
तुझे देखकर जो जीने की जो ललक थी
जल गयी मेरे अरमानो के संग में
समय ने हमें क्या से क्या कर दिया
जिन्दगी रंग गयी विरह के रंग में
हर तरफ हर दिशा में तुम्हारी हसी
छाई थी बादलों की घटा की तरह
सोचता रह गया प्यार बरसे कभी
पर बरसा वही आशुओं की तरह
तुझे भूलकर जीना मुमकिन नहीं
साथ रहना भी मुझको गवारा नहीं
दिल करे भूल जाऊं तुझे दिलरुबा
पर अपने बस में दिल हमारा नहीं
वो बातें,वो यादें,वो अपने इरादे
वो तनहा सी रातें,वे जीवन के वादे
सभी झूठ थे,झूठ थे-झूठ थे
कैसे बोलूं सभी के सभी झूठ थे
पर यही सत्य है-पर यही सत्य है
तो तुझे भूलने की मै कोशिश करूँ
प्यार जननी जन्मभूमि से मिला जो मुझे
उसपर अपना प्यार मै न्योछावर करूँ.
-राहुल पंडित
वाही आशुओं की जगह वही आंसुओं होना चाहिये..
ReplyDeleteकविता शानदार है...
शानदार , बेमिसाल
ReplyDeleteऐसी सोच मिलती ही कहाँ है . यहाँ तो बहुत से शराब का जाम थाम देवदास बन जाते है .
बेमिसाल ! कविता, आपका आत्मीय धन्यवाद
ReplyDeleteभई वाह....क्या बात है। हर पंक्ति दमदार है।
ReplyDeleteसुन्दर भावाव्यक्ति.....आभार।