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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Tuesday, May 10, 2011

पहले यह देश महान हुआ करता था

पहले यह देश महान हुआ करता था
संसार में इसका नाम हुआ करता था
पर अब तो सब उल्टा-पुल्टा होता है
जनता भूखो मरती है,नेता सोता है
सड़ता है अनाज सभी भण्डारो में
पर भनक नहीं है सत्ता के गलियारों में
पहले श्री रामचंद्र आदर्श हुआ करते थे
रावन दुबके-छुपके घुमा करते थे
पर आज हालात बहुत बदतर हैं
राम नहीं हैं,रावन ही दर-दर हैं
सीता दुबकी हैं जंगल,झाड कछारों में
सूर्पनखा का राज सभी गलियारों में
जनता उलझी आश्वाशन के जंजालों में
नेता उलझे हैं खरबों के घोटालों में
राजा-कलमाड़ी जैसों की चांदी है
रामदेव जैसों की बर्बादी है
माया की माया में उलझी जनता है
जनता भूखी,हर तरफ पार्क बनता है
कहता राहुल-हे प्रभु,बचाओ हम सब को
बीते व्यतीत में पंहुचा दो फिर भारत को.
-राहुल पंडित

3 comments:

  1. Well ...the poem is a mirror of truth.
    Congrats on writing such a meaningful poem.

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  2. देश तो अब भी महान है, क्या करे सौ में से निन्यानवे बेईमान है,

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