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Saturday, February 12, 2011

मुसलमानों ने वंदे मातरम का विरोध क्यों किया क्या आप जानते हैं?


वंदे मांतरम व शरियत वर्तमान में वंदेमातरम पर दिये हुए दारूम उलूम के फतवे में दारूम उलूम ने शरियत का उल्लेख करते हुए इसे मुस्लिम विरोधी बताया है। क्या आप यह जानते है कि शरियत के अनुसार एक सच्चे मुसलमान को क्या करना चाहिए क्या नही, तालिबान ने अफगानिस्तान मे गैर मुस्लिमो के साथ जो किया वो पूरी तरह से शरियत के अनुसार था या नही । क्या आप जानते है कि शरियत के अनुसार सारी दुनिया के मुसलमान एक ही उम्मा के अंग है। शरियत के अनुसार मुसलमानो का ध्येय पूरी दुनिया को मुसलमान बनाना है। शरियत के अनुसार मुसलमान की निष्ठा उस देश के प्रति नही है जो उसका है जहा वह रहता है उसकी निष्ठा अपने धार्मिक विश्वास के प्रति है जहां भी इस्लाम का राज्य है वही उसका देश है। शरियत के अनुसार ही अफगानिस्तान में बामीयान में विश्वप्रसिद्ध बौद्ध मूर्तियों को तोड़ा और उसके १५ दिनो के बाद १०० गायों की कुर्बानी यह कहकर दी कि यह देर से मूर्ति ताड़ने का दंण्ड है । शरियत के अनुसार ही मुस्लिम देशो में गैर मुस्लिमों पर जजीया कर लगाया जाता है। शरियत के अनुसार ही सभी गैर मुसलमानो पर इस्लाम स्वीकार करना अनिवार्य है जो सऊदि अरब के मुल्ला द्वारा अपने फतवे मे स्पष्ट रूप से कहा गया है? शरियत के अनुसार ही कोई भी गैर मुस्लिम इस्लामी देश में अपना मन्दिर ,चर्च नही बना सकता जो इस्लामी विद्वान जाकिर नायक द्वारा अपनी बातचीत में स्पष्ट किया गया है । कुरान में कहा गया है कि तुम( मुसलमान) मानव जाति में सर्वश्रेष्ट बनाये गये हो और तुम्हे मानव जाति के पथ प्रर्दशन और उसे सही मार्ग पर चलाने का दायित्व सौपा गया है ।( मुस्लिम राजनितिक चिंन्ता एवं अकाक्षाएं पृष्ट २५) इसी कारण मुसलमानो द्वारा १९४७ में भारत को बंटवारा कराया दिया गया वे नये देश का नाम पाक स्थान रखा अर्थात् वह स्थान पाक है भारत में हिन्दुओं का वर्चस्व था इसलिए यह भूमि पाक नही मानी जा सकती। विषय केवल वंदेमातरम का नहीं क्या हमने मुसलमानो की उस मजबूरी को समझा जिसके कारण वे वंदेमातरम का विरोध करते है। आज सबसे महत्वपूर्ण जानने योग्य है कि हमें यह पता होना चाहिए कि आखिर मुसलमानो की शरियत मे लिखा क्या है तभी इनकी मानसिकता का उपचार किया जा सकता ह I

केवल वंदेमातरम न गाने पर मुसलमानो का विरोध कर हम केवल समस्या की शाखा को काटने का प्रयास कर रहे है वास्तव में समस्या की जड़ कुरान और शरियत है। जिसके विरोध में मुसलमान भी नही जा सकता । लाला राजपत राय खिलाफत और स्वतन्त्रता संग्राम के प्रसिद्ध नेता थे उन्हे भारत में बिट्रिश राज्य से इतनी घृणा थी कि सन् १९२१ में उन्होंने अपने एक भाषण में यह तक कह डाला कि दूसरी कोमो की गुलामी करने से मुसलमानो की गुलामी करना अच्छा रहेगा । उनकी इस टिप्पणी से हिन्दुओं के विद्वानों में खलबली मच गयी जिन्होंने इस्लाम के मूल गर्न्थो और हदीश और कुरान का अध्ययन कर रखा था । इन विद्वानो के आग्रह पर लालाराजपतराय ने छः माह तक सभी दूसरे कार्य को छोड़ कर कुरान हदीस का अध्ययन किया । इस अध्ययन से उनके होश उड़ गये। हिन्दू मुसलिम एकता को अपना मुख्य हथियार बनाकर भारत को स्वतंन्त्र कराने का सपना देखने वाला पंजाब का शेर इस्लामी कट्टरता से विचलित हो गया अपनी इस गहन चिंता को श्री सी०आर० दास को १९२४ मे पत्र लिखकर अबगत कराते हुए उन्होने कहा मैने गत् छः माह मुस्लिम इतिहास और शरियत का अंध्ययन करने में लगाय मैं ईमानदारी से मुस्लिम नेताओं का पूरी तरह विश्वास करने को तैयार हू । परन्तु कुरान और हदीसों के आदेश का क्या होगा। उसका उंल्लघन तो मुस्लिम नेता भी नही कर सकते तो क्या हम नष्ट हो जायेगें। मुसलमानों के धर्म ग्रंथों का अध्ययन कर इस्लामी मानसिकता को समझ कर ही उसका उपाय कर सकते हैं । इसी को सामने का का प्रयास हमारी साइट द्वारा किया गया है । इसका समर्थन व प्रचार कर हम देश को इस्लामी करण से बचा सकते है । अतः साइट का प्रचार कर देश को बचाने में सहयोग दे ।

13 comments:

  1. अगर हिन्दुस्तान में रहना होगा
    वन्देमातरम कहना होगा

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  2. वन्देमातरम धर्मविशेष का गीत नहीं है.यह राष्ट्रीय गीत है.सबको इसका सम्मान करना चाहिए.

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  3. बड़ी विचित्र स्थिति है। समझ नहीं आ रहा कि इसका हल क्या है? वन्देमातरम के विरोध का मुझे कोई औचित्य नज़र नहीं आता । लोग है कि मानने को तैयार ही नहीं। मुद्दा भी काफ़ी संवेदनशील है। इससे बचने का प्रयास समस्या का समाधान नहीं है। आपने अपने लेख में महत्वपूर्ण बिन्दुओ पर प्रकाश डाला है। इसके लिए आपका आभार।

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  4. वन्दे मातरम् बंगला भाषा के प्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचंद्र चटर्जी की उपन्यास 'आनंदमठ' मैं शामिल है। मूल रूप में यह उपन्यास इस्लाम शत्रुता पर आधारित है और उसमें अंग्रेज़ों को अपना सुरक्षक और मसीहा सिद्ध किया गया है। वन्दे मातरम् उपन्यास का एक भाग है। उपन्यास में विभिन्न पाट यह गीत "दुर्गा" के समक्ष गाते हैं जो हिन्दू भाईयों में माँ का स्थान रखती है और इस गीत में भारत को "दुर्गा माँ" सिद्ध किया गया है। यही कारण है कि स्वतंत्रता से पूर्व ही यह विवादस्पद बन गया था, वन्दे मातरम् भी उसी नाविल का एक भाग है औऱ उसमें भारत को दुर्गा के समान सिद्ध किया गया है। इसी लिए जवाहर लाल नेहरु, सुभाषचंद्र बोस और डा0 लोहिया जैसे महान नेताओं ने इस गीत का विरोद्ध किया, और जब भारत के राष्ट्रीय गीत के चयन की बात आई तो एक समूह की कोशिश के बावजूद इस गीत को राष्ट्रीय गीत नहीं बनाया गया बल्कि बंगला कवि रविंद्रनाथ टैगोर के गीत को भारत का राष्ट्रीय गीत बनाया गया जो देश-भक्ति की भावनाओं से परिपूर्ण है, जिसमें देश की प्रशंसा की गई है और किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई गई है।

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  5. यदि एक मुस्लिम वन्दे मातरम् के अनुवाद पर ही चिंतन मनन कर ले तो उसे पता चल जाएगा कि यह इस्लाम की मूल आस्था एकेश्वरवाद ही को गिरा देता है। तो लीजिए वन्दे मातरम् का प्रमाणित उर्दू अनुवाद प्रस्तुत हैः

    तेरी इबादत करता हूं ऐ मेरी अच्छे पानी, अच्छे फल, भीनी भीनी खुश्क जुनूबी हवाओं और शादाब खेतों वाली मेरी माँ /हसीन चाँदनी से रौशन रात वाली, शगुफ़्ता फूलों वाली, गंजान दरख्तों वाली/ मीठी हँसी, मीठी ज़बान वाली, सुख देने वाली, बर्कत देने वाली माँ/ मैं तेरी इबादत करता हूं ऐ मेरी माँ / तीस करोड़ लोगों की पुरजोश आवाज़ें, साठ करोड़ बाज़ुओं में समेटने वाली तलवारें / क्या इतनी ताक़त के बाद भी तू कमज़ोर है ऐ मेरी माँ/ तू ही मेरे बाज़ुओं की क़ुव्वत है, मैं तेरे क़दम चूमता हूं ऐ मेरी माँ/ तू ही मेरा इल्म है, तू ही मेरा धर्म है, तू ही मेरा बातिन है, तू ही मेरा मक़्सद है / तू ही जिस्म की रूह है, तू ही बाज़ुओं की ताक़त है, तू ही दिलों की हक़ीक़त है / तेरी ही महबूब मुर्ति मन्दिर में है/ तू ही दुर्गा, दस मुसल्लह हाथों वाली, तू ही कम्ला है, तू ही कंवल के फूलों की बहार है / तू ही पानी है, तू ही इल्म देने वाली है / मैं तेरा ग़ुलाम हूँ, गुलाम का ग़ुलाम हूँ/ गुलाम के ग़ुलाम का ग़ुलाम हूँ/ अच्छे फलों वाली मेरी माँ, मैं तेरा बन्दा हूं, लहलहाते खेतों वाली मुक़द्दस मोहनी, आरास्ता पैरास्ता बड़ी क़ुदरत वाली क़ाएम व दाएम माँ/ मैं तेरा बन्दा हूँ ऐ मेरी माँ मैं तेरा ग़ुलाम हूँ। ( उर्दू अनुवाद, प्रकाशित: आल इंडिया दीनी,तालीमी कोंसल लखनऊ)

    वन्दे मातरम् वह गीत है जिसे राष्ट्रीय गीत के रूप में पेश किया जा रहा है। गीत के शब्दों से सर्वथा विदित है कि यह एक धार्मिक गीत तो हो सकता है राष्ट्रीय गीत नहीं हो सकता। इसमें मात्र-भूमि को दुर्गा माँ मान कर उसे प्रत्येक उपकारों का स्रोत सिद्ध किया गया है। ज्ञान, शक्ति, ताक़त हर विशेषता उसी के साथ सम्बन्धित की गई है और पढ़ने वाला उसके क़दमों में वंदना के लिए झुका जाता है बल्कि वह प्रत्यक्ष रूप में इस बात को स्वीकार करता है कि मैं तेरी वंदना करता हूँ।

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  6. जिस गीत में यह सब कुछ कहा गया हो मुसलमान उसे कैसे पढ़ सकते हैं। कोई भी मुस्लिम इसे भलीभांति जान लेने के बाद इसका समर्थन नहीं कर सकता। जिन को पता नहीं है अथवा उन्हों ने मात्र सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर लिया है वही इस का समर्थन कर सकते हैं। क्योंकि यह तो एक मुस्लिम की मूल आस्था के विरोद्ध है। मुसलमान उपने देश को प्रिय समझता है परन्तु पुज्यनीय कदापि नहीं समझ सकता।

    इस गीत में देश की मिट्टी के लिए ग्यारह ऐसी विशेषताएं सिद्ध की गई हैं जो इस्लामी दृष्टीकोण से अल्लाह के अतिरिक्त अन्य के लिए सिद्ध नहीं की जा सकतीं। वह विशेषताएं यह हैं (1) सुख देने वाली (2) बर्कत देने वाली (3) तू ही हमारे बाज़ुओं की शक्ति है (4) तू ही मेरा ज्ञान है (5) तू ही मेरा परोक्ष है (6) तू ही मेरा उद्देश्य है (7) तू ही शरीर के अंदर की जान है (8) दिलों के अंदर तेरी ही वास्तविकता है (9) बड़ी शक्ति वाली (10) क़ाएम व दाएम (11) मुक़द्दस

    इस गीत में बार बार वतन की मिट्टी का दास होने को स्वीकार किया गया है जबकि एक मुस्लिम मात्र अल्लाह का दास हो सकता है। इसी लिए मुसलमानों के लिए अब्दुन्नबी (नबी का दास),अब्दुर्रसूल(रसूल का दास) और अब्दुल मसीह(मसीह का दास) नाम रखना सही नहीं है। इस गीत में मन्दिरों की प्रत्येक मुर्तियों को खाके वतन का स्रोत कहा गया है। उसी प्रकार इस गीत में खाके वतन को दुर्गा देवी और कमला देवी समझा गया है। इस गीत में वतन की मिट्टी ही को धर्म कहा गया है। इस गीत में वतन की मिट्टी के सामने वन्दना की जाती है अर्थात् सर झुका कर, हाथ जोड़ कर सलाम किया जाता है। यह सब इस्लामी आस्था के सर्वथा विरोद्ध है। इसलिए मुसलमान को इस के लिए विवश न किया जाए, इसे समझने की कोशिश की जाए।

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  7. वन्देमातरम् को आधार बनाकर मुसलमानों के देश प्रेम पर शक करना बिल्कुल ग़लत है। इतिहास उठा कर देख लो किस प्रकार मुसलमानों ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जाएं गंवाइ हैं। हम भारत की मिट्टी से टूट कर प्रेम करते हैं। बल्कि देश से प्रेम करने की शिक्षा हमें स्वयं इस्लाम देता है। क्योंकि देश से प्रेम स्वाभाविक होता है और इस्लाम प्राकृतिक धर्म है इसी लिए इस्लाम ने इस पर प्रतिबंध नहीं लगाई। तात्पर्य यह कि हम अपने देश को टूट कर चाहते हैं उसके लिए हम अपनी जान भी दे सकते हैं जैसा कि हमारे पूर्जवों ने दिया भी है परन्तु जिस सृष्टा ने हमारी रचना की है, जिसने हम पर ना ना प्राकार का उपकार किया है, जो इस धरती को चला रहा है, जिसके उपकारों से एक सिकंड के लिए भी विमुख नहीं हो सकते, जो यधपि देखाई नहीं देता परन्तु उसके वजूद की निशानियाँ सम्पूर्ण संसार में फैली हुई हैं, जो अकेला है, जिसके पास माता पिता और सन्तान नहीं, जिसको किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती और जिसका कोई भागीदार नहीं। भाइयो! वह ईश्वर ( अल्लाह ) सारे संसार का ईश्वर है, मात्र मुसलमानों का नहीं, उसने हमें इस बात की कदापि अनुमति नहीं दी कि हम उसकी पूजा में किसी अन्य को भागीदार ठहराएं।

    ईश्वर की पूजा में उसका किसी को भागीदार ठहराना मात्र इस्लाम में वर्जित नहीं बल्कि हिन्दू धर्म में भी वर्जित है इसी लिए जब डा0 ज़ाकिर नाइक से एक सभा में पूछा गया कि वन्दे मातरम् मुसलमान क्यों नहीं पढ़ते ? तो आपने उत्तर देते हुए कहा था कि " वन्दे मातरम् मात्र मुसलमानों के धर्म के विरोद्ध नहीं है अपितु यह हिन्दू धर्म के भी विरोद्ध है, हिन्दुओं को भी चाहिए कि वह वन्दे मातरम् न पढ़ें क्योंकि हिन्दू धर्म में भी एकेश्वरवाद की शिक्षा है और धरती पूजा से रोका गया है लेकिन इस गीत में धरती की पूजा करने की शिक्षा दी गई है।" उन्हों ने कहा कि देश अल्लाह तआला से महान नहीं हो सकता, चाहे वह सऊदी अरब हो अथवा पाकिस्तान, किसी भी देश के लोगों को यह अनुमति नहीं दी जा सकती कि वह अपने देश की पूजा करें। इस लिए मुसलमान ऐसा नहीं कर सकता है"। उन्होंने कहा कि मुसलमान देश से प्रेम करता है लेकिन उसकी पूजा नहीं करता।"

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  8. यह बात आपने बिल्कुल सही कहा कि मुसलमान मानव मार्गदर्शक हैं परन्तु वह आज स्वयं इस ज़िम्मवेरी से दूर हो चुके हैं बल्कि अधिकांश मुसलमानों का इस्लाम सम्बन्ध नाम का रह गया है। जिसके कारण उनके जीवन में कोई खूबी नहीं दिख रही है। इस्लाम शान्ति चाहचा है और मुसलमान शान्ति के इच्छुक होते हैं। वह मानव से प्यार करना सिखाता है चाहे वह जिस जाति अथवा वंश से सम्बन्ध रखता हो, इस्लाम मानव को विभिन्न भागों में नहीं बाँटता। बल्कि उसका निमंत्रन भी विश्व बंधुत्व का है। इस्लाम मानव का धर्म है अपितु संसार के सारे मानवों हेतु ईश्वर का उपहार है। यह मात्र मुसलमानों का धर्म नहीं।

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  9. पंडित जी से हमारा अनुरोध है कि निःस्वार्थ हो कर इस्लाम का अध्ययन करें तो आपके समक्ष सत्य दो और दो चार के समान स्पष्ट हो कर आ जाएगा। हमारे देश में शान्ति का वातावरण बनना चाहिए, हम एक दूसरे को प्यार का उपहार पेश करें, शत्रुता और भड़काव से हमारे देश का नुकसान हुआ है और होगा। हमारी आशा है कि आप प्यार के संदेशवाहक बनेंगे। धन्यवाद

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  10. आलम साहब आप खुद इतना सही उर्दू अनुवाद करते हैं और फिर भी इसको बहुदेववाद पर विश्वाश रखने वाला गीत बता रहे हैं.इससे मई इनकार नहीं करता की यह धार्मिक गीत नहीं है,लेकिन यह गीत किसी धर्मविशेष को संबोधित करके नहीं गाया गाया है,चुकी हिंदुस्तान अनादिकाल से ही धार्मिक देश रहा है तो यहाँ देश माता( जिनके लिए यह गीत लिखा गया है)को ही सर्वोपरि मन गया है.दुनिया का कोई भी धर्म बहुइश्वरवाद पर विश्वाश नहीं करता बल्कि कुछ धर्म बहुदेव वाद पर विश्वाश करते हैं.देवता इश्वर नहीं होता बल्कि ईश्वर द्वारा नियुक्त वह व्यक्ति है जो ईश्वर के बताये हुए कामो को करता है.जिस दिन आप ईश्वर और देवता में फर्क समझ जायेंगे, उस दिन से वन्देमातरम का विरोध नहीं करेंगे.
    जहाँ तक बात कुरान की है मै ६ बार कुरान पढ़ चूका हूँ. कुरान में जिस तरह लिखा गया है की अल्लाह की तरह अल्लाह के पैगम्बर भी आदर पाने के योग्य हैं, उसी तरह हम देवताओं को आदर देते हैं न की उनको परमेश्वर की जगह मानते हैं.हमारे वेदों में भी कहा गया है.एको ब्रह्म,द्वितीयोनास्ति.
    हाँ हमारा और आपका सम्मान का तरीका अलग है, आप झुकाने को अल्लाह की बराबरी समझते हैं और यह हमारे मात्र सम्मान करने का तरीका है.
    यही बात वन्देमातरम के साथ भी लागू होती है.
    अगर विरोध करना है तो हमें "जन गण मन " का विरोध करना चाहिए जो की इंग्लॅण्ड के शाषक के सम्मान में लिखा गया गान है.आप लोग इसका विरोध करने के बजाय राष्ट्र के लिए लिखे गए गीत का विरोध करते हैं.

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  11. JARA PAKISTAN JAKAR TO DEKH LO...ROTI BHI NASEEB NAHI HOGI.......

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  12. Safat alam sahab mai koi dharmik upadeshak nahi hui aur na hi kisi dharm vishesh key tarafdar hui. Par jara ye to bataiya ki Allah ya Ishwar kaha virajman nahi hai? Kiya unko chor kar kuch satya hai kiya? Hum jo kuch bhi satya dekhtay hai sab unhi ka to sthul rup hai. Phir cahey wa dharti ho ya akkash. Ajj musalmano mai ek bahut bara bhram hai. Wai samajhtey hai ki Muhammad sahib sirf unkey hai. Wai ye kyouin nahi samajhtey ki mahapurush jab atey hai to wai sampurna manav jati k uddhar k liya atey hai. Kisi ek vishes jati kliye nahi atey hai. Mahapurush atain hain par ek shatabdi bhi gujar nahi pati ki Unakey naam par dhero sampradai pada ho jata hai. Dharam murth hota hai adarsh mai, seva mai, sampradai mai nahi.

    DHARAM MAI SABHI
    BACHTEY HAI BARDHTEY HAI
    SAMPRADAI KO DHARAM
    NAHI KAHATEY HAI.

    Swami Vivekandaji k shabdo main------
    RELIGION IS NOT IN DOCTRINES, IN DOGMAS, NOR IN INTELLECTUAL ARGUMENTATION; IT IS BEING AND BECOMING; IT IS REALISATION.
    .....I ACCEPT ALL RELIGIONS THAT WERE IN THE PAST, AND WORSHIP WITH THEM ALL; I WORSHIP GOD WITH EVERY ONE OF THEM, IN WHATEVER FORM THEY WORSHIP HIM. I SHALL GO TO THE MOSQUE OF THE MOHAMEDAN; I SHALL ENTER THE CHRISTIAN'S CHURCH AND KNEEL BEFORE THE CRUCIFIX; I SHALL ENTER THE BUDDHISTIC TEMPLE, WHERE I SHALL TAKE REFUGE IN BUDDHA AND IN HIS LAW; I SHALL GO INTO THE FOREST AND SIT DOWN IN MEDITATION WITH THE HINDU, WHO IS TRYING TO SEE THE LIGHT WHICH ENLIGHTENS THE HEART OF EVERYONE.

    INDIA: OUR MOTHERLAND

    .....THE DEBT WHICH THE WORLD OWES TO OUR MOTHERLAND IS IMMENSE. TAKING COUNTRY WITH COUNTRY,THERE IS NOT ONE RACE ON THIS EARTH TO WHICH THE WORLD OWES SO MUCH AS TO THE PATIENT HINDU, THE MILD HINDU....

    .........SOME OF THESE OLD TEMPLES OF SOUTHERN INDIA, AND THOSE LIKE SOMNATH OF GUJRAT WILL TEACH YOU VOLUMES OF WISHDOME, WILL GIVE YOU A KEENER INSIGHT INTO THE HISTORY OF THE RACE THAN ANY AMOUNT OF BOOKS. MARK HOW THESE TEMPLES BEAR THE MARKS OF A HUNDERED ATTACKS AND A HUNDRED REGENERATONS, CONTINUELLY DESTROYED AND CONTINUALLY SPRINGING UP OUT OF THE RUINS, REJUVENATED AND STRONG AS EVER!
    THAT IS THE NATIONAL MIND, THAT IS THE NATIONAL LIFE-CURRENT.

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