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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Saturday, November 5, 2011

माँ का मस्तक ऊँचा होता बेटो के बलिदानो से


भारत माँ के गालोँ पर जो ऊग्रवाद के चाँटे है
फिर भी कायर बन के वोटो के तलुवे चाटे है !

एटम बम वाली दिल्ली लाचार दिखाई देती है
सँसद भेड,बकरियो की बाजार दिखाई देती है !

भगतसिँह की फाँसी पर जो दो भी बोल नही बोले
अफजल की फाँसी पर जिनके दिल खाते है हिचकोले !

गहरे दफनाना होगा अब ऊग्रवाद के खेमो को
फाँसी के फँदो तक भेजो,जल्दी "अबूसलेमो" को !

यदि अफजल को क्षमा दान का पुरस्कार दिलवाओगे
"पृथ्वीराज"की भूले फिर से दिल्ली मेँ दोहराओगे !

अमर तिरँगे के रँगो को दुनिया मेँ फहराने दो
भारत माँ का आँचल धरती,अँबर तक लहराने दो !

आजादी का दीप जलाना पडता अपने प्राणो से
माँ का मस्तक ऊँचा होता बेटो के बलिदानो से !!

6 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति

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  2. बेहतरीन कविता राहुल जी..

    साधुवाद

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  3. गद्दारों का कुछ तो करना पड़ेगा

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  4. उत्कृष्ट प्रस्तुति , आभार.



    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .

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  5. आपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  6. बेहद सुन्दर शब्द, आँख खोलने वाली जानकारी

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