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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Thursday, December 2, 2010

अपना प्यार मै न्योछावर करूँ



तुझे देखकर जो जीने की जो ललक थी
जल गयी मेरे अरमानो के संग में
समय ने हमें क्या से क्या कर दिया
जिन्दगी रंग गयी विरह के रंग में
हर तरफ हर दिशा में तुम्हारी हसी
छाई थी बादलों की घटा की तरह
सोचता रह गया प्यार बरसे कभी
पर बरसा वही आशुओं की तरह
तुझे भूलकर जीना मुमकिन नहीं
साथ रहना भी मुझको गवारा नहीं
दिल करे भूल जाऊं तुझे दिलरुबा
पर अपने बस में दिल हमारा नहीं
वो बातें,वो यादें,वो अपने इरादे
वो तनहा सी रातें,वे जीवन के वादे
सभी झूठ थे,झूठ थे-झूठ थे
कैसे बोलूं सभी के सभी झूठ थे
पर यही सत्य है-पर यही सत्य है
तो तुझे भूलने की मै कोशिश करूँ
प्यार जननी जन्मभूमि से मिला जो मुझे
उसपर अपना प्यार मै न्योछावर करूँ.
-राहुल पंडित



4 comments:

  1. वाही आशुओं की जगह वही आंसुओं होना चाहिये..
    कविता शानदार है...

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  2. शानदार , बेमिसाल
    ऐसी सोच मिलती ही कहाँ है . यहाँ तो बहुत से शराब का जाम थाम देवदास बन जाते है .

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  3. बेमिसाल ! कविता, आपका आत्मीय धन्यवाद

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  4. भई वाह....क्या बात है। हर पंक्ति दमदार है।

    सुन्दर भावाव्यक्ति.....आभार।

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