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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Wednesday, February 17, 2010

ललकार गीत


हम डरते नहीं अणु बमों से,बिस्फोटक जलपोतों से.
हम डरते हैं तो ताशकंद-शिमला जैसे समझौतों से.
सियार भेडिए से डर सकते,सिंग्हो की औलाद नहीं,
भारतवंश की इस मिटटी की तुमको है पहचान नहीं.
एटमबम बना कर के तुम,किस्मत पर फूल गए.
पैसठ,इकहत्तर-निन्यानवे के युद्धों को शायद भूल गए.
तुम याद करो अब्दुल हमीद ने पैटर्न टंक जला डाला.
हिन्दुस्तानी नेटो ने अमेरिकी जेट जला डाला.
तुम याद करो ग़ाज़ी का बेडा झटके में डूबा दिया,
ढाका के जनरल मियादी को,दूध छठी का पिला दिया.
तुम याद करो नब्बे हज़ार उन बंदी पाक जवानों को,
तुम याद करो शिमला समझोता,इंदिरा के अहसानों को.
पाकिस्तान ये बात कान खोलकर सुन ले-
अबकी जंग छिड़ी तो नामोनिशान नहीं होगा.
कश्मीर तो होगा,लेकिन पूरा पाकिस्तान नहीं होगा.
लाल कर दिया लहू से तुमने,श्रीनगर की घाटी को.
किस गलफ़त में छेड़ रहे तुम सोयी हल्दीघाटी को.
झूटे बातें बतलाकर तुम कश्मीरी परवानो को.
भय और लालच देकर तुम भेज रहे नादानों को.
अबकी जंग छिड़ी तो चेहरे का खोल बदल देंगे.
इतिहास की क्या हस्ती है पूरा भूगोल बदल देंगे.
धारा हर मोड़ बदल कर लाहौर से गुजरेगी गंगा,
इस्लामाबाद की छाती पर लहराएगा भारत का झंडा.
रावलपिंडी से कराच तक,सब कुछ गारत हो जायेगा.
सिन्धु नदी के आर पार पूरा भारत हो जायेगा.
सदिओं-सदिओं तक फिर जिन्ना जैसा शैतान नहीं होगा.
कश्मीर तो होगा लेकिन पूरा पाकिस्तान नहीं होगा.

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