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Saturday, December 18, 2010

काकोरी के वीरों को नमन



देश के नौजवानों को अपनी कविता और साहसिक कारनामों से आजादी का दीवाना बनाने वाले काकोरी कांड के नायक राम प्रसाद बिस्मिल और आजादी की लड़ाई में हिंदू-मुसलमानों के बीच एकता का प्रतीक बने अशफाक उल्ला खां ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए हंसते हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था।
सन् 1927 में वह दिसंबर का महीना था जब 19 तारीख को इन जांबाज देशभक्तों की शहादत ने देश के बच्चों, युवाओं और बुजुर्गो में आजादी हासिल करने का एक नया जज्बा पैदा कर दिया था। ये वीर सेनानी काकोरी की घटना से चर्चा में आए थे।
बात 1925 की है जब नौ अगस्त के दिन बिस्मिल के अलावा चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह समेत 10 क्रांतिकारियों ने लखनऊ से 14 मील दूर काकोरी और आलमनगर के बीच शाम लगभग साढ़े सात बजे ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूटकर अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी। यह घटना काकोरी डकैती के नाम से जानी गई जिसमें दुर्घटनावश चली गोली से एक यात्री की मौत हो गई।
इतिहासवेत्ता पी. हरीश के मुताबिक अंग्रेजी हुकूमत ने काकोरी के नायकों को पकड़ने के लिए व्यापक अभियान छेड़ा और अपनों की गद्दारी के चलते सभी लोग पकड़े गए। सिर्फ चंद्रशेखर आजाद ही जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।
क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड को नाम बदलकर अंजाम दिया था। बिस्मिल ने अपने लिए चार अलग-अलग नाम रखे थे जबकि अशफाक उल्ला ने अपना नाम कुमार जी रखा था। इस घटना में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के 45 सदस्यों पर मुकदमा चलाया गया और राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी तथा रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।
इन सभी को फांसी देने के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख मुकर्रर की गई, लेकिन राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही गोंडा जेल में फांसी दे दी गई। बिस्मिल को 19 दिसंबर को गोरखपुर जेल में और अशफाक को इसी दिन फैजाबाद जेल में फांसी दी गई। काकोरी घटना को अंजाम देने वाले सभी क्रांतिकारी उच्च शिक्षित और विद्वान थे। बिस्मिल के पास गजब का भाषा ज्ञान था। वह अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली और उर्दू में दक्ष थे। उनके द्वारा रचित अमर पंक्तियां सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.. आजादी के हर लड़ाके की जुबान पर हुआ करती थीं जो आज भी नौजवानों को देश पर मर मिटने और दुश्मन को मार गिराने की प्रेरणा देती नजर आती हैं।

4 comments:

  1. डा अमर कुमार जी ने बिस्मिल साहब की आत्मकथा उपलब्ध कराई है... आप ने आज इनकी याद दिलाकर बहुत अच्छा कार्य किया, नमन इन सभी शहीदों को...

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  2. अब इन शहीदों को याद करने का समय किसके पास है इनके द्वारा दी गयी आजादी के मजे मार रहे है| शर्म आती है अपने आप पर हम किस देश में है| आपका धन्यवाद जो आपने याद दिलाया| शहीदों को विन्रम श्रद्धांजली !|

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