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Friday, June 14, 2013

हैदराबाद का भारत में विलय और एम्आईएम्, नेहरु व सरदार पटेल :इतिहास के कुछ अनजान पहलू

क्या आप को सरदार पटेल , हैदराबाद निजाम औरएम्आईएम् का किस्सा पता है ?
जिसकी खबर सुन के नेहरु ने फ़ोन तोड़ दिया था | तथ्य जो कभी बताये नहीं गए -

1- हैदराबाद विलय के वक्त नेहरु भारत में नहीं थे |
2- हैदराबाद के निजाम और नेहरु ने समझौता किया था अगर उस समझौते पे ही रहा जाता तो आज देश के बीच में एक दूसरा पकिस्तान होता |
3 - मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एम्आईएम्) के पास उस वक़्त २००००० रजाकार थे जो निजाम के लिए काम करते थे और हैदराबाद का विलय पकिस्तान में करवाना चाहते थे या स्वतंत्र रहना |

बात तब की है जब १९४७ में भारत आजाद हो गया उसके बाद हैदराबाद की जनता भी भारत में विलय चाहती थी | पर उनके आन्दोलन को निजाम ने अपनी निजी सेना रजाकार के द्वारा दबाना शुरू कर दिया |

रजाकार एक निजी सेना (मिलिशिया) थी जो निजाम ओसमान अली खान के शासन को बनाए रखने तथा हैदराबाद को नव स्वतंत्र भारत में विलय का विरोध करने के लिए बनाई थी। यह सेना कासिम रिजवी द्वारा निर्मित की गई थी। रजाकारों ने यह भी कोशिश की कि निजाम अपनी रियासत को भारत के बजाय पाकिस्तान में मिला दे।

रजाकारों का सम्बन्ध 'मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एम्आईएम्) नामक राजनितिक दल से था।
नोट -ओवैसी भाई इसी MIM की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं और कांग्रेस की मुस्लिम परस्ती और देश विरोधी नीतियों की वजह से और पकिस्तान परस्त मुल्लो की वजह से ये आज तक हिन्दुस्तान में काम कर रही है |

चारो ओर भारतीय क्षेत्र से घिरे हैदराबाद राज्य की जनसंख्या लगभग 1करोड60लाख थी जिसमें से 85%हिंदु आबादी थी।
29नवंबर1947 को निजाम-नेहरू में एक वर्षीय समझौता हुआ कि हैदराबाद की यथा स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के पहले थी।
नोट - यहाँ आप देखते हैं की नेहरु कितने मुस्लिम परस्त थे की वो देश द्रोही से समझौता कर लेते हैं |
पर निजाम नें समझौते का उलंघन करते हुए राज्य में एक रजाकारी आतंकवादी संगठन को जुल्म और दमन के आदेश दे दिए और पाकिस्तान को 2 करोड़ रूपये का कर्ज भी दे दिया.

राज्य में हिंदु औरतों पर बलात्कार होने लगे उनकी आंखें नोच कर निकाली जाने लगी और नक्सली तैय्यार किए जाने लगे.

सरदार पटेल निजाम के साथ लंबी लंबी झुठी चर्चाओं से उकता चुके थे अतः उन्होने नेहरू के सामने सीधा विकल्प रखे कि युद्ध के अलावा दुरा कोई चारा नही है। पर नेहरु इस पे चुप रहे |

कुछ समय बीता और नेहरु देश से बाहर गए सरदार पटेल गृह मंत्री तथा उप प्रधान मंत्री भी थे इसलिए उस उस वक़्त सरदार पटेल सेना के जनरलों को तैयार रहने का आदेश देते हुए विलय के कागजों के साथ हैदराबाद के निजाम के पास पहुचे और विलय पे हस्ताक्षर करने को कहा |

निजाम ने मना किया और नेहरु से हुए समझौते का जिक्र किया उन्होंने कहा की नेहरु देश में नहीं है तो वो ही प्रधान हैं |

उसी वक्त नेहरु भी वापस आ रहे थे अगर वो वापस भारत की जमीन पे पहोच जाते तो विलय न हो पाता इस को ध्यान में रखते हुए पटेल ने नेहरु के विमान को उतरने न देने का हुक्म दिया तब तक भारतीय वायु सेना के विमान निजाम के महल पे मंडरा रहे थे | बस आदेश की देरी को देखते हुए निजाम ने उसी वक़्त विलय पे हस्ताक्षर कर दिए | और रातो रात हैदराबाद का भारत में विलय हो गया |

उसके बाद नेहरु के विमान को उतरने दिया गया लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने नेहरु को फ़ोन किया और बस इतना ही कहा " हैदराबाद का भारत में विलय " ये सूनते ही नेहरु ने वो फ़ोन वही एअरपोर्ट पे पटक दिया "

उसके बाद रजाकारो (एम्आईएम्) ने सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया जो 13 सितम्बर 1948 से 17 सितम्बर 1948 तक चला |

भारत के तत्कालीन गृहमंत्री एवं 'लौह पुरूष' सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पुलिस कार्रवाई करने हेतु लिए गए साहसिक निर्णय ने निजाम को 17 सितम्बर, 1948 को आत्म-समर्पण करने और भारत संघ में सम्मिलित होने पर मजबूर कर दिया।

इस कार्यवाई को 'आपरेशन पोलो' नाम दिया गया था। इसलिए शेष भारत को अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद हैदराबाद की जनता को अपनी आजादी के लिए 13 महीने और 2 दिन संघर्ष करना पड़ा था।

यदि निजाम को उसके षड़यंत्र में सफल होने दिया जाता तो भारत का नक्शा वह नहीं होता जो आज है।

वो फ़ोन आज भी संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है |

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