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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Monday, November 3, 2014

कुत्तों की दावत में बब्बर शेर नही जाया करते


एक संपोला फिर से बोला बोल बगावत वाले जी,
जिसकी आँखों में कांटे हैं मंदिर और शिवाले जी,

मस्जिद की मीनारों से जो ज़हर उगलता रहता है,
जिसकी रग में सदा प्रदूषित रक्त विदेशी बहता है,

जिसकी टोपी के धागों में मंसूबे जेहादी हैं, 
जिसकी दाढ़ी में लटके कुछ मजहब के उन्मादी हैं,

जिसकी आँखों में सुरमा हैं नफरत के अंगारों का,
जिसके मूहँ में पान दबा है पाकिस्तानी नारों का,

है इमाम लेकिन हराम की रोटी का व्यापारी है,
भारत माँ पर बोझ बना है, उसका नाम बुखारी है,

अपनी गद्दी अपने बेटे को बैठाने निकला है,
और सुना है बहुत बड़ा जलसा करवाने निकला है,

जलसे में दुश्मन धरती के हाकिम को बुलवाया है,
और हमारे मोदी जी को सरे आम बिसराया है,

सोच रहा है उसने खुलकर मोदी का उपहास किया,
लेकिन मूरख भूल गया है किंचित ना आभास किया,

मोदी मोदी है,सूरज को आँख दिखाने वाला है,
सरे आम इस्लाम की टोपी को ठुकराने वाला है,

तेरी क्या औकात बुखारी,मोदी को ठुकराने की,
नहीं ज़रुरत उसको है गद्दारों के नजराने की,

संविधान की मजबूरी है,दोनों हाथ मुरब्बा है,
लेकिन इतना याद रहे कि मोदी सबका अब्बा है,

अरे बुखारी जा तेरे बेटे का घर आबाद रहे,
खूब उडाना बकरे मुर्गे,लेकिन इतना याद रहे,

गौ मांस जो खांए,उनके संग नही खाया करते,
कुत्तों की दावत में बब्बर शेर नही जाया करते,

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