेरा नाम पढोगे
इथिहासो के शिला लेख पर
जिनके पैरो में छाले है
मै उन की आँखों का जल हूँ

मै पीडावों का गायक हूँ
शब्दों का व्यपार नहीं हूँ
जहाँ सभी चीजे बिकती हैं
मै वैसा बाज़ार नहीं हूँ

मुझ पर प्रश्न चिनः मत थोपो
कुंठित व्याकरणि पैमानों
मुझको राम कथा सा पढ़िए
बहुत सहज हूँ बहुत सरल हूँ

मेरा मोल लगाने बैठे
है कुछ लोग तिजोरी खोले
धरतीपर इतना धन कब है
जो मेरी खुद्दारी तौले

राजभवन के कालीनो पर
मेरे ठोकर चिन्न मिलेगे
मै आंसू का ताज महल हूँ
झोपड़ियों का राजमहल हूँ

जब से मुझको नील कंठनी
कलम विधाता ने सौपी है
तन में काशी वृन्दावन है
मन में गंगा की कल कल हूँ

दरबारों की मेहरबानियाँ
जड़ भी चतुर सुजान ओ गए
जुगनू विरुदावालियाँ गाकर
साहित्यिक दिनमान हो गए

मै डर कर अभिनन्दन गाऊं
इससे अच्छा मर जाऊं
मै सागर का का क़र्ज़
चुकाने वाला आवारा बादल हूँ
(हर-हर महादेव
(एक देशभक्त की रचना)

Wednesday, November 17, 2010

क्या लिखूं?



क्या लिखूं?
कलम चलती नहीं उसके बारे में लिखने को
क्या कहूँ उसे?
चाँद का टुकड़ा !
गुलाब की पंखुड़ी!
शीत की चांदनी!
मई की गर्मी!
वह तो ऐसी ही थी
कोई भी उपमा उसके लिए तुक्ष जान पड़ती है
सोचता हूँ उसके बारे में
दिल करता है उसके बारे में कुछ लिखने को
कलम से बांध दूं उसे
लेकिन कैसे संभव है यह?
सागर पर टहलना
हवा को पकड़ना
बहुत कठिन
कठिन ही नहीं असंभव भी
किन्तु दिल नहीं मानता
मज़बूरी को नहीं पहचानता
कुछ कहना चाहता है
तो चाँद कहूँ?
नहीं नहीं
यह बेइज्जती होगी
सावन के घटा की तरह उसके बालों की
सूरज की तरह चमकते ललाट की
गुलाब की तरह उसके होठों की
यह बेइज्जती होगी
उसकी सांगीतिक आवाज़ की
झील की तरह उसकी आँखों की
मोरनी की तरह उसकी चाल की
तो क्या कहूँ?
उसके समान वाही है
यही बात सही है
तो छोडो
क्या लिखूं?


-राहुल पंडित

Sunday, November 14, 2010

फिर तुम्हारी याद आयी





मेघ ने जब शंख ध्वनि की
चाहुदिशी बिखरा अँधेरा
जगत सारा सुख विह्वल हो
देखता शीतल सबेरा
हंस ने जब हंसिनी से
प्यार से आँखे मिलायी
फिर तुम्हारी याद आयी

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थिरकते जलकणों ने जब
प्रणय कर ली बादलों से
झूमते तरुओं ने भी जब
गीत गाये जंगलों से
प्रिय मिलन की आश में जब
मोरनी ने पर हिलायी
फिर तुम्हारी याद आयी

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रात के घनघोर में जब
जगत सारा सो गया था
भूल सरे झंझटों को
स्वप्रियम में खो गया था
बदलते करवटों में जब
आँख ने नींदे चुरायी
फिर तुम्हारी याद आयी

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ग्रीष्म की वह त्रीक्ष्ण दुपहर
आग नभ से टपकता है
जल बिना बेचैन जलचर
हर तरफ ही बिचरता है
प्यास से व्याकुल हुए जब
पपीहे ने बोल लगायी
फिर तुम्हारी याद आयी
हर तरफ ही बिचरता है

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माघ-फागुन का महीना
हर तरफ विंदास जीना
रजत मंजरिओं से लड़ गाये
आम्र तरु की हर टहनियां
काम से व्याकुल हुए जब
कोयल ने कूकें लगायी
फिर तुम्हारी याद आयी


-राहुल पंडित






Thursday, November 11, 2010

हम तो तलवार उठा बैठे






देख करुण दशा भारत माँ की
हम तो संसार भुला बैठे
खुद शांति का उपदेश दिया
खुद ही तलवार उठा बैठे
गाँधी का सच्चा पूजक था
सबको बस प्रेम सिखाता था
"अहिंसा परमोधर्मः"की
बाते सबको बतलाता था
भारत माता का रुदन सुना
तो जीवन क्रम ही मोड़ दिया
गाँधी की साख बचने को
गाँधी को ही मै छोड़ दिया
जो राम राज्य का सपना था
वो अब कैसे पूरा होगा
जब रावन खुले विचरते हैं
तो कहाँ धरम-करम होगा
सोच अतीत की बातों को
फिर निद्रा से हम उठ बैठे
सपना फूलों के मग का था
पर अंगारों पर चल बैठे
जब पंहुचा घाटी में चल कर
आखों से आशू छलक उठा
जब केशर में बारूद मिला
बंदूकों पर तब आलोक मढ़ा
फिर नमन किया सत्तावन के
उन अगणित वीर जवानो को
फिर नमन किया आजाद-भगत
बिस्मिल जैसे बलवानो को
फिर गाँधी की तस्वीर को
बक्से के अन्दर बंद किया
जिससे वह सदा सुरक्षित हो
फिर ऐसा एक अनुबंध किया
जय -जय कह भारत माता की
इस कुरुक्षेत्र में आया हूँ
कुछ अपनों के संग भी लड़ना है
सो गीता भी मै लाया हूँ...


-राहुल पंडित

Saturday, November 6, 2010

इस्लाम की तालीम सोच बदल देती है



सारे जहाँ से अच्छा,हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसके,ये गुलसितां हमारा
महज़ब नहीं सिखाता,आपस में बैर रखना
हिंदी हैं हम वतन हैं,हिन्दोस्तां हमारा..
.

एक ऐसी कविता...जो शायद हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा जनता है.हमारे तथाकथित सेकुलर लोग इस कविता को हमारे सामने एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं.इसका एक वज़ह भी है.यह कविता एक हमारे मुसलमान बंधू मोहम्मद इकबाल ने लिखी थी १९०७ में.और आज भी यह कविता पढने के बाद हमारे अन्दर राष्ट्र प्रेम की भावना उमड़ने लगती है.वास्तव में इसकी बोल ही ऐसी है.

महज़ब नहीं सिखाता,आपस में बैर रखना
हिंदी हैं हम वतन हैं,हिन्दोस्तां हमारा..

कहने वाले मोहम्मद इकबाल ने जब यह कविता लिखी थी तब तक उन्हें इस्लाम की पूरी तालीम नहीं मिली थी.जब उन्हें इस्लाम की की पूरी तालीम मिली तो १९०८ में उन्होंने इस कविता के आगे कुछ और लाइने जोड़ी जो की उन्होंने लेबनान इस्लामिक सोसाइटी के अपने वक्तव्य में सुनाया-

चीन औ अरब है हमारा,हिंदुस्तान है हमारा
मुस्लिम हैं हम वतन हैं,ये सारा जहाँ हमारा
तौहीन की ईमारत है सीनों में हमारे
आसां नहीं मिटाना,नामो निसा हमारा..


आज जो कविता हमें पढाई जाती है...वो आधी अधूरी है...पूरी कविता तो तथाकथित सेकुलर गिरोह के मुह के ऊपर तमाचा है.इसमें हम इकबाल साहब का दोष क्यूँ दें...उनका दीन उन्हें यही सिखाता है- "दुनिया के तमाम मुसलमान भाई हैं. " जब दुनिया के तमाम मुसलमान ही भाई हैं तो हम और कौम के तरफ से क्या लिखें?शायद उन्हें हमारी तरह "वसुधैव कुटुम्बकम" की शिक्षा मिलती तो एक साल के अन्दर उनके अन्दर इतना बदलाव नहीं आता.

Thursday, November 4, 2010

शुभ दीपावली




त्वंज्योतिस्त्वं रविस्चंद्रो विदुदाग्निस्च तारका:|
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपवाल्ये नमो नमः||
सर्वेषां दिपवल्योत्सवस्य शुभाशयाः||


आपणास व पूर्ण परिवारास दीपावलीच्या हार्दिक शुभेच्छा. .......


इस आशा के साथ की दीपों का यह पर्व दीपावली समस्त देशवासियों जीवन में खुशिओं का अम्बार लाये...और ईश्वर सबकी मनोकामना पूरी करें....
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें....


आपका
राहुल पंडित

Monday, November 1, 2010

मेरी भारत माँ कि पीडाएं है मेरे गीतों में


शब्द अगर हैं ब्रह्म तो कवि उसका आराधक है
कविता अगर तपस्या है तो कवि ही उसका साधक है
कलम छोड़ कर कभी कवि को भाया ना कोई दूजा है
मेरी कविता मेरी देवी यही लेखनी पूजा है
ये लिखती है ठुमक ठुमक कर चलते हुवे कन्हिया पे
शबरी के जूठे बेरो पर और केवट की नैया पर
ये लिखती है गौरव गाथा झाँसी वाली रानी की
पन्ना का बलिदान लिखा और हिम्मत वाली रानी की
ये फटकार बिहारी के हाथो जयसिंह को लगवाती
अंधे पृथिवी राज के हाथो गौरी का वध करवाती
बस कविता के नाम पे हम ने काम ये कैसा कर डाला
नाम लिया कविता का उसमे जाने क्या क्या भर डाला
तुलसी लिखते मेरे राम पर हम सुखराम पे लिख बैठे
सूर दास को श्याम मिले हम कांशी राम पे लिख बैठे
कभी लिखा माँ अनसुइया सावित्री जैसी सतियों पर
अब लिखते है जय ललिता ममता और मायावतियों पर
ऐसा नहीं कि मुझे लुभाता जुल्फों का साया ना था
उसकी झील सी आँखों में खो जाने का मन करता था
मुझको भी कोयल कि कू कु बहुत ही प्यारी लगती थी
रूं झुन रूं झुन रूं झुन सी बरसते अच्छी लगती थी
मेरा भी प्रेयस पर गीत सुनाने का मन करता था
उसको गोद में सर रख कर सो जाने का मन करता था
तब मैंने भी बिंदिया काजल और कंगन के गीत लिखे
यौवन के मद में मदमाते आलिंगन के गीत लिखे
जिस दिन से क्षत विक्षत भारत माता का वेश दिखा
जिसे अखंड कहा हम ने जब खंड खंड वो देश दिखा
मै ना लिख पाया कजरारे तेज दुधारे लिख बैठा
छूट गयी श्रींगार कि भाषा मै अंगारे लिख बैठा
अब उन अंगारों कि भाषाएँ है मेरे गीतों में
मेरी भारत माँ कि पीडाएं है मेरे गीतों में
अमृत पुत्रो के अंदर लगता है कोई जान नहीं
रना और शिवा को अपने बल गौरव का ज्ञान नहीं
आज राम की तुलना बाबर से सेकुलर करते हैं
माँ दुर्गा की धरती पे महिसासुर खुले विचरते हैं



(( एक भारत माता के सच्चे बेटे की रचना ))