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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Monday, December 5, 2011

बाबरी बिध्वंश के १९ साल:एक बार मुसलमान क्यों न दें धर्मनिरपेक्षता का सबूत?


आज ६ दिसंबर है और आज के ही दिन बाबरी का विवादित ढाचा कारसेवकों ने गिराकर,श्रीराम मंदिर के पुनर्निमाण के लिए मार्ग प्रशस्त किया था.यही इतिहास के गिने चुने समय में से एक समय था जब हिन्दू एक हुए थे.यह हमारे देश और सत्यासनातन संस्कृति का दुर्भाग्य ही है जिसके कारण १९ साल बीत जाने के बावजूद श्रीरामलला का मंदिर राजनितिक गलियारों के टेढ़ी मेढ़ी गलियों के भूलभुलैया में गम होकर एक मुद्दा मात्र बनकर रह गया है,जिसका उपयोग कुछ पार्टियाँ हिन्दुओं को लुभाने के लिए तो कुछ मुसलमानो का वोटबैंक बचाने के लिए उपयोग करती हैं.
मुझे बहुत दुःख होता है की हरबार धर्मनिरपेक्षता का परिचायक हिन्दू ही बनता है,क्या एक बार मुसलमान धर्मनिरपेक्ष बनकर यह नहीं कह सकता की ईश्वर एक है,आप लोग राम मंदिर का निर्माण करिए भारतीय मुसलमान अपनी गंगा-ज़मुनी तहजीब को कायम रखते हुए मंदिर निर्माण में सहायता करेंगे.

श्री रामचंद्र जी केवल हिन्दुओं के लिए पूज्य नहीं हैं,ये समस्त भारतवासियों के लिए पूज्य हैं.यही वजह है की भारत का संबिधान धर्मनिरपेक्ष होते हुए भी भगवान् राम को ही अपना आदर्श मानता है,और हमारे संबिधान के पहले पेज पर भगवान राम का चित्र लगाया गया और कहा गया है की हम आपके आदर्श पर चलकर बीना कोई भेदभाव किए अपने कर्तव्य का निर्वहन करेंगे.
ये हमारे देश के सारे मुसलमान जानते हैं की सनातन धर्म में भगवान राम की आस्था कहाँ तक जुडी है,फिर एक बार हिन्दुओं के धार्मिक भावना का आदर करते हुए उन्हें राम मंदिर के निर्माण में सहयोग करना चाहिए.जैसे काबा मुसलमानों के लिए पवित्र है,उसी तरह अयोध्या भी हिन्दुओं के लिए.आखिर हमने तो कभी नहीं कहा की हम काबा में मंदिर बनाना चाहते हैं.
कुछ लोग तर्क देते हैं की यह जगह मुसलमानों के इबादत की जगह है,उन्हें मै बताना चाहते हूँ की यह इबादत की जगह नहीं विदेशी दाषता का प्रतीक है.जिस तरह देश की आज़ादी के बाद देश भर में लगे तमाम महारानी विक्टोरिया और अंग्रेज हुक्मरानों की प्रतिमाएं तोड़ दी गयीं,उसी तरह अगर किसी देश के मूल निवासियों के आस्था के सबसे बड़े केंद्र को विदेशी चिन्ह से मुक्ति देना गलत नहीं है.
पहले मुसलमान कहते थे की यहाँ कोई मंदिर नहीं था,लेकिन अब तो ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ) ने यह भी बता दिया है की बाबरी ढाचा किसी हिन्दू मंदिर को तोड़कर बनाया गया था जिसमे मंदिर के अंग ही प्रयोग किये गए थे.अब तो मुसलमानों को अपना राष्ट्रधर्म निभाना चाहिए और उन करोनो हिन्दू आस्थाओं के लिए राम लला के मंदिर का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए जिनकी वजह हिंदुस्तान में मुसलमानों का वजूद है. उन्हें सोचना चाहिए की अगर सारे हिन्दू मुसलमानों की तरह सोच रखते तो क्या आज जैसी पाकिस्तान में हिन्दुओं की दशा है,हिन्दूस्तान में मुसलमानों की होती.

Sunday, December 4, 2011

फूल नहीं धधकता अंगार हूँ मैं




फूल नहीं धधकता अंगार हूँ मैं।
थके स्वाभिमान को झकझोरती ललकार हूँ मैं।
सो‍ई भारत की वर्षों से अन्तरात्मा
नवजागरण की पुकार हूँ मैं।
ग़ुलामी बस चु्की है ख़ून में
पर क्रांति की टंकार हूँ मैं।
सर अब हमारा कभी न झुकेगा
विजयमाला का शृंगार हूँ मैं।
भस्म होगी सब दासता मानस की
सच्चे स्वाधीनता की चिंगार हूँ मैं।
बुझेगा न ये दीपक चाहे कितना ज़ोर लगा लो
हर आँधी तूफ़ान की बेबस हार हूँ मैं।
अग्निमय हूँ अग्निरूप हूँ अग्नि का उपासक हूँ
अग्नि मेरी आत्मा सत्याग्नि का ही विस्तार हूँ मैं।

साभार
www.agniveer.com