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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Friday, September 17, 2010

क़ब तक?



कितना रक्त बहाना होगा,अपनी ही इस धरती पर
कितने मंदिर फिर टूटेंगे,अपने इस भारत भू पर
उदासीन बनकर क़ब तक हम,खुद का शोषण देखेंगे
क़ब तक गजनी-बाबर मिलकर भारत माँ को लूटेंगे
क़ब तक जयचंदों के सह पर,गौरी भारत आएगा
रौंद हमारी मातृभूमि को,नंगा नाच दिखायेगा
बहु बेटियां क़ब तक अपनी,अग्नि कुंड में जाएँगी
अपना मान बचने हेतु,क़ब तक अश्रु बहायेंगी
क़ब तक काशी और अयोध्या,हम सब को धिक्कारेंगे
क़ब तक मथुरा की छाती पर,गजनी खंजर मारेंगे
कितनी नालान्दाओं में निशिचर,वेद पुराण जलाएंगे
कितना देखेंगे हम तांडव,क़ब तक शीश कटायेंगे.


जागो




हे हिन्दू राष्ट्र के अनुयायी!जागो रणभूमि में आओ
गाँधी के खादी को फेको,बन्दूक उठाओ बढ़ जाओ
पहले धुड़ो जयचंदो को,जो अपने बीच छिपे बैठे
सर्व धर्म समभाव कहे,पर हिन्दू धर्म से द्वेष करें
फिर धुड़ो उन मैकालों को,जो हज पर सब्सिडी देते हैं
पर अमरनाथ की यात्रा पर,हिन्दू से जजिया लेते हैं
फिर भेजो पाकिस्तान उन्हें,जो भारत भू का खाते हैं
जो पैसा यहाँ कमाते हैं,पर गुण मुल्तान के गाते हैं
फिर आओ चले अयोध्या में,मंदिर का पुनरोद्धार करें
मथुरा-काशी के अंचल में भी,आदि धर्म का रंग भरें
कर धरती साडी असुरहीन,भगवा झंडा को फहराएँ
जय-जय श्रीराम का नारा दे,फिर हिन्दुकुश तक बढ़ जाएँ
फिर कोई गजनी की औलाद यहाँ,इतिहास नहीं दोहराएगा
कोई जयचंद दुबारा से न,माँ की लाज लुटायेगा..

-राहुल पंडित

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