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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Saturday, July 2, 2011

एक आह्वान

हे नौजवान आंखे खोलो,भारत माँ तुम्हे पुकार रही.
अपनी मर्यादा रखने को,गंगा-सतलुज ललकार रही.
हर तरफ यहाँ है अनाचार,पापी राजा बन बैठे हैं.
मेहनतकश भूखो मरते हैं,इनके बस जाम छलकते हैं.
राजा,कलमाड़ी-कनिमुडी,अरबों खरबों खा जाते हैं.
पर बारह सौ के वेतन पर,हम सुखी लोग कहलाते हैं.
कहने को हम हैं सवा अरब,पर यही बात चुभ जाती है.
इतने लोगों के रहते भी,एक विदेशन राज चलती है.
अब लालबहादुर कहीं नहीं,हर जगह यहाँ मनमोहन हैं.
निर्विकार से बैठे हैं,इनपर किसका सम्मोहन है?
भ्रष्टाचार ख़तम कर दो,कह जनता जब चिल्लाती है.
आधी रात में जनता पर,सरकार गोली चलवाती है.
रामदेव-अन्ना जैसे को,देशद्रोही ये कहते हैं.
जनता भले चीत्कार करे,ये घर में दुबके रहते हैं.
हम यहाँ चंद रुपये के खातिर,दिन भर मेहनत करते हैं.
पर भ्रष्टाचारी बैठ यहाँ,अपनी तिजोरी भरते हैं.
जब तक दिग्गी जैसे कुत्ते,भोऊ-भोऊ करके चिल्लायेंगे.
तब तक सिब्बल जैसे नेता,जनता की वाट लगायेंगे.
हे मेहनतकश,अब तो समझो,बस यही हमारे शोषक हैं.
ये संघ शक्ति से डरते हैं,ये सिम्मी के परिपोषक हैं.
हे नौजवान बन भगत सिंह,फिर से रणभूमि में आओ.
भारत को पुनः आजाद करो,इस समरभूमि में बढ़ जाओ.

-राहुल पंडित

5 comments:

  1. आज की परिस्थितिओं पर सुन्दर रचना...बधाई..

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  2. जब तक दिग्गी जैसे कुत्ते,भोऊ-भोऊ करके चिल्लायेंगे.
    तब तक सिब्बल जैसे नेता,जनता की वाट लगायेंगे
    सुन्दर

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  3. सुन्दर कविता...हिम्मत की दाद देते हैं

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  4. सुन्दर कविता के लिए धन्यवाद पंडित जी

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  5. प्रशंसनीय प्रस्तुति...बधाई

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