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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Tuesday, June 15, 2010

संकल्प


मै अपना जीवन आज समर्पित करता हूँ
अपने इस मातृभूमि के कोमल चरणों पर
बदहाली को खुशहाली में अब बदलूँगा.
अपने जीवन को इसपर मै न्योछावर कर
नेताओं पर से जनता का विश्वाश उठा
सबको अब आज़ादी की पाठ पढ़ाऊंगा
जिससे भारत में फिर से खुशियाँ आ जाएँ
हिंदुत्व संग्राम को वही दिशा दिखलाऊंगा
मै आज.इसी क्षण ,अभी प्रतिज्ञा करता हूँ
'गुरूजी' के सुन्दर सपनो को सजाऊंगा
जिससे भारत में पुनः रामराज्य आये
सबलोगों को अब वही राह दिखलाऊंगा
गंगा यमुना के इस पवन धरती पर
समता-एकता की सुन्दर फसलें बोऊंगा
जब तक भारत अतीत में नहीं पहुच जाये
आजीवन तब तक कभी न सोऊंगा
आओ मेरे हिंदुत्व के प्यारे रखवालों
साथ-साथ मिल एक फौज बनाये हम
अपने इस मातृभूमि को जान समर्पित कर
भूल जाएँ जीवन का अपने सारा दुःख गम
तुम अगर आज भी शांत-शांत ही बैठोगे
माता की अंचल खूनो से भीग जाएगी
फिर चाहे जितना भी मेहनत करके थक जाओ
अपने भारत में पुनः गुलामी आयेगी
तुम इसी वक़्त अब क्रांति का उद्घोष करो
सत्ता को छीनो मुठ्ठी भर इन लोगों से
जो हमारे सर पर चढ़ कर सत्ता पते हैं
इन भारत भू को लुटने वाले चोरों से
सब एक ही पेड़ की अलग-अलग शाखाएं हैं
इनपर भूल कर विश्वाश न करना तुम
हमलोगों को फुसलाकर गद्दी पाते हैं
सावधान गद्दी चोरों से रहना तुम
यह लोकतंत्र या भ्रष्टतंत्र का शाशन है
स्पस्टतया देखो तुम मिल-मिल कर के
योग्य गरीबों के बच्चे क्या करते हैं
तुलना करो नेताओं के तुम बच्चों से
हम मेहनत करके इतनी फसल उगाते हैं
फिर भी अपने ये सरे बच्चे भूखें हैं
फिर तुलना करो नेताओं के उन बच्चों से
जो हम सबके रक्त को पीकर जीते हैं.
-राहुल पंडित

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