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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Monday, October 25, 2010

क्या कहती गंगा धारा






यह कल कल छल छल बहती ,
क्या कहती गंगा धारा
युग-युग से बहता आया
यह पुण्य प्रवाह हमारा ।।
हम इसके लघुतम जलकण ,
बनते मिटते हैं क्षण- क्षण
अपना अस्तित्त्च मिटाकर
तन मन धन करते अर्पण
बढ़ते जाने का शुभ प्रण ,
प्राणों से हमको प्यारा
यह पुण्य प्रवाह हमारा ।।
इस धारा में घुल मिलकर ,
वीरों की राख बही है ।।
इस धारा की कितने ही
ऋषियों ने शरण गही है
इस धारा की गोदी में ,
खेला इतिहास हमारा
यह पुण्य प्रवाह हमारा ।।
यह अविरल तप का फल है ,
यह राष्ट प्रवाह प्रबल है
शुभ संस्कृति का परिचायक ,
भारत मा का आचल है यह
शाश्वत है चिर जीवन
मर्यादा धर्म सहारा ।
यह पुण्य प्रवाह हमारा ।।
क्या इसको रोक सकेंगें
मिटने वाले मिट जाएं
कंकड़ पत्थर की हस्ती क्या
बाधा बनकर आएं ढह जाएगें
गिरि पर्वत कांपे भूमण्डल
सारा यह पुण्य प्रवाह हमारा ।।

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