मुसलमान भारत से ज्यादा,बोलो कहाँ सुरक्षित हैं?
यदि आतंकी आंधी से अनमना न अपना मन होता
गीतों में राधा होती,गजलों में वृन्दावन होता
क्षत-विक्षत भारत ना होता,अधरों की लाली लिखता
लिखता भोर बनारस का और शाम अवध वाली लिखता
यदि भारत में उग्रवाद का धुआ नहीं छाया होता
तो मेरी कविता में भी,आक्रोश नहीं आया होता
यदि आतंकी शिविर ना सजते सीमा पर शैतानो के
तो उपदेश पढ़ा करते हम गीता और कुरानो को
होती ना हुनकर कंठ में,बस सरगम की ले होती
हर मंदिर हर मस्जिद में भी,भारत माँ की जय होती
पर कुछ मस्जिद और मदरसे,धरम स्वयं का भूल गए
उन्मादी होकर जेहादी आंधी में कूद गए
कुछ मस्जिद अड्डा बन बैठी है हथियार छुपाने की
कुछ के माईक से आवाजें हैं इस्लाम बचने की
ये आवाजें कैसी हैं,वे अब भी पूर्ण अशिक्षित हैं
मुसलमान भारत से ज्यादा,बोलो कहाँ सुरक्षित हैं?
ऐसा नहीं की मुझे लुभाता,जुल्फों का साया ना था
या यौवन सावन ओढ़े मेरे द्वारे आया ना था
मुझको भी प्रेयसी की मीठी बातें अच्छी लगाती थी
रिमझिम-रिमझिम सब्नम की बरसातें अच्छी लगती थी
मुझको भी प्रेयसी पर गीत सुनाने का मन करता था
उसकी झील सी आखों में खो जाने का मन करता था
तब मैंने भी विन्दिया,काजल और कंगन के गीत लिखे
यौवन के मद में मदमाते,आलिंगन के गीत लिखे
पर जिस दिन भारत माता का,क्षत-विक्षत यह वेश दिखा
लिखना बंद किया तब मैंने,खंड-खंड जब देश दिखा
नयन ना लिख पाया कजरारे,तेज दुधारे लिख बैठा
भूल गया श्रृंगार की भाषा,मै अंगारे लिख बैठा
सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबेहद उम्दा ख़्याल हैं ! पंडित जी..यार! आपने क्या बढ़िया तरीके से अपने विचारों को शब्द दिए हैं! भई कमाल है! पढ़कर बहुत अच्छा लगा!
ReplyDeleteमार्मिक कविता
ReplyDeleteॐ
ReplyDeleteआदरणीय राहुल पंडित जी
सादर वंदे मातरम् !
सस्नेहाभिवादन !
बहुत समर्थ ओजस्वी रचनाकार हैं आप ! आपके गीत जन जागृति लाने की सामर्थ्य रखते हैं ।
परिस्थितियां सुधरते सुधरते सुधरेंगी … … …
आप मन के कोमल भावों की अभिव्यक्ति भी समय समय पर अवश्य प्रस्तुत किया करें । राष्ट्र के प्रति आपकी भावनाओं में इससे कमी नहीं आएगी …
अंगार की भाषा भी आवश्यक है , तो शृंगार की भाषा भी !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अच्छी रचना और संदेश भी।
ReplyDeleteकाश लोगों की समझ में आ जाए।