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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, August 1, 2010

आज फिर वो चाँद आया


आज फिर वो चाँद आया
आज फिर वो चाँद आया
पीत सी काया लिए है
निशा में आभा बिखेरा
चल पड़ा निज मार्ग में वह
डालता अम्बर में डेरा
सरहदों को तोड़ता वह
बन्धनों को तोड़ता वह
शांति का श्लोक पढता
प्रेम का पैगाम लाया
आज फिर वो चाँद आया
आज फिर वो चाँद आया
शीत की रजनी में सहता
ठण्ड की सी ठण्ड कप-कप
ग्रीष्म की उस निशा में भी
मार्ग में बढ़ता है अविचल
मधुर सा सपना संजोये
सुबह को वह लक्ष्य पाया
आज फिर वो चाँद आया
आज फिर वो चाँद आया
तोड़ धर्मो की सीमाएं
तोड़ मुल्कों की सीमाएं
सामने दुनिया के फिर वह
शांति का पैगाम लाया
आज फिर वो चाँद आया
आज फिर वो चाँद आया
-राहुल पंडित

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