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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Thursday, November 11, 2010

हम तो तलवार उठा बैठे






देख करुण दशा भारत माँ की
हम तो संसार भुला बैठे
खुद शांति का उपदेश दिया
खुद ही तलवार उठा बैठे
गाँधी का सच्चा पूजक था
सबको बस प्रेम सिखाता था
"अहिंसा परमोधर्मः"की
बाते सबको बतलाता था
भारत माता का रुदन सुना
तो जीवन क्रम ही मोड़ दिया
गाँधी की साख बचने को
गाँधी को ही मै छोड़ दिया
जो राम राज्य का सपना था
वो अब कैसे पूरा होगा
जब रावन खुले विचरते हैं
तो कहाँ धरम-करम होगा
सोच अतीत की बातों को
फिर निद्रा से हम उठ बैठे
सपना फूलों के मग का था
पर अंगारों पर चल बैठे
जब पंहुचा घाटी में चल कर
आखों से आशू छलक उठा
जब केशर में बारूद मिला
बंदूकों पर तब आलोक मढ़ा
फिर नमन किया सत्तावन के
उन अगणित वीर जवानो को
फिर नमन किया आजाद-भगत
बिस्मिल जैसे बलवानो को
फिर गाँधी की तस्वीर को
बक्से के अन्दर बंद किया
जिससे वह सदा सुरक्षित हो
फिर ऐसा एक अनुबंध किया
जय -जय कह भारत माता की
इस कुरुक्षेत्र में आया हूँ
कुछ अपनों के संग भी लड़ना है
सो गीता भी मै लाया हूँ...


-राहुल पंडित

5 comments:

  1. कुछ अपनों के संग भी लड़ना है
    सो गीता भी मै लाया हूँ.
    Bhaut khoob...

    Mujhe to bahut achhi lagi.

    Abhar.

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  2. यह कैसा मजबूरी का आलम है .

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  3. प्रेरणादायक कविता के लिए, तहेदिल से आभार.

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