आये गर्मी के प्यारे दिन
सब लोगों का तन-मन डोला
आग सरीखा तपता सूरज
लगता जैसे आग का गोला
मोती के दानो से जल कड़
पूरे शारीर पर छ जाये
आये पंखे-कूलर के दिन
हवा सभी के मन को भाए
शाम समय गंगा के तट पर
फिर से आये सभी नहाने
पुरे दिन झेली गर्मी से
एक बार छुटकारा पाने
रात हुई,कुछ छत पर बैठे
कुछ पेड़ों के नीचे सोते
गर्मी से व्याकुल हो बच्चे
रात-रात भर जगते रोते
इतने दुःख के बावजूद भी
गर्मी मुझको भाती है
आखिर ऐसा हो भी क्यूँ न
छुट्टी जो ये लाती है.
-राहुल पंडित
सुन्दर रचना
ReplyDeleteyar garmi or suhare din
ReplyDeletekuch kuch gadbad he
bahut khub
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई