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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Wednesday, September 7, 2011

दिल्ली बिस्फोट- मरना तो आम आदमी की नियति है


इसमें कोई शक नहीं है की यह एक दुखद घटना है,लेकिन यह इतनी भी दुखद नहीं है की जिसके लिए हम आशूं बहायें.हमें तो आदत हो चुकी है बम बिस्फोटों में मरने की.कभी मुंबई में मरते हैं,कभी दिल्ली में.कभी जयपुर में मरते हैं तो कभी बनारस में.जम्मू कश्मीर का नाम तो मत लेना वहां तो रोज ही मरते हैं.तो फिर मरने जैसी इस छोटी सी घटना के लिए हम आशूं क्यूँ बहाए.हम तो आम आदमी हैं,कल से फिर अपने काम पर लौट जायेंगे.
मै इससे ज्यादा इस विषय पर नहीं लिख सकता.आखिर की बोर्ड का बटन दबाने में भी उर्जा ख़तम होती है,और मै यह भी जान चूका हूँ की मेरे लिखने से कुछ होने वाला नहीं है.आज हम चिल्लायेंगे कल चुप हो जायेंगे,तो चलो आप लोगों में से ही कुछ लोगों का विचार रखता हूँ.


फिर दिया अवसर आतंकियों ने हम भारतीयों को संवेदनाएं प्रकट करने/कराने का...
एक और आतंकी हमले को दिया अंजाम...
दिल्ली हाई कोर्ट के बाहर धमाका...
तो शुरू कीजिये न सिलसिला भर्त्सना का...
सिर्फ दिखावी आक्रोश का..
वाह रे.! सुरक्षा तंत्र.??
जब संसद, हाई कोर्ट सुरक्षित नहीं राजधानी के
तो बाकी का क्या कहें.??
अब बयान बाजी शुरू होगी-
प्रधानमंत्री ...... हम आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा देंगे ...
दिग्गी ...... इस में आर एस एस का हाथ हो सकता है
चिदम्बरम ..... ऐसे छोटे मोटे धमाके होते रहते है..
राहुल बाबा ..... हर धमाके को रोका नही जा सकता...
बम धमाका तो 20 जगह होना था
लेकिन हम ने बस एक जगह ही होने दिया
और इन सब की बीच में मृतक / घायल की कराह फिर से दब कर रह जाएगी !

क्यों हुआ ब्लास्ट.??
1 . सोनिया की एंट्री होने वाली है, वो आते ही हॉस्पिटल जाएगी और सारी हमदर्दी समेट लेगी.
2 . बहुत सारे नेता जेल जाने वाले है उनको रिलीफ देना है.
3 . बहुत सारे नेता जेल से मेडिकल जाँच के बहाने ३-४ महीने से गायब है उससे ध्यान ...भटकाने के लिए.
4 . आपको पता है कि दिल्ली पुलिस कहाँ थी?
अन्ना, बाबा रामदेव, केजरीवाल को नीचा दिखाने में ?
5 . 99% धमाके किसी न किसी नेता के इशारे पर होते है.

शुरेश चिपलूनकर जी कहते हैं -

1) बम ब्रीफ़केस में छिपाया गया था
2) अमोनियम नाइट्रेट का उपयोग हुआ
3) पुलिस को हाई-अलर्ट कर दिया गया है
4) शांति-व्यवस्था बनाएं रखें
5) कोई सुरक्षा चूक नहीं हुई है
6) हम आतंकवाद से कड़ाई से निपटेंगे
7) हमें एकजुट रहकर आतंक का मुकाबला करना है
8) आतंकवादी हमारे जज़्बे को तोड़ नहीं सकते
ब्ला ब्ला ब्ला…
ब्ला ब्ला ब्ला…
ब्ला ब्ला ब्ला…
ब्ला ब्ला ब्ला…
कौन कहता है कि हमारी सरकार और सुरक्षा एजेंसियाँ सजग नहीं हैं?

संजय कौल जी कहते हैं-

क्या हम ने जीलत की मौत मर्रना है जो आज डेल्ही मई हुवा अगर यही है तो हमारा अंत निशित है............अगर नही तो हम को इस का जवाब देनाही पड़गा खून का बदला खून और मौत के बदले मौत ,,,,,,,,,जब तक हम इन को जावब नहीं तब हम जीलत की मौत ही मरगे ....कसम है माँ भरती की इस का जवाब ......आप लोउ के क्या विचार है .....मारा एक बी हिन्दू ( सनातनी धर्मी ) भाई मर्र्ता है मुझे एस्सा मसूस होता है की मर्रा आपने शरीर के टुकड़े हुवे है..........जब तक हम इन को जावब नहीं दे तब तक हमे हात पर हात नहीं रखना चाईए या खून का बदला खून और मौत के बदले मौत.......

राजीव चतुर्वेदी जी कहते हैं-

अब क्या दिग्विजय सिंह कहेंगे कि --" महान गांधीवादी चिन्तक दार्शनिक महामना ओसामा बिन लादिन की ह्त्या के पीछे हिंदूवादी संगठनों का हाथ है ?"
मै पूछता हूँ-
आतंक वाद कि स्थिति फुटबाल के मैदान कि तरह है, जिसमे भारत का कोई ऑब्जेक्ट गोल नहीं है या सही नेतृत्व नहीं है | आतंक वादी भारत के पाले में गेम खेलते है और भारत सिर्फ अपने पाले में कमजोर डिफेंस में गेम खeलता है | आतंकवादी भारत के पाले में /डिफेंस में आकर आसानी से गोले कर जाते है जबकि भारत उनके पाले में जाकर अटेक करने कि सोच सकता ही नहीं |
स्वाभाविक है कि अपने पाले में कमजोर डिफेंस के साथ विरोधी पाकिस्तान / इस्लामी आतकवाद को खेलाओगे तो वो विरोधी टीम आसानी से हमारे देश में गोल / धमाके करेगी | जरुरत है अच्हे नेतृत्व , अच्हे मजबूत डिफेंस और अटेक कि | अटेक पर उनके पाले में खेले |अटेक के लिए अर्जुन, कृष्ण ,रोनाल्डो , सुभाष चन्द्र बॉस , नरेंद्र मोदी जैसे खिलाडी चाहिए
| उन्हें संभलने का मौका ही नहीं मिले कि वो हमारे देश में आकर अटेक कि सोचे | उन्हें हमारे भारत के डिफेंस को तोड़ने का मोका ही मत दो, आतंकी बोल उनके पाले में ही रखो | निति अटेक पर रखो कि वो हमले कि सोचे ही नहीं |
भारत सरकार गद्दार पाकिस्तान से मित्तरता क्यों करती है ?
अपने बयान में राहुल जी और दिग्विजय बार बार इस्लामी / आतंकवादियों का साइड क्यों लेते है ?
कुछ ज्यादा तो नहीं लिख दिया?

3 comments:

  1. राहुल! मैं आपसे सहमत हूँ! थोडा और भी लिख देते तो भी कोई बात नहीं थी!
    आपके दिल की पीड़ा को समझ सकता हूँ क्योंकि आज अधिकांश भारतवासी इसी पीड़ा से गुजर रहे हैं !

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  2. अब तो जागने की जरुरत है

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  3. अगर हो प्यार के मौसम तो हम भी प्यार लिखेगें
    खनकती रेशमी पाजेब की झंकारलिखेगें
    मगर जब खून से खेले मजहबी तकते तब हम
    पिला कर लेखनी को खून हम अंगारलिखेगें

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