
असफलताओं को छिपाता हुआ
बढ़ता रहा इस आस में
कभी तो करूँगा आलिंगन
सफलता का जी भरके
वीरानियो को चीरते हुए
दौड़ता रहा हर मार्ग पर
कहीं तो कड़ी होगी मंजिल
पुष्प लेकर स्वागत में
सन्नाटे की शोर को
तोड़ता रहा चिल्ला-चिल्ला कर
कभी तो कोई सुनेगा
और कहेगा तुम्हारी मंजिल यहाँ है
गीता पढ़ा-कुरान पढ़ा
हर लोगों का आख्यान सुना
कोई तो बताएगा
आखिर ईश्वर कौन है
संस्कारों को पस्चिमियत में बहाया
जिन्दगी को फिल्मो में बहाया
इंतजार करता रहा उन पलकों का
जो देखकर कहें-"तुम बहुत अच्छे हो."
दान दिया,जकात किया
परमार्थ पर जिन्दगी वार दिया
कान खोलकर घूमता रहा
कोई तो कहेगा-"यशस्वी भवः."
पर कुछ नहीं मिला इस जिन्दगी से
सिवाय गम के
पर पता नहीं क्यूँ ऐसा लगता है
"हर कुत्ते का दिन आता है."
-राहुल पंडित
ओह, इतनी मायूसी ठीक नहीं.....मन के द्वंद्व को बखूबी लिखा है ..
ReplyDeleteअसफलताओं को छिपता हुआ
इस पंक्ति में छिपता की जगह छिपाता आना चाहिए था शायद