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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Thursday, March 25, 2010


ह से हिन्दू,ह से हिंदी,ह से हिंदुस्तान है
ह से हरि हैं,ह से हर हैं,हरी-हर अपने प्राण हैं
ह से हर-हर महादेव की बोली हमने बोला है
ह से हरि का काज कारन को
हर हिन्दू मन डोला है
हम ही हिंदी,हम ही हिन्दू हम ही हिंदुस्तान हैं
दुनिया को समता सिखलाता,हिन्दू धर्म महान है
हरि-हर की कृपा से जो प्रण,हर हिन्दू ने ठाना है
हम हिन्दू,हिंदुत्व की ताकत,हमे लक्ष्य को पाना है
जन्मभूमि पर विशाल मंदिर,हर हिन्दू की चाहत है
विधार्मिओं के इस कुकृत्य से,हर हिन्दू मन आहत है
हरि-हर अपने पूज्य देवता,हिंदी अपनी शान है
हिंदुत्व जीने का जारिया,भारत राष्ट्र महान है
हर हिन्दू,हरि-हर का पूजक,हमे जान से प्यारा है
हुम तो हैं दुनिया के रक्षक,रक्षा संकल्प हमारा है
हर गली गली हर,हर डगर-डगर
हर गावं-गावं,हर शहर-शहर
केशरिया बाना पहन-पहन
बच्चा-बच्चा हर हिन्दू का
हरि-हर की बोली बोलेगा
विधार्मिओं की ताकत को वह
तलवारों से तोलेगा.
-राहुल पंडित

तितली रानी


रंग विरंगे पंखो वाली
पिली लाल हरी और काली
परी देश की राजकुमारी
तुम कितनी लगती हो प्यारी
उडती जब तुम असमान में
बच्चे होते ख़ुशी लान में
दौड़-दौड़ कर तेरे पीछे
कहते सभी मधुर सब्दों में
सबकी सुन्दरता है पानी
देखो आ गयी तितली रानी
जब तुम फूलों पर बैठती
कलियाँ मचल-मचल इठलाती
पौधे झूम-झूम कर गाते
हवा प्रेम संगीत सुनाती
कहती तितली रानी आओ
हम सब नाचे झूमे गाएं
दुनिया के इन सब लोगों को
प्रकृति का सन्देश सुनाएँ
छोड़ आपसी मार-काट को
प्रकृति में तुम घुल मिल जाओ
सबको प्रेम की राह दिखाकर
जीवन का असली सुख पाओ
-राहुल पंडित

रामसेतु की कहानी


त्रेता युग में धरती पर जब
राक्षस कुल का उत्पात हुआ
ऋषिओं में व्याकुलता छाई
धरती को भी संताप हुआ
ले साथ पूज्य देवों को तब
वह श्री विष्णू के पास गयी
वसुधा पर असुर कुशाशन का
रो-रो कर सब वृतांत कही
"हे दया सिन्धु अवनी पर अब
असुरों का शाशन चलता है
स्त्री,गोउ, ब्रह्मण की हत्या
हर जगह निशाचर करता है
करुनानिधन करुना करके
हम सब का अब उद्धार करो
धर्म राज्य स्थापित कर
मेरा सारा संताप हरो"
सुन करुण विनय अवनी का तब
करूणानिधि ने हुँकार किया
कर दूंगा धरती असुरहीन
सब लोगों को यह वचन दिया
फिर लिया जन्म धरती पर तब
दशरथ को सुत सौभाग्य मिला
अयोध्या में खुशियाँ छायीं
असुरों का सब साम्राज्य हिला
*************************
हो गया शुरू फिर महासमर
श्रीरामचन्द्र का असुरों से
हो गया अंत राक्षस कुल का
तब सारे ही भारत भू से
असुरों का राजा रावण था
जो लंकापुर में रहता था
बैठे-बैठे लंकापुर से
धरती पर शाशन करता था
श्रीराम चले तब लंका को
ले सेना बानर रीछ्हों की
बनवाया सागर में सेतु
मिट गयी दूरियां बीचों की
फिर युद्धभूमि में रावण भी
श्रीरामचंद्र से हारा था
रावण संग सारे असुरों को
श्रीरामचंद्र ने मारा था
धरती का फिर उत्थान हुआ
सब धर्म-कर्म फिर शुरू हुए
वेदों के मंत्र गूंजने लगे
पूजनीय गोउ-गुरु हुए
**************************

रावन संहार्थ जो महासेतु
श्रीरामचंद्र ने बनवाया
कलयुग के बढे राक्षसों से
उसपर भारी संकट आया
होगा विकाश,समृद्ध राष्ट्र
कहकर राक्षस चिल्लाएं हैं
हिंदुत्व कुचलने के खातिर
सब सीने पर चढ़ आये हैं
तुडवाने को श्रीराम सेतु
राक्षस कुल ने उत्पात किया
हिन्दू राष्ट्र भारत में रह
हिंदुत्व रक्त का घड़ा पिया
कहते हैं राम कल्पना हैं
रामायण केवल सपना है
दुनिया चाहे जो कुछ बोले
श्रीराम सेतु टूटना है
कुछ राक्षस कलम उठा करके
नयी रामायण लिखते हैं
श्रीराम को मदिरा का सेवक
कमी-लोभी तक कहते हैं
"करूणानिधि" रावन सा बनकर
हर तरफ यही चिल्लाया है
राम एक व्यभिचारी था
यह सेतु नहीं बनवाया है
समझो हिंदुत्व के रखवालों
चाल हिंदुत्व कुचलने की
लो खड्ग हाथ,सब साथ-साथ
यह समय रामेश्वर चलने की
मुह से अब जय श्रीराम कहो
".........."का गर्दन काटो
राक्षस कुल के "...." से अब
यह सारा समरभूमि पाटो
हर हिन्दू बन श्रीरामचंद्र
कर धनुष-बन-तरकस लेकर
धर्मार्थ कार्य अब निकल पड़ो
अरमानो की आहुति देकर
यह सही समय है रामहेतु
सब कुछ न्योछावर करने का
श्रीराम हेतु कर धनुष लिए
युद्धभूमि में बढ़ने का
यह वक्त न आयेगा फिर से
निकलो अब सब अपने घर से
कर दी हमला ऐसा प्रचंड
हो जाये सत्रु खंड-खंड
केवल यह है संबाद नहीं
केवल यह है उन्माद नहीं
यह राष्ट्र धर्म है स्रेस्थ धर्म
इसपर कोई विवाद नहीं
-राहुल पंडित

मस्ती के पथ बढ़ते जाते


सब दुनिया की धुआं उड़ाते
हसते -हसते,गाते-गाते
आशाओं की कश्ती लेकर
मस्ती के पथ बढ़ते जाते
धूम-धड़ाके,सैर-सपाटे
पुष्प बने मग के सब कांटे
हम हैं,हम हैं,हम ही हैं
दुनिया में बाकी सब गम है
यही सोचकर,यही समझ कर
इसीलिए इस पथ पर बढ़ कर
अपनी जय जय करते जाते
मस्ती के पथ बढ़ते जाते
नहीं चाह अच्छे भविष्य की
नहीं भूत से कोई शिकवा
हम केवल इस पल में जीते
इस पल में है अपना रुतवा
मस्त रहेंगे,मस्त करेंगे
सबमे मस्ती रंग भरेंगे
ऊपर-निचे,बाहर-भीतर
अपने तो बस जाम लड़ेंगे
यही गीत है,यही रीत है
यही सोचकर हम इतराते
दुनिया में सबसे खुश रहकर
मस्ती के पथ बढ़ते जाते
-राहुल पंडित

Wednesday, March 24, 2010

आह्वान


अपनी धरती-अपना अम्बर
अपनी नदियाँ-अपना सागर
अपना प्यारा भारत महान
मुह से बोलो अब जय श्री राम
करुनानिधान का महासेतु
जिसको श्रीराम ने बनवाया
बानर रीछो से शिला मंगा
नल-नील दे जिसको जुड्वाया
हम हिन्दू जिसके पूजक हैं
जिसकी महिमा जग न्यारी है
कलयुग के रावन के सह पर
उसको तोड़ने की तैयारी है
इससे पहले हो महाप्रलय
करुनानिधान हमसे रूठे
आस्था पर चोट करे पापी
"करूणानिधि" द्वारा पुल टूटे
हिन्दू जागो,लो खड्ग संग
कर पापी का अभिमान भंग
भगवा झंडा-भगवा पगड़ी
ले अस्त्र-शस्त्र शुरू करो जंग.
-राहुल पंडित

चेतावनी


जगा फिर आज निर्मोही
जलाने को सताने को
लिए बन्दूक हाथों में
बढ़ा हमको डराने को
पहन कर शांति का चोगा
लिए दिल में वाही ज्वाला
लगाकर मेल का नारा
बढ़ा दिल्ली उड़ाने को
जगा फिर आज निर्मोही
जलाने को सताने को
लिए बन्दूक हाथों में
बढ़ा हमको डराने को
फसाकर बात में अपने
दिखाकर प्रेम के सपने.
बना कर फौज जेहादी
लगा बारूद फिर रखने
जली काशी-जली दिल्ली
जली हर देश की गल्ली
मगर फिर भी वो कहता है
बात आगे बढ़ाने को
जगा फिर आज निर्मोही
जलाने को सताने को
लिए बन्दूक हाथों में
बढ़ा हमको डराने को
मगर शायद वो भूला है
मुल्क-ए राणा भारत है
जहाँ जन्मा हर एक बच्चा
सिंघो का शावक है
हमीदों का वतन ये है
इरादे पाक उड़ने को
जगा फिर आज निर्मोही
जलाने को सताने को
लिए बन्दूक हाथों में
बढ़ा हमको डराने को
-राहुल पंडित

पहल


जय सत्य धाम-जय जय श्री राम
जय दीनबंधु,जय पूर्ण काम
जय महादेव,देवाधिदेव
जय भूतनाथ,जय एकमेव
जय जयति-जयति जय भद्रकाली
खप्पर धारी जय शूल वाली
जय-जय दुर्गे शेरावाली
जय महिष सत्रु माता काली
दो शक्ति अपरम्पार हमे
जिससे स्वलक्ष्य पर बढ़ जाएँ
कर नाद ह्रदय से जय श्री राम
अवधेश का मंदिर बनवाएं
केशरिया झंडा हाथ लिए
हम हिन्दुकुश पर चढ़ जाएँ
जय जय श्री राम कह दुनिया में
हिंदुत्व का झंडा लहराएँ
काशी में जो अपमान हुआ
शिव मंदिर तोड़ बना मस्जिद
मथुरा में जो शैतान जगा
मस्जिद बनवा पूरी की जिद
ताजेश्वर महादेव मंदिर
जो बना हुआ है ताज महल
हिंदुत्व कुचलने कोशिश
जिसकी म्लेक्ष्हों ने किया पहल
नापाक इरादे हम तोड़ें
हिन्दू-हिन्दू का दिल जोड़ें
दो इतनी क्षमता हमे प्रभु
स्वधर्म हेतु समर छेड़ें
अपमान हमारा छट जाये
ललकार से सत्रु हट जाये
फिर आदि भूमि,भारत भूमि
हिंदुत्व के रंग में रंग जाये
हर बच्चा-बच्चा ख़ुशी रहे
गलिओं में गूंजे रामायण
हर मन में हर-हर महादेव
हर जिह्वा श्रीमान्न्नारायण
मंदिर में गुंजन घंटो की
मन में भक्ति की धार बहे
दुनिया में बस हों शांति प्रिय
हर जिह्वा जय श्री राम कहे
-राहुल पंडित

गुडिया


हूंक उठी दिल में अजीब सी
भीग गया तन बिन बारिश के
हाहाकार मच गयी रगों में
सपने बुनते लावारिश से
सोच रहा क्या-क्या लिख दूं मै
बध कर जिसमे कैद रहे वो
जब भी करवट बदले पन्ने
हर करवट के बाद दिखे वो
पर दिल तो अभ भी कच्चा है
जैसे छोटा सा बच्चा है
महसूस करे हर लम्हो को
पर बोल न पाए अधरों से
नाकाम सी कोशिश करता मै
यादों को उसमे में भरता मै
जिससे जादू की वो पुडिया
अधरों पर आकर चहक सके
जिसमे मेरी प्यारी गुडिया
पन्नो पर आकर लिपट सके
कुछ बयां कर सकूं दिल में जो
बातें हैं और रहेंगी भी
बध सकूं उन लम्हों को
जो बीते हैं,अनबीते भी
पर लगता है पागल हूँ मै
कोशिश ही ऐसी करता हूँ
उसका वह सीधा सा स्वाभाव
टेढ़े अक्षर से लिखता हूँ
माफ़ करो प्रियतम मेरे
इसमें मेरा कुछ दोष नहीं
जब तुम ही इतने अच्छे हो
न लिखने का अफ़सोस नहीं
जब टेढ़े हो जाओगे तुम
टेढ़े शब्दों में बधुंगा
कविताओं में क्या रक्खा है
लिख महाकाव्य दिखला दूंगा
-राहुल पंडित

Tuesday, March 23, 2010

एक पत्र आपको


अभी तक मैंने सुना था की ब्लॉग पर लोग अपने विचारो का आदान -प्रदान करते हैं,लेकिन शायद मै पहला व्यक्ति हूँ जो अपने ब्लॉग पर किसी को पत्र लिख रहा हूँ.ये पत्र हमारी फिल्मो,या लैला-मजनू,सीरी-फरहाद या रोमियो -जुलिओट की तरह कोई प्रेमपत्र नहीं है.
यह एक ऐसा पत्र है जो मै उस सख्स को लिख रहा हूँ जो शायद कुछ वर्षों में मेरी जीवन संगिनी बन जाये|
गुडिया जब से मेरे शादी की बात चली तब से मै बहुत दुखी रहने लगा था.मै अपने पूज्य माताजी और पूज्य पिताजी को दुखी नहीं करना चाहता था..इसलिए मैंने अपनी हामी में उनकी ख़ुशी देखी.इसका मतलब ये नहीं है की आप मुझे नापसंद हो या मै आजीवन ब्रह्मचारी रहना चाहता हूँ बल्कि ये था की मुझे डर था की मेरी शादी किसी ऐसी लड़की से हो जाये जो मेरे पथ प्रदर्शक न बनके मेरे हर काम में व्यवधान पैदा करे तो मै तो अपने कर्तव्य पथ से विचलित न हो जाऊं .
मै आपसे जब भी बात करता हूँ तो मुझे एक-एक शब्द सोच समझ कर बोलना पड़ता है.लेकिन उस शाम के बाद मुझे पता नहीं ऐसा क्यूँ महसूस होने लगा की आप से अच्छा मेरे लिए कोई नहीं हो सकता.
पता है पहले लड़किओं से मै ज्यादा बात नहीं करता हूँ .इसका मतलब ये नहीं की मै लड़किओं से घृणा करता हूँ बल्कि एक लड़की को छोड़कर मेरी सोच किसी से नहीं मिलती थी.
सभी की सभी की एक ही सोच थी-इश्क,मुहब्बत और प्यार .लेकिन मै इन चीजों से हटकर रियल दुनिया में जीने वाला था.क्यूंकि मुझे पता है की यह स्वित्ज़रलैंड नहीं आर्यावर्त है.हम करोणों सालों से अपना अस्तित्व बचा के रखे हैं रो इसके पीछे एकमात्र कारन है की हम-"यात्रा नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता" के सिद्धांत पर काम कर रहे हैं.
पर ये चीजें अब तो कल्पनाओं तक ही सिमित रह गईं हैं और मुझे अपना अतीत लौटने की पूरी कोशिश करना है.
गुडिया,मै बहुत खुश हूँ की आप मुझे मिले.लेकिन मै चाहूँगा की आप अपने पुरे जीवन यही वाली गुडिया बन के रहना.
पता है ये २०१० है और आपको ऐसी लडकिया या लड़के बहुत मिल जायेंगे जो आप के साथ जीने मरने की कसमे खाते हैं और बाद में....पता नहीं क्यूँ मुझे इन सब चीज़ों पर विश्वास नहीं होता इसलिए मै कभी भी किसी के सामने प्रतिज्ञा नहीं कर सकता की मै आप के लिए चाँद तारे तोड़ कर la सकता हूँ.मै एक साधारण सा इन्सान हूँ जिससे गन्ने का एक लट्ठ नहीं टूट पाया और वो चोरी करते हुए पकड़ा गया तो वो चाँद तारे क्या तोड़ेगा.
एक और बात आपके अन्दर एक खास गुण है जो और बहुत कम लोगों में है.....आप सबकुछ बता देते हो......यह बहुत बड़ी बात है लेकिन मेरी लाइफ में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो मै किसी को नहीं बता सकता..शायद दुबारा से खुद को भी...लेकिन इन चीजों से हमारी जिन्दगी प्रभावित नहीं होती.
शायद मै कुछ ज्यादा लिख रहा हूँ....
मै आपसे आखिरी बार कहना चाहूँगा की आप यही वाली गुडिया बनी रहना.आपका यह रूप बहुत अच्छा है,सो प्ल्ज़.
-your
rt

Sunday, March 21, 2010

अतीत


सीसे के मानिंद टूटते हुए
अतीत को देखा मैंने अपने सामने ही
पहले घर से समुदाय,समुदाय से गावं बनते थे
पर अब तो राज्य से राज्य
देश से देश
घर से घर बनते हैं
कहाँ गया वो अतीत?
शायद वह भी अतीत ही बन गया
बिना गुजरे हुए मेरे सामने से
संयुक्त परिवार कल्पना बन गया
रह गईं बस टूटी फूटी यादें
जो अस्तित्व ख़तम होते देख कराह रही हैं
-राहुल पंडित

पर बनारस कभी न बदला


धरती बदली,सागर बदला
नारी बदली,नर भी बदला
मलयांचल की पवने बदली
हिंद महासागर भी बदला
बदल गयी है सभी हवाएं
बदल गई हैं सभी दिशाएं
बदल गया मानव स्वभाव भी
पे बनारस कभी न बदला
कभी न बदला-कभी न बदला
गलियां वैसी की वैसी हैं
नदियाँ वैसी की वैसी हैं
गंगा की लहरों की मचलन
अब भी वैसी की वैसी है
मणिकर्णिका का घाट वही है
सारनाथ का नाथ वही है
महादेव की बोल वही है
बाबा विश्वनाथ वही हैं
सोचे बदली-चाहत बदला
पर बनारस कभी न बदला
कभी न बदला-कभी न बदला
चौराहों पे साड़ वही है
बात-बात में रार वही है
घंटो की गुंजन भी वैसी
वरुण में भी बाढ़ वही है
वही लोग हैं वही दुकाने
वही राह हैं-वही मखाने
वही भंग का अद्भुत गोला
बम-बम केते वही दीवाने
शाशक बदला-शाशन बदला
पर बनारस कभी न बदला
कभी न बदला-कभी न बदला
-राहुल पंडित

स्वर्ग को देखा मैंने


आज स्वर्ग को देखा मैंने
अपनी कल्पनाओ से एकदम विपरीत
अस्तित्व के लिए तड़पते हुए
स्वर्ग
धरती का स्वर्ग
कश्मीर कहतें हैं जिसको
पढ़ा था पुस्तकों में जिसको
जिसकी अनंत सुन्दरता को
देखा उसको मैंने आज
नज़दीक से छूकर
वर्फ आज भी थी
वह पिघ्हल कर अशुओं की तरह बह रही थी
पुस्तकों में पढ़े हुए वाही शेब के बाग
पर उनमे वो मिठास कहाँ?
वाही डल-झेलम के सिकरे
पर वो भी डर-डर कर चल रहे थे
फूलों में सुगंध आज भी थी
पर बारूद की
स्वर्ग को देखा मैंने
जो स्वर्गत्व को छोड़कर मुर्दों की तरह खड़ा था.
पुराने दिनों को सोचकर रोना उसकी जिन्दगी बन गई.
-राहुल पंडित

मजदूर


अस्थि-चरम में भेद नहीं,कर लिए फावड़ा बाध माथ.
उर लिए लालसा मधुर-मधुर,धरती सपूत चल दिए साथ.
तोडा पत्थर,तोडा पहाड़,गिरते मोती से सीकर बूँद.
पर लगन विजय को पाने की,पाने को प्रतिफल सहित सूद.
गर्मी की तपती धरती पर,थोड़े पैसे की चाहत में,
थोड़ी सुविधा सब लोगों को,थोड़े पैसे की लालच में,
कर रहे काम जी भर-भर के,धरती माँ के सच्चे सपूत,
अग्नि से आग बुझाते हैं,ये वीर पुत्र धरती सपूत.
-राहुल पंडित

Friday, March 19, 2010

एक सिक्का


रोड पर बैठे हुए,
हाथ में खाली कटोरा
बन दया का पात्र जग में,
वह धूप में बैठा हुआ था.
रास्ते पर चहल कदमी,
कम नहीं तो अधिक भी ना.
मई की उस तीक्ष्ण गर्मी में,
था मैंने उसको देखा.
देख कर पहली नज़र में,
आदमी कहना कठिन था.
बना ढाचा अस्थिओं का,
मार्गिओं को देखता वह.
लोग आते,लोग जाते.
पर न कोई देखता था.
वह करून चीत्कार करता.
पर न कोई सोचता था.
जब कोई गुजरा बगल से,
आशनाई साथ आई.
पर क्षणों को बितने पर,
आँख में आई रुलाई.
मैभी गुजरा उस डगर से,
ढक बदन को बासनो से.
सेख उसको दया आई.
फेक दिया एक रुपिया.
पर मुड़कर दुबारा,
उसकी तरफ मैंने न देखा.
पैसा उठाया न उठाया,
इसकी मुझे चिंता नहीं थी.
चला आया घर पर अपने,
मुह धो पंखा चलाया.
ले मजा शीतल पवन का ,
खाना खाकर सो गया मै.
शाम को जब नींद टूटी,
घडी ने रहा पांच बजाया.
शाम का अख़बार लेकर,
द्वार से हाकर पुकारा.
लिए पेपर बढ़ चला मै.
सरसरी नज़रों से देखा.
पढ़ खबर मृत भिखारी की.
दिल में मेरे हलचल मची थी.
एक रूपए फेककर मै,
मार्ग में आगे बढा था.
लुढ़ककर वह काल सिक्का,
सड़क के था मध्य पंहुचा.
सिक्के की लालच,
सड़क पर उसे खीच लाई.
कुछ क्षणों के बाद में ही,
तेज़ गति मोटर तब आई.
मार दी टक्कर उस,
वह की जंग जीता.
पर ये घटना आज भी मेरे,
उर को शालती है..
-राहुल पंडित