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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, March 21, 2010

अतीत


सीसे के मानिंद टूटते हुए
अतीत को देखा मैंने अपने सामने ही
पहले घर से समुदाय,समुदाय से गावं बनते थे
पर अब तो राज्य से राज्य
देश से देश
घर से घर बनते हैं
कहाँ गया वो अतीत?
शायद वह भी अतीत ही बन गया
बिना गुजरे हुए मेरे सामने से
संयुक्त परिवार कल्पना बन गया
रह गईं बस टूटी फूटी यादें
जो अस्तित्व ख़तम होते देख कराह रही हैं
-राहुल पंडित

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