स्वागतम ! सोशल नेटवर्किंग का प्रयोग राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए करें.

Free HTML Codes

अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, December 4, 2011

फूल नहीं धधकता अंगार हूँ मैं




फूल नहीं धधकता अंगार हूँ मैं।
थके स्वाभिमान को झकझोरती ललकार हूँ मैं।
सो‍ई भारत की वर्षों से अन्तरात्मा
नवजागरण की पुकार हूँ मैं।
ग़ुलामी बस चु्की है ख़ून में
पर क्रांति की टंकार हूँ मैं।
सर अब हमारा कभी न झुकेगा
विजयमाला का शृंगार हूँ मैं।
भस्म होगी सब दासता मानस की
सच्चे स्वाधीनता की चिंगार हूँ मैं।
बुझेगा न ये दीपक चाहे कितना ज़ोर लगा लो
हर आँधी तूफ़ान की बेबस हार हूँ मैं।
अग्निमय हूँ अग्निरूप हूँ अग्नि का उपासक हूँ
अग्नि मेरी आत्मा सत्याग्नि का ही विस्तार हूँ मैं।

साभार
www.agniveer.com

3 comments:

  1. बहुत खूब,सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  2. गद्दारों के अन्दर भय पैदा कर देने वाली रचना ।

    ReplyDelete
  3. राहुल भाई
    ये अग्निवीर साईट की रचना हैं कृपया लिंक दे दिया करे नीचे |
    कॉपी राइट नियम के ली तो आप खुद ही जागरूक हैं

    ReplyDelete