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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, May 23, 2010

मै भारतीय हूँ


कल रात को मुझे मेरे एक मित्र का सन्देश मिला.पढने के बाद मै पूरी रात सो नहीं पाया.ऐसा नहीं है की मुझे मोबाइल पर सन्देश नहीं मिलते,लेकिन उनका वह सन्देश मुझे हिला कर रख दिया.सन्देश कुछ इस तरह से था-
एक अमेरिकी इंडिया घुमने के लिए आता है और जब वापस अमेरिका पहुचता है तो उसका एक भारतीय मूल का मित्र उससे पूछता है-कैसा भारत का दर्शन-
वो बोलता है-"वास्तव में भारत एक अद्वितीय जगह है.मैंने ताजमहल देखा,डेल्ही मुंबई से लेकर भारत की हर वो छोटी बड़ी जगह देखी जो प्रसिद्द है.वास्तव में भारत केवल एक ही है, कोई दूसरा नहीं."
अपने देश की तारीफ सुनकर वह बहुत खुश हुआ.
पूछा
और हमारे भारतीय कैसे हैं-
अमेरकी बड़े ध्यान से देखने लगा.फिर बोला...वहा तो मै कोई भारतीय देखा ही नहीं.
भारतीय पुरुष उसका मुह देखने लगा-
अमेरिकी बोलता रहा-
"मुने एअरपोर्ट पर उतरा तो सबसे पहले मेरी भेट मराठिओं से हुई,आगे बाधा तो पंजाबी,हरियाणवी,गुजरती,बिहारी,तमिल और असामी जैसे बहुत से लोग मिले..कहीं हिन्दू मिले तो कहीं सिक्ख,मुस्लिम और इसाई मिले...छोटी जगहों पर गया तो-बनारसी,जौनपुरी सुल्तानपुरी,बरेलवी मिले.नेताओं से मिला तो कांग्रेसी,बीजेपी,bsp वाले मिले,गाँव में गया तो ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शुद्र मिले.भारतीय तो कहीं मिले ही नहीं.
(सोचो,यह आपके लिए है)
सन्देश की आखिरी पक्ति ने मुझे हिलाकर रख दिया.आखिर ये लोग मुझे कट्टर हिन्दू क्यूँ समझते हैं.
मेरे प्यारे मित्र मई आपको बता देना चाहता हूँ की "मुझे हिन्दू होने का गर्व है" लेकिन मै भारतीय नहीं हूँ,आपकी इस बात को मानने से मै इंकार करता हूँ.
आप क्या जानते हो मेरे बारे.मै हिन्दू इस लिए नहीं हूँ की मैंने एक हिन्दू परिवार में जन्म लिया है बल्कि मैंने बहुत सोचने के बाद हिन्दू हूँ.मैंने तो एक ब्रह्मिन परिवार में जन्म लिया है लेकिन मै एक पंडित नहीं हूँ.
मै अपनी जिन्दगी में सबसे अधिक प्रभावित जैनिस्म और बौद्धिस्म से रहा हूँ.
लेकिन कुछ ठोस कारणों की वजह से मै हिन्दू हूँ.
लोग कहते हैं की मै धर्मनिरपेक्ष नहीं हूँ,तो सुनो-
-अगर हिन्दुओं के खिलाफ बोलना धर्मनिरपेक्षता है तो मै धर्मनिरपेक्ष नहीं हूँ.
-अगर मुस्लिम तुस्टीकरण धर्मनिरपेक्षता है तो मै धर्मनिरपेक्ष नहीं हूँ.
-अगर मूर्तिपूजक धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं तो मै धर्मनिरपेक्ष नहीं हूँ.
-अगर मै हिन्दुओं का हित करके धर्मनिरपेक्ष नहीं बन सकता तो मै धर्मनिरपेक्ष नहीं बनना चाहता.
-अगर मै अपनी लाखों साल पुरानी हिन्दू सभ्यता को भूलकर ही धर्मनिरपेक्षता की श्रेणी में आ पाउँगा तो मै कभी नहीं आ सकता.
धर्मनिरपेक्षता के धिधोरे पीटने से कोई धर्म निरपेक्ष नहीं होता.मै हिन्दू हूँ तो खुश हूँ,लेकिन अगर दूसरा मुस्लिम,इसी या कोई और है तो मुझे इसका दुःख नहीं है.
आपको पता होना चाहिए की मै आज भी एक मुसलमान (मसूद आलम)के साथ रहता हूँ और मेरा सबसे अच्छा दोस्त(अब्दुल हलीम)भी मुसलमान है.
आज भी मेरे शयन्कच्छा में कुरान की आयते और भगवन बुद्ध की तस्वीरें लगी हैं.;.
इन सब चीजों से पहले
मै एक हिन्दुस्तानी हूँ
एक भारतीय हूँ.
लेकिन मै इसका किसी को प्रमाण देना जरुरी नहीं समझता....

3 comments:

  1. बहुत अच्छी लेखनी है आपकी... बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट को पढकर.

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  2. एक अच्छा इंसान किसी भी धर्म को मान्यता देता हो, अच्छा ही होता है. सबसे आवश्यक और उपर है अच्छा इन्सान होना.

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