मै लिखूं क्या तुझे,क्या कहूं आज अब
मेरी आँखों के आंशू नहीं रूक रहे
हाथ उठता नहीं,कलम चलती नहीं
मेरे अरमा मेरी आग में जल रहे
आज कैसे कहूं की अब मै ,मै नहीं
बन्धनों में बधा एक विचारा हूँ मै
आज कैसे कहूं तू मुझे भूल जा
रुढ़िवादी रिवाजों का मारा हूँ मै
साथ जीने मरने की कसम भूलकर
कैसे बोलूं तुझे मै नहीं जनता
माफ़ कर दो मुझे इट मेरी दिलरुबा
क्या करूँ?क्या कहूँ?मै नहीं जनता
आज सरे कसम वादों को भूलकर
अनचाही विरक्ति को ही चाहता
आ अब कह दूं तुझे सरे अरमा कुचल
बात मुझसे न करना दुबारा कभी
तुम अपनी डगर और मै अपनी डगर
इस जनम में हमारा मिलन अब नहीं.
-राहुल पंडित
जब याद तुम्हे आये क्रंदन
ReplyDeleteजब हूक उठे, टूटे बंधन
जब मन की माला टूट टूट
बिखरे यौवन के कण कण पर
हे बैरागी! तुमको याद आये
उस वक्त राष्ट्र का हित चिंतन
तब तोड़ मोह के बंधन को
तुम करना! राष्ट्र वंदन ...........
रत्नेश त्रिपाठी