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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Friday, July 30, 2010

धर्मनिरपेक्षता का शिकार हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता


वस्तुत: हिन्दू कभी भी आतंकवादी नहीं हो सकता क्योंकि जिस हिन्दू दर्शन में प्रकृति की पूजा करना, चींटी को आटा खिलाना और नाग को भी दूध पिलाना शामिल है वहां पर पला और बढ़ा कोई व्यक्ति क्या इस आतंकवाद की राह पर जा सकता है?
भारत में जब कभी तुष्टीकरण के खिलाफ कोई आवाज उठती है तो उसे साम्प्रदायिक कहा जाता है, जब कभी देश के गौरवशाली संघर्ष पूर्ण इतिहास को याद दिलाने का प्रयास किया जाता है तो उसे भगवाकरण करने की साजिश बताया जाता है, आतंकवाद के मुद्दे पर जब देश को जाग्रत करने का अभियान चलाया जाता है तो हिन्दू आतंकवाद के नाम पर नयी पैंतरेबाजी शुरू हो जाती है।
आपको ध्यान रहे कि नये-नये शिगूफे छोड़ने में माहिर ये वही लोग हैं जो इस देश के इतिहास में गुरु तेग बहादुर और चन्द्रशेखर आजाद को भी आतंकवादी पढ़ाये जाने वाले पाठयक्रम की वकालत करते हैं, इनको रात-दिन केवल एक ही खतरा सताता रहता है कि कहीं यह देश आत्म विस्मृति से जागकर खड़ा हो गया तो इनकी दुकान में ताला लग जायेगा।वस्तुत: आज कल हिन्दू आतंकवाद वास्तविकता पर पर्दा डालने वाली शक्तियों के द्वारा हिन्दुत्व प्रेमियों के लिए एक विशेष गाली के रूप में प्रयोग किया गया एक नया ब्राण्ड है।
वैसे भी राजनीति में हर आम चुनाव आते ही कुछ लोगों और दलों को विशेष प्रकार के नवीन ब्राण्ड की खास जरूरत होती है। कभी गरीबी हटाओ का नारा दिया गया, कभी राष्ट्र की एकता अखण्डता का नारा दिया गया, कभी साम्प्रदायिक ताकतों को मिटाने का नारा दिया गया। इसमें से कौन से नारे के अनुरूप आचरण किया गया तथा देश का कितना भला हुआ यह तो इतिहास के पन्ने ही जानते हैं, फिर इस नये ब्राण्ड से देश का कौन सा भला होगा यह तो समय बतायेगा। आम चुनाव के पहले अपनी-अपनी पीठ थपथपाने वालों को ध्यान रखना चाहिए कि कहीं वास्तविक अपराधी न छूट जाए और हम अपनी खुन्नस ही निकालते रहें।
वैसे तो न्याय का एक नैसर्गिक नियम है कि एक भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए भले ही अपराधी क्यों न छूट जाए। सरकारों के तीन ही मुख्य काम है कानून बनाना, कानून का पालन कराना और न्याय दिलाना। देश की जनता हर आम चुनाव में इन तीनों बातों का आकलन जरूर करती है, न्याय और अन्याय की भाषा को समझती है, धर्म और अधर्म की राह पर चलने वालों को पहचानती है तथा अत्याचारी और विद्वेष पूर्ण ही नहीं मनगढ़ंत प्रलापों को भी बखूबी समझती है।
वैसे तो हिन्दुत्व पर आक्रमण कोई नयी बात नहीं है। चूंकि हिन्दुत्व ही भारत की पहचान है इसीलिये सन् 637 में पहला जेहादी हमला भारत पर हुआ तथा 570 साल के संघर्ष के बाद सन् 1207 में दिल्ली में मुगल सत्ता स्थापित हो गयी किन्तु 500 साल भी टिक नहीं पायी। फिर भी न जाने कितने मंदिर टूटे, पृथ्वीराज चौहान की आंखे निकाल ली गयी, भाई मतिदास का सिर आरे से चिरवाया गया, भाई सतीदास के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये, भाई दयालदास को खौलते तेल की कढ़ाई में डाल दिया गया, गुरू तेगबहादुर का सिर कलम कर दिया गया, गुरुपुत्रों को जिन्दा दीवालों में चुनवाया गया, वीर हकीकत राय का बलिदान हुआ, बन्दा बैरागी की बोटी-बोटी नुचवायी गयी लेकिन जेहाद हारा और भारत विजयी हुआ। भारत में अगर हिन्दुत्व को अपमानित करने के प्रयास होते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होता है। कश्मीर से तीन लाख हिन्दू निकाले जाते हैं और देश के कुछ नेता कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं समझते। दुनिया में बसे हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों के विरोध में बोलने के लिये जिनके पास दो शब्द भी नहीं है, उन्हें अरब देशों पर बहुत चिंता होने लगती है। उन्हीं को हिन्दू आंतकवाद भी जहरीले नाग की तरह दिखता है और पुलिस द्वारा जब आजमगढ़ के किसी आतंकवादी को पकड़ा जाता है तो वे गहरा दु:ख व्यक्त करते हैं। दूसरी ओर वहीं पर इकट्ठा होकर कुछ तथाकथित देशभक्त आधुनिक भारत में 565 रियासतों के एकीकरण के अग्रदूत लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को आतंकवादी कहने की हिम्मत जुटा लेते हैं और वही नेता सुनते रहते हैं, एक शब्द भी बोलने की आवश्यकता नहीं समझते। ऐसे ही लोग जामिया नगर मुठभेड़ में शहीद पुलिस अधिकारी की वर्दी पर कीचड़ उछालने से नहीं हिचकते।
वस्तुत: हिन्दू कभी भी आतंकवादी नहीं हो सकता क्योंकि जिस हिन्दू दर्शन में प्रकृति की पूजा करना, चींटी को आटा खिलाना और नाग को भी दूध पिलाना शामिल है वहां पर पला और बढ़ा कोई व्यक्ति क्या इस आतंकवाद की राह पर जा सकता है? यह एक गहन विचार का प्रश्न है। दुनिया के देशों में भारत ही आतंकवाद के दंश को झेलने वाला प्रमुख देश है। हमारा दुर्भाग्य है कि इस देश के प्रधानमंत्री केन्द्र सरकार के समर्थक या विरोधी के आधार पर अपनी जुबान खोलते हैं, न कि देश की इज्जत बचाने के लिये।
22 नवम्बर 2008 को राज्य पुलिस प्रमुखों की बैठक में बोलते हुये उन्होंने कहा कि देश के लिये वामपंथी आतंकवाद यानी नकसलवाद सबसे बड़ी समस्या है। यह सत्य उनके मुंह से तब निकला जब वामपंथी परमाणु करार के कारण उनकी सरकार से अलग हो गये। जब पश्चिम बंगाल के चुनाव आये तो प्रधानमंत्री जी को समझ में आया कि वामपंथी हमारे वहां पर दुश्मन हैं, चार साल तक गलबहियां डालने से पहले देश के हित में अगर विचार किया होता तो वामपंथी और मुस्लिम लीग केन्द्रीय सत्ता का हिस्सा कभी भी नहीं बन सकते थे और न ही प्रख्यात योग गुरु रामदेव के बारे में अनर्गल आरोप वामपंथी वृंदा करात के मुंह से निकल पाते।
वास्तव में इस देश को हिन्दू आतंकवाद से नहीं, खतरा तो उन शक्तियों से है जो कभी मानवाधिकारवादी चोला पहनकर, कभी लेखक या पत्रकार बनकर, कभी धर्मनिरपेक्ष नेता बनने का बहाना बनाकर देश विरोधी तत्वों की पैरवी करते हैं। चंद वोटों का लालच या चंद नोटों की चाहत उनकी कार्यशैली का हिस्सा बन चुकी है। देश में संसाधनों पर पहला हक किसी गरीब का नहीं, मुसलमानों का है, देश के मुखिया के मुंह से यह शब्दावली उसी कार्यशैली का हिस्सा है।
इस देश में दीपावली के ठीक एक दिन पहले शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती को गिरफ्तार किया जा सकता है लेकिन न्यायालय की अवमानना करने पर इमाम बुखारी को चेतावनी भी नहीं दी जा सकती। संत आशाराम बापू के अपमान का कुचक्र रचा जा सकता है लेकिन होली के एक दिन पूर्व कोयम्बटूर बम विस्फोट में 58 निर्दोषों की हत्या के मुख्य आरोपी अब्दुल नसीर मदनी को बाइज्जत रिहा कर दिया जाता है।
संसद हमले के आरोप में न्यायालय से सजा प्राप्त अफजल को फांसी से बचाने के प्रयास करने वाले लोग अमरनाथ श्राइन बोर्ड को किराये पर दी गयी भूमि हड़प सकते हैं, वीर सावरकर की सम्मान पट्टिका को उखाड़ देते हैं, आतंकवादियों की पैरवी करने की घोषणा करने वाले जामिया विश्वविद्यालय के कुलपति के विरुध्द एक भी शब्द न बोलने की हिम्मत जुटा सकने वाले लोग दीपावली के दिन भी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का खाना छीन सकते हैं। कितना आश्चर्य होता है कि इन्हीं के एक मित्र और सरकार के सहयोगी राजठाकरे सौ खून माफी का पुरस्कार महाराष्ट्र सरकार से प्राप्त करके नफरत के बीज बो रहे हैं, वह भी इन्हें दिखायी नहीं देता। इन्हें न तो असम के विस्फोट दिखते है और न ही बांग्लादेशी घुसपैठिये। इन्हें महाराष्ट्र में मालेगांव विस्फोट को आरोपियों पर मकोका की आवश्यकता दिखायी देती है लेकिन उत्तर प्रदेश में उप्रकोका तथा गुजरात में गुजकोका की आवश्यकता नहीं दिखायी देती। गृहमंत्री को पोटा जैसा कानून पसंद नहीं, ऐसा बयान जारी होता है। पसंद है हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों पर किसी भी तरह का लांछन या आरोप। इसी आरोप के तहत गांधी हत्या में संघ का नाम घसीटा था। इसी तरह देश में आपात स्थिति और 1975 में संघ पर प्रतिबंध लगाया गया था। लेकिन जिन संगठनों पर ब्रिटेन सरकार और बीबीसी रेडियो तक कोई सन्देह नहीं कर सकता उन्हें कटघरे में खड़ा न करने वाले इस देश को कौन सा संदेश देना चाहते हैं?

विदेशी पैसे के बल पर चलने वाले कुछ इलेक्ट्रानिक चैनलों और समाचार पत्रों को उड़ीसा दिखाई देता है लेकिन संत लक्ष्मणानन्द सरस्वती को छोड़कर। गुजरात भी दिखाई देता है लेकिन गोधरा को छोड़कर। देश भी दिखाई देता है लेकिन हिन्दुओं को छोड़कर। अब तो देश की जनता को सोचना ही पड़ेगा। महात्मा गांधी ने कहा था कि असत्य, अन्याय और दमन के सामने झुकना कायरता है तथा अपराध करने वाले के साथ ही अपराध और अन्याय सहने वाला भी उसी पाप का भागी है। आज की आवश्यकता है कि हम कम से कम उसके भागीदार तो न बनें।

Wednesday, July 28, 2010

कहें गरज कर हम हिन्दू हैं,हिन्दुस्तान हमारा है


जन्मभूमि जननी का कण-कण हमें स्वर्ग से प्यारा है.
कहें गरज कर हम हिन्दू हैं,हिन्दुस्तान हमारा है.
दूर-सूदूर बृहद सीमाएं,क्रमश: कैसी सिमट रहीं.
राष्ट्र धर्म,सम्मान,अस्मिता,चोटें सब पर सतत पड़ीं.
बिघटन को हम मिल कर रोकें,पौरुष ने ललकारा है.
कहें गरज कर हम हिन्दू हैं,हिन्दुस्तान हमारा है.
हिन्दू जगा है,देश जागेगा,नव निर्माण का युग लौटेगा.
हिन्दू हितों का रखवाला ही,भारत भू पर राज्य करेगा.
जियें देश हित,मरे देश हित,यह संकल्प हमारा है.
कहें गरज कर हम हिन्दू हैं,हिन्दुस्तान हमारा है.
जन्मभूमि पर विशाल मंदिर,भगवा ध्वज फिर से लहरेगा.
मथुरा-काशी के आंचल से,अपमानो का चिन्ह छटेगा.
राम नाम की अद्भुत महिमा,सत्ता मद भी हारा है.
कहें गरज कर हम हिन्दू हैं,हिन्दुस्तान हमारा है.
कदम-कदम पर विकट चुनौती,पंथ मतों का भेद मिटायें.
कोटि -कोटि हिन्दू हृदयों में,राष्ट्र भक्ति का भाव जगाएं.
संघ शक्ति कलियुग में प्रकटी,कल का समय हमारा है.
कहें गरज कर हम हिन्दू हैं,हिन्दुस्तान हमारा है.

Monday, July 26, 2010

भारतीय मुसलमान:कौम बड़ा या मुल्क?


सभी हिंदुत्व के रखवालों को विजय दिवस की बधाइयाँ,

उन शहीदों को शत-शत नमन जिन्होंने राष्ट्र रक्षा में खुद को बलिदान कर दिया.

देश के उन तमाम जवानो को जो की आज भी हमारे राष्ट्र की रक्षा के लिए हमारे सरहदों पर खड़े जाग रहे हैं ताकि हम चैन से सो सकें और हमारी भारत माता की तरफ दुबारा से कोई बाबर और क्लाईव जैसा दरिंदा अपने अछूत हाथो से श्पर्श न करे,मेरा शत-शत प्रणाम.

आज विजय दिवस है.आज हमने उन पाकिस्तानी मुल्लाओं को अपने देश की सीमा से भगाया था जिन्होंने पैसठ और इकहत्तर के बाद निन्यानवे में दुबारा से हमारे विरुद्ध हमारी सीमा में घुस आये.वास्तव में ये हमारे लिए एक गर्व का दिन है.
आज जब मै सुबह-सुबह उठा तो समाचार पत्र में कारगिल विजय की खबरे पढ़ रहा था.मेरे एक मित्र हैं मसूद आलम.मैंने युही पूछ लिया की आज कुछ खास दिन है,बताओ क्या है?
साब ने कहा आज तो कुछ नहीं है कल सबेबरात है.मैंने कहा वो तो कल है,आज बताओ.
फिर मैंने बताया आज विजय दिवस है और आज हमने कारगिल फतह की थी.
साब ने कहा इसमें क्या खाश है जो याद रखा जाये?
मैंने कहा जिस देश में रहते हो उसके बारे में थोड़ी सी जानकारी तो होनी चाहिए.
कहा कैसा देश?आज मै यहाँ हूँ कल कहीं और मुझे ज्यादा पैसा मिलेगा मै चला जाऊंगा.
बात बढ़ी.मैंने पूछा कौम बड़ा या मुल्क.
उन्होंने कहा साधारण सी बात है.कौम से बढ़ कर कुछ नहीं.
फिर भी आलम साहब,भारत में आईसीआईसीआई में जॉब करते हैं,भारत का खाते हैं,कुछ तो कर्त्तव्य बनता है.
कौम के आगे कुछ भी कर्त्तव्य नहीं है,क्या तुम अपने कौम के लिए देश के खिलाफ नहीं खड़े होगे?
मैंने कहा नहीं,जब राष्ट्र बचेगा तभी कौम बचेगा...राष्ट्र के लिए मै अपने धर्म के खिलाफ हज़ार बार खड़ा होउंगा.
बात बढती गई........थोड़ी सी बहस हमारे बीच हुई,चुकी मुझे ऑफिस जाना था सो मै चला गया.
लेकिन यहाँ पर इस घटना को लिखेने की वजह यह है की मेरे एक ब्लॉग में कैरानावी नाम के एक ब्लोगेर में पूछा था की अगर हिन्दुइस्म सबको सामान मानता है तो ये लोग क्यूँ पूछते हैं की कौम बड़ा की मुल्क?
कैरानावी साहब यही वजह है की लोग पूछते हैं की कौम बड़ा या मुल्क.
क्या आपको लगता है की आलम साहब अगर भारत के ऊपर अरब राष्ट्र आक्रमण करते हैं तो भारत की तरफ से लड़ेंगे?
जिस देश में १७ करोण लोगो की ये विचारधारा हो उस देश में शांति कहाँ से होगी.लोग कहते हैं की भारतीय सेना में मुसलमानों को पर्याप्त जगह नहीं मिली.
कैसे मिलेगी,हमें तो ऐसे जवान चाहिए जो देश के दुश्मन से लादेन चाहे वो जिस कौम का हो.
उन जवानो पर हम कैसे विस्वाश कर सकते हैं जिनके लिए राष्ट्र से बढ़कर धर्म है.
कैरानावी साहब मै आशा करता हूँ की भारत में लोग मुसलमानों से क्यूँ पूछते हैं,धर्म बड़ा या राष्ट्र.इसका जवाब आपको मिल गया होगा.
मै अब यही बात आपसे और तमाम हिन्दुस्तानी मुसलमानों से पूछता हूँ क्या आप भारत की रक्षा के लिए इस्लाम के खिलाफ जंग लड़ने के लिए तैयार हैं?

Tuesday, July 20, 2010

आस्था कुचलने की कोशिश:मथुरा,काशी और अयोध्या





आज मेरी बात एक नए मित्र से हुई..आप महाराष्ट्र से हैं.धीरज राणे साहब वैसे हमारे ऑरकुट के मित्र हैं.लेकिन शायद हमारी जिन्दगी का ध्येय एक ही है..इसलिए हमने अपने मोबाइल नंबर एक दूसरे को बताये.
बात का मुद्दा था..राम मंदिर.मैंने कहा राणे साहब राम मंदिर हमारे आस्था का प्रश्न है.और ये बनना भी चाहिए.धीरज जी ने कहा "पंडित जी,राम मंदिर केवल आस्था का प्रश्न नहीं है.ये हमारे जीवन मरण का सवाल है.सोचिए अगर राम मंदिर नहीं बनता है तो हम उन सैकणों कारसेवकों के के रक्त के रिणी ही रह जायेंगे जो मंदिर के लिए खुद का बलिदान कर दिए."
उनकी बात में सच्चाई भी है.मथुरा,काशी और अयोध्या हिन्दुओं के सबसे प्रमुख तीर्थों में से हैं.हमने मुसलमानों द्वारा तोड़े गए हजारों मंदिर की मांग नहीं की है.न हमने उनसे मक्का माँगा है.(ये दीगर बात है की मक्का भी एक हिन्दू तीर्थस्थल है).हम जानते हैं की मक्का मुसलमानों की आस्था की जगह हैं.ये कैसी विडम्बना है की जिस देश में ८०%हिन्दू निवासी है.जो आदि अनादी काल से उनकी जन्मभूमि है.उन्हें अपने ही देश में मुट्ठी भर बहार से आये हुए म्लेक्षों से अपने तीर्थस्थलों को मागना पड़ रहा है.

आज जब हम उनसे कोई मांग करते हैं तो वो हमसे सर्टिफिकेट मांगते हैं.मुसलमानों की श्रद्धा है की हज़रात मुहम्मद साहब पंख वाले घोड़े पर बैठ कर स्वर्ग गए और उसी घोड़े से धरती पर वापस आये.जहाँ घोडा उतरा,येरुशलम में वहां मुसलमानों ने अल अक्सा मस्जिद बनवा दी.ये १४०० साल पुरानी बात है.हमने कभी मुसलमानों से सर्टिफिकेट मांगे.नहीं,कभी नहीं. तब हमारे प्रभु राम तो १७ लाख साल पहले आये थे.तुम उनका सर्टिफिकेट कैसे मांग सकते हो.
और मै तो मानता हूँ की सर्टिफिकेट की जरुरत क्यूँ-
अयोध्या में बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि पर बनी है.
बनारास(काशी) में ज्ञानवापी मस्जिद बाबा विश्वनाथ के मंदिर में बनी है.
मथुरा की ईदगाह किसको नहीं पता.
इन जगहों को देखते ही पता चल जाता है की ये मंदिर हैं या मंदिर के ऊपर मस्जिद?
कहीं मस्जिद का नाम ज्ञानवापी नहीं होता.
राणे साहब ने जो कहा.उन बातों का मै पूरा समर्थन करता हूँ.
ये हमारे केवल आस्था के विषय नहीं हैं.ये हमारे जीवन मरण का प्रश्न है.तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादी हमारे अस्तित्व को मिटने की कोशिश कर रहे है.
हम जीते जी ऐसा नहीं होने देंगे.
राम जन्म भूमि पर विशाल मंदिर बनेगा.
बाबा विश्वनाथ मंदिर का पुनरोद्धार होगा और ज्ञानवापी मस्जिद ......
श्री कृष्ण जन्मभूमि आतताइयों के आतंक से मुक्त होगी.

यही हमारे जीवन का लक्ष्य है.
यही हमारी साधना है.
वन्देमातरम

Monday, July 12, 2010

गर्व से कहो हम हिन्दू हैं-


गर्व से कहो हम हिन्दू हैं क्योकि-
१. हम दुनिया के सबसे पुराने धर्म के अनुयायी हैं.
२. "वसुधैव कुटुम्बकम" कहने वाला हिंदुत्व दुनिया का एक मात्र धर्म है.
३. हिन्दू धर्म दुनिया का एक मात्र धर्म है जिसमे अनुयायी बनाने का विधान नहीं है क्योकि हम मानते है की सभी लोग जो ईश्वर को मानते हैं,हिन्दू हैं.
४. महान "वेद" दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तक हैं जो हिन्दू धर्म की हैं.इससे यह जान पड़ता है की जब दुनिया में लोग नंगे घूमते थे और जंगलों में रहते थे तब भी हमारे यहाँ शिक्षा का प्रसार था.
५. हमने कभी भी किसी पर आक्रमण नहीं किया फिर भी हम दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है.
६. "योग चिकित्सा पद्धति" दुनिया की सबसे पुरानी चकित्सा पद्धति है जो हिन्दू धर्म की है.
७. हमने दुनिया को तीन महान जीवन दर्शन( बौद्धिस्म,जैनिस्म और सिक्खिस्म)दिए.
८. हम लाखो वर्ष से दुनिया में हैं लेकिन हमारा कोई आतंकवादी इतिहास नहीं रहा है.
९. हमने कभी नहीं कहा की हिंदुत्व के आलावा दूसरी पूजा पद्धति मानने वाले हमारे दुश्मन हैं.
१०. परोपकार के लिए हमने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया.
११. हमारा परमेश्वर नहीं कहता की जो हिन्दू नहीं हैं उनको मारो और तुम्हे स्वर्ग मिलेगा.

Wednesday, July 7, 2010

भारीतय मुसलमान:एक तीखा सच


ये बातें लिखते हुए मुझे हार्दिक दुःख हो रहा है...शायद ये बातें बहुतो को बुरी लगेंगी और लगनी भी चाहिए.क्यूंकि बात ही ऐसी है...लेकिन कुछ सच्ची बातें बहुत कटु होती हैं लेकिन उनको समाज के सामने रखना पड़ता है.
ये बात भी हमारे भारत वर्ष में निवास करने वाले मुसलमानों के लिए है.लेकिन ये हमारे सभी मुसलमान भाईओं पर नहीं बैठती...ये उन लोगों के लिए है,,जो रहते तो भारत में हैं..लेकिन आज भी पाकिस्तान में उनकी आत्मा बसती है.और मेरे समझ से इन लोगों का एक बहुत ही बड़ा तबका हमारे बीच रह रहा है...और हमें इनसे बचने की जरुरत है.
मै केवल प्रत्यक्ष पर विश्वाश करने वाला व्यक्ति हूँ तो मै इसका उदहारण भी अपने वास्तविक जीवन से दूंगा.-
पहली घटना
मै कक्षा 9वी में पढ़ रहा था.अमेरिका में ९/११ हुआ,हजारों लोग मरे गए.साडी दुनिया में इसका विरोध हुआ.हमले की लोगों ने भर्त्सना की.इसके बाद संयुक्त सेना ने अफगानिस्तान में हमला किया.साडी दुनिया जानती है की हमले के पीछे अलकायदा का हाथ था.मेरे गावं के पास एक सा गावं है धौरहरा.उसी गावं में एक छोटी सी मुसलमानों की बस्ती(हरिहर पुर) है.ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है.वहां पर एक विशेष नमाज़ रखा गया था.ओसामा बिन लादेन की सलामती के लिए.उस समय मै इस बात को ज्यादा गौर नहीं दे पाया..लेकिन थोड़ी बहुत जो समझ थी..उससे मुझे लगता था की लादेन ने गलत किया था.उसी गावं के मेरे एक मित्र थे.मेरे साथ ही पढ़ते थे.मुहम्मद शाहिद साहब.मैंने पूछा-ऐसा नमाज़ आप लोग क्यूँ पढ़े?
उन्होंने बताया-अब्बू कह रहे थे की लादेन हमारे कौम की रक्षा के लिए लड़ रहा है.वो सलामत होगा तो हमारी कौम और हम लोग सलामत होंगे.उस समय ये बात मुझे बहुत बड़ी नहीं लगी..अब मै उसके बारे में सोचता हूँ..की हमारे बीच साधारण से दिखने वाले ये मुसलमान जो हमारे हर शुभ कामों में निमंत्रित भी होते हैं..किसी को भैया तो किसी को चाचा कहा जाता है.जब इन साधारण से लोगों की नये सोच है तो भगवान ही जाने जब अलकाएदा भारत पर हमला करेगा तो ये लोग भारत की तरफ से लड़ेंगे.ये लोग वीर अब्दुल हमीद बनेंगे?
दूसरी घटना
पहला २०-२० विश्वकप क्रिकेट का फाइनल मैच.भारत-पाकिस्तान आमने सामने.बनारस में इन्द्रप्रस्थ सिनेमा में मैच के लिए विशेष शो.बनारस दुनिया के सबसे प्राचीनतम शहरों में से एक है.यहाँ की गंगा-जमुनी तहज़ीब से कौन वाकिफ नहीं है.जहाँ भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान मंदिरों में सहने बजाते हैं तो एक हिन्दू परिवार मदरसा चलता है.हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतिरूप.मैच देखने वालों में हिन्दू भी और मुसलमान भी.अचानक मैच का रुख बदल गया,भारत के छक्के लगने पर एक गुट ताली बजता तो पाकिस्तान के छक्के पर दूसरा गुट. ऐसा हो गया की जैसे हम भारत में बैठकर मैच नहीं देख रहे हैं अपितु ऐसी जगह हैं जहाँ लाइव मैच होरहा है और भारत और पाकिस्तान के लोग बैठे हैं,थोड़ी देर में हिंदुस्तान जिंदाबाद-पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगने लगे.हिन्दू मुसलमानों का दो गुट बन गया.माहौल गरम होते देख पोलिसे को खबर दी गई.शो आधे पर रोकना पड़ा.मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे बनारस के अन्दर भी एक पाकिस्तान रहता है.ये बात बहुत बड़ी थी मेरे लिए.क्यूँ की जो शहर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए जाना जाता हो वहां यह दशा है तो फिर जिन्हें लोग सम्बेदंशील कहते हैं...वहां की क्या दशा होगी...
तीसरी घटना
मेरे सबसे अच्छे मित्रों में से एक.अब्दुल हलीम.पढ़े लिखे और सभ्य भी.बहुदा हमारी चर्चा होती रहती है देश विदेश कीसमसमायिक परिस्थितिओं पर.भारत पाकिस्तान के संबंधो पर चर्चा.बात मुहम्मद अली जिन्ना पर पहुची.मैंने कहा-जिन्ना,गाँधी नेहरु की वजह से पाकिस्तान बना.इसका कुछ तुक नहीं था.जो जिन्ना खुद इस्लाम के रास्ते पर नहीं चलते थे.शराब पीते थे.उन्हें मुसलमानों के नाम पर नया राज्य बनवाने की क्या तुक थी?
मित्र बहुत क्रोधित हुए.उनका मैंने ये रूप पहली बार देखा था.बोलने लगे- दुन्य में दो लोग ही हैं जिनका मै अँधा होकर विश्वाश करता हूँ..औरंगजेब और मुहम्मद अली जिन्ना....और न जाने क्या क्या..... जोश में उन्होंने बहुत कुछ बोला.मुसर्रफ...पाकिस्तान और अल काएदा
की तारीफ के कसीदे पढने लगे.पाकिस्तान को सुरक्षित रहना जरुरी है.क्यूँ की पाकिस्तान ही एक मात्र मुस्लिम मुल्क है जिसके पास परमाणु बम है.और जब यहूदी और दुसरे कौम वाले मक्का में काबा पर हमला करेंगे तो हमारी रक्षा होगी.ये हलीम साहब कोई अनपढ़ मुसलमान नही है.मकेनिकल इंजिनियर में डिप्लोमा.बीसीए,एमसीए..और एक सोफ्टवेयर इंजिनियर.
फिर भी.................

और बहुत सारी घटनाएँ है,,,,,,जो एक साथ ब्लॉग पर नहीं लिखी जा सकती.
मुझे नहीं लगता की इस तरह के हमारे मुसलमान भाई वीर अब्दुल हमीद बनना पसंद करेंगे...

Thursday, July 1, 2010

केवल कुरान पढोगे तो कलाम नहीं बनोगे


एक ब्लागर मित्र की कृपा से कुरान पढने का मौका मिला..वास्तव में कुरान दुनिया की महानतम पुस्तकों में से एक है.जिस कुरान की पहली आयात में ही लिखा है-" नहीं है सिवाय अल्लाह के कोई जो प्रशंसा के योग्य है." जो सारे वेदों का निचोड़ है.तो इसके अच्छी पवित्र पुस्तक कौन सी हो सकती है.
पुस्तकों से प्यार है.बचपन से ही पढने की आदत है.पढता रहा........लगातार कुरान को. जब आखिरी आयत पढ़ी तो पता नहीं क्यूँ ऐसा लगा की इसमें कुछ बातें तो ऐसी हैं जो अल्लाह की कदापि नहीं हो सकती.उदहारण के तौर पर- फिर जब हराम के महीने बीत तो फिर मुशरिकों (गैर मुसलमानों)को जहाँ पाओ क़त्ल करो,और पकड़ो,उन्हें घात लगा कर घेरो,
हर जगह उनकी तक में रहो,अगर वो नमाज़ कायम कर लें तो उनको छोड़ दो नहीं तो उनकी उंगलिया और गर्दन काट लो.निसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील है.(१०:९:५)

मुझे नहीं लगता की अल्लाह ऐसा हो सकता है.जो सारे जगत का पिता है,जो हमारी रचना, और पालन करने वाला है.उसकी ऐसी सोच कैसे हो सकती है? वो ऐसा सन्देश कैसे भेज सकता है.अल्लाह कैसे कह सकता है की-हे इमान वालों, मूर्तिपूजक नापाक हैं.(१०.९.२८)
कैसे कह सकता है-निस्संदेह मूर्तिपूजक तुम्हारे दुश्मन हैं.-(५.४.१०१)
कैसे कह सकता है-
हे नबी,काफिरों से जिहाद करो.उनको जहन्नम में पहुचाओ.(२४.४१.२७).
हमारा पालनकरता कैसे कह सकता है-
हे इमान वालों,काफिरों को लूटो,लुटा हुए माल को गनीमत समझ कर खाओ.(१०.८.६९)
ऐसी बहुत सी आयतें हैं कुरान की जिनको अगर आप अपनी जिन्दगी में उतर लोगे तो मुझे शक है की आप कलाम बन पाओगे...हाँ अफज़ल गुरु,ओसामा...बनाने के चांसेस अधिक हैं.
क्या हमे इन आयातों को कुरान से निकल नहीं देना चाहिए.क्या ये घृणा और वैनामस्यता फ़ैलाने वाली आयातों को पढ़कर कोई भी मुसलमान दुसरे कौम के लोगों को भाई कहेगा या उससे गले मिलेगा.
मुझे तो नहीं लगता.
कुरान में हर चीज़ हराम है जो मुसलमानों के शिवाय किसी दूसरों से प्रेम करने की बात करते हैं.
हम तो दूसरों के त्यौहार पर बधाई भी नहीं दे सकते इस्लाम में-
क्यूंकि इसका मतलब है की दुसरे कौम से हमारा प्रेम है.
जब मिस्र जैसे मुस्लिम देश में कुरान की इन आयातों को मदरसों में पढ़ना प्रतिबंधित है...तो हमारे देश में क्यूँ नहीं हो सकता?
इसकी सख्त जरुरत है.हमारे मुसलमान भाईओं को भी थोडा सा कट्टरता से ऊपर उठकर देखना होगा.उन्हें स्मरण करना होगा की अगर दुनिया का कोई दूसरा धर्म पहले से ही इतनी वैमनस्यता फैलता तो इस्लाम का उदय ही न हो पता.
आप के हिसाब से हमारे पूज्यनीय पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम टी गीता के साथ कुरान पढ़ते हैं...इसका मतलब वो मुस्लमान नहीं हैं?
सोच बदोल मेरे प्रिय मुसलमान भाईओं.
दुनिया मंगल की उर बढ़ रही है...और आप आज भी मानते हो की धरी अंडाकार ही.जो गलत है वो गलत है.अँधा वो नहीं होता जिसे दिखे न..अँधा तो वो होता है की जिसे अपनी बुरे नहीं दिखती...
मुसलमान बनो............लेकिन जाकिर नाइक की सोच से ऊपर उठो.खुद भी आप के पास सोचने की क्षमता अल्लाह ताला ने दी है.
सोचो क्या बुरा है...क्या अच्छा है.
कुरान की अच्छैओं को ग्रहण करो....बुराइओं को छोडो...
आपकी कट्टरता का ही नतीजा है की १४०० सालों बाद भी इस्लाम की दुनिया में एक ही छवि बनी हुई है...