Tuesday, March 1, 2011
सरफ़रोशी की तमन्ना अब ना किसी के दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब ना किसी के दिल में है,
दिल ढूँढता किसी फिक्रमंद को मज़मा-ऐ-कातिल में है|
न रगों में है रवानी न लहू में इंक़लाब,
मर गए जो थे भगत सिंह मर गए जो थे सुभाष|
आज का नौजवाँ अश्फाक न बिस्मिल में है|
सरफ़रोशी की तमन्ना अब ना किसी के दिल में है|
छेद ही अब दिख रहे, पानी अब न रुक रहा,
हमको बस दौलत से मतलब डुबे कश्ती या जहां|
मौत अब तो आनी आरजू-ऐ-साहिल में है|
सरफ़रोशी की तमन्ना अब ना किसी के दिल में है|
कौम का कोई नहीं हर शक्स अब है अलहदा
आलम-ऐ-खुदगर्जी देखे तो डर जाए वो ख़ुदा|
आबरू मुल्क की तवायफ़ गिदडो की महफ़िल में है|
सरफ़रोशी की तमन्ना अब ना किसी के दिल में है|
(माफ़ करना मित्रों,लेकिन सच्चाई है )
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जिस तरह से किसीई रोग के कारणों को जाने बिना उसका इलाज नहीं हो सकता ,उसी तरह अपने शत्रुओं की नीतिओं और चालों को समझे बिना उसे परास्त नहीं किया जा सकता .उसी तरह हम जब तक अपनी सेकुलर विचारधारा को नहीं बदलते हम अपने असली शत्रुओं को नहीं पहचान सकते .सेकुलर विचारों के कारण हम केवल आधा सत्य ही जान सकते हैं .हम सब जानते हैं ,कि सिम्मी ,लश्करे तय्यबा ,हूजी ,इंडियन मुजाहिदीन ,अल कायदा जैसे संगठन इस्लाम से प्रेरित हैं .और स्थानीय मुसलमानों का उनको समर्थन है .लेकिन बड़े ताज्जुब की बात है कि हम इस बात को स्वीकार नहीं करते कि आतंकवाद इस्लाम का धार्मिक कार्य है .
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