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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Tuesday, February 1, 2011

कुछ काम राष्ट्रहित में कर लो

जब फूलों के मग पर चल कर
पैरों में छाले उभर पड़ें
जब स्वर्ग उटल में रहकर भी
स्वगात्र तप्त हो उपल पड़े
हे स्वर्ग पुरुष,तब स्वर्ग छोड़
नीले वितान के नीचे आ
फिर मातृभूमि का रंजन बन
सच्चे सुख का आनंद उठा


जब जीवन अरण्य में भटक-भटक
हो तप्त कहीं गिर जाओ तुम
जब विधुलेखा की चाह लिए
अमावस में ही खो जाओ तुम
तब हे राही अनुताप छोड़
भारत माँ के शरणों में आ
फिर मातृभूमि हित कुछ करके
नरदेही अटल तोष को पा


जब वातायन से झाक-झाक
चक्षु पीतकमल से हो जाएँ
जब अम्भोजनेत्रा के
दर्शन फिर भी ना हो पायें
फिर क्लांत पीत नयनो से तुम
भारत माता का चरण देख
कर जीवन अपना धन्यभाग
निर्जन सुरती को यहाँ फेक


जब झूठे अभिनन्दन गा गा कर
धनमय सारा घर हो जाये
जब स्वर्ग कुटीर में रहकर भी
दुःख की अनुभूति ना जाये
कुछ गीत देशहित में गाकर
सच्चे सुख की अनुभूति लो
कुछ कलम राष्ट्रहित में घिस कर
अपनी लेखनी कृतार्थ करो

-राहुल पंडित

(उटल-कुटिया,स्वगात्र-अपना शरीर,वितान-आकाश,रंजन- प्रेमी,तप्त-दुखी,विदुलेखा-चांदनी,अनुताप-दुःख,नरदेही-मनुष्य, तोष-संतुष्टि,वातायन-झरोखा,अम्भोज्नेत्रा-कमल जैसे नयन वाली स्त्री,क्लांत-थके हुए,सुरती-यादें)


6 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर, और सार्थक भावों से युक्त देशप्रेम पर लिखी ये कविता सहेजने लायक़ है। कभी पहले लगता था कि मैं बहुत बड़ा देशभक्त हूँ। लेकिन अब लगता है कि देशभक्ति तो अभी मुझे आपसे सीखनी पड़ेगी।

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  2. अति सुन्दर रचना,राष्भक्ति से ओतप्रोत

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति.वन्देमातरम

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  4. प्रभावी ...सार्थक अभिव्यक्ति ....

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