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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Friday, September 30, 2011

जिस दिन मेरी कलम झुके तुम मेरा शीश कलम करना


चाहे बोलो चीख रहा हूँ या बोलो चिल्लाता हूँ
चाहे बोलो चीख-चीख करके ताली बजवाता हूँ
कोई कुछ भी बोले मुझको इससे फर्क नहीं पड़ता
क्यूंकि जब तक स्वर्ग धरा का सचमुच स्वर्ग नहीं होता
तब तक यूही चीखूंगा ,तब तक यूहीं चिल्लाऊंगा
अपने भारत माँ की पीड़ा व्यथा वेदना गाऊंगा
अंतस में भूसन जागा लेखनी ज्वाल बन बैठी है
काली कर तलवार उठाकर महाकाल बन बैठी है
इसी लिए मेरी कविता के तेवर थोड़े तीखे हैं
तुम कविता मानों तो कविता,वरना केवल चीखें हैं
मै दर्दीले गीतों में भाषा श्रृंगार न भर पाया
यमक,श्लेष,अनुप्रास सरीखे चमत्कार न कर पाया
जब लिखने बैठा तो व्याकरणिक परिभाषा भूल गया
आततायी के आगे कविताई की भाषा भूल गया
जो न कभी भी छिप सकती है,मै ऐसी सच्चाई हूँ
कहीं चन्द,भूसन जगनिक हूँ,कही चंद्रवरदाई हूँ
हठी से कुचला जाये पर कवि की कलम नहीं डरती
कवि की कलम कभी सत्ता को डर कर नमन नहीं करती
मैंने भी कोशिश की है,कविता का धरम निभाने की
भूसन वरदायी दिनकर की परिपाटी अपनाने की
झूठ न बोलूँगा जुबान पर चाहे शोले धरवालो
अग्नि परीक्षा मेरे कलम की जब भी चाहो करवालो
गद्दारी करता दिखूं तो मुझपर नहीं रहम करना
जिस दिन मेरी कलम झुके तुम मेरा शीश कलम करना

9 comments:

  1. बहुत खूब! राहुल! विचार पसंद आए !

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  2. विचार - मतलब आपकी वीररस से भरपूर कविता के भाव!

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  3. वीर रस से परिपूर्ण कविता पढ़कर दिल खुश हो गया.

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  4. bahut badiya ojpurn rachna prastuti ke liye aabhar!
    Dussehra kee haardik shubhkamnayen!

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  5. आपको विजयदशमी की शुभकामनाएँ!

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  6. बहुत सुँदर वीर रस से परिपूर्ण रचना

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  7. बहुत सुँदर वीर रस से परिपूर्ण रचना

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  8. बहुत सुँदर वीर रस से परिपूर्ण रचना

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