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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, September 18, 2011

अपने देश के गद्दारों को कैसे ना गद्दार लिखू?

चाहत है मेरे मन में भी ,हास लिखू श्रृंगार लिखू
गीत लिखू मै सदा गुलाबी,कभी नहीं मै खार लिखू
पर जब दुश्मन ललकारे तो कैसे ना ललकार लिखू?
अपने देश के गद्दारों को कैसे ना गद्दार लिखू
हमें बाटकर खोद रहे जो जाति धरम की खाई हैं
खुलेआम मै कहता हूँ वो नेता नहीं कसाई हैं
जो आपस में हमको बाटें उनका शीश उतारेंगे
ऐसे नेताओं को हम चुन-चुन कर गोली मारेंगे
मत भारती के दामन पर दाग नहीं लगने देंगे
अपने घर में हम मज़हब की आग नहीं लगने देंगे
हमने तो गुरूद्वारे में भी जाकर शीश झुकाया है
बाईबल और कुरान को भी गीता का मान दिलाया है
हम ख्वाजा जी की मजार पर चादर सदा चढाते हैं
मुस्लिम पिट्ठू वैष्णो देवी के दर्शन करवाते हैं
किन्तु यहाँ एक दृश्य देखकर मेरी छाती फटती है
पाक जीतता है क्रिकेट में यहाँ मिठाई बटती है
उन लोगों से यही निवेदन,वो ये हरकत छोड़ दें
वरना आज और इसी वक़्त वो मेरा भारत छोड़



4 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति

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  2. आपकी भावनाओं को समझा जा सकता है ! बाटला में मारे गए आतंकवादियों को निर्दोष साबित करने के लिए कुछ लोगों ने हाय तौबा मचा रखी है! लेकिन आतंकवादियों के शिकार निर्दोष लोगों के लिए झूटें आंसू भी नहीं बहाते! भगवान इनको सदबुधि दे!

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. बहोत सुंदर रचना... कुछ पंक्तिया सब कुछ बयां कर दे रही है....

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