मित्रोँ , आप सबको तो पता ही है कि हमारे केजरीवाल जी कोई मामूली इंसान नहीँ हैँ, वे धरती पर नेकी और धर्मनिरपेक्षता फैलाने के लिए साक्षात् खुदा द्वारा भेजे गए फरिश्ते हैँ .
लेकिन धरती पर आने के बाद से उन्होँने अपने आपको बिल्कुल एक "आम-आदमी" की तरह पेश किया है , परंतु किसी भी हालत मेँ धर्मनिरपेक्षता से सौदा नहीँ किया.
आज आपको उनके बचपन का एक वाकया सुनाता हूँ , ये बात उन दिनोँ की है जब केजरीवाल जी एक नन्हेँ से प्रखर बुद्धि बालक थे और "दारुल-अल-इस्लामिया" नामक एक मदरसे मेँ तालीम ले रहे थे.
हुआ यूँ कि जब उनके पाँचवेँ दर्जे के सालाना पर्चे चल रहे थे तो भूगोल के पर्चे मेँ एक बड़ा ही अजीब सा सवाल था , "पृथ्वी की परिधि की लंबाई बताइए?"
यह सवाल देखकर युगपुरुष जी की आँखेँ फटी की फटी रह गईँ, उन्हेँ किसी साजिश की बू आने लगी, वे सोच मेँ पड़ गए कि मदरसा कमिटी के चेयरमैन मौलाना मरदूद उल्लाह मदनी ने तो ये बताया था कि धर्मनिरपेक्ष ग्रन्थोँ के मुताबिक पृथ्वी चपटी है , तो फिर चपटी चीज की परिधि कैसे हो सकती है और ये भी बताया था उस ग्रन्थ मेँ लिखी प्रत्येक बात सार्वभौमिक सत्य है। -
फिर क्या था मित्रोँ , आदरणीय केजरीवाल जी ने वो नापाक सवाल ही छोड़ दिया , और सिर्फ इसी वजह से भूगोल के पर्चे मेँ उनके 100 मेँ से 99 अंक ही आए ,
मित्रोँ वो चाहते तो अन्य छात्रोँ के माफिक गलत उत्तर लिखकर 1 अतिरिक्त अंक प्राप्त कर सकते थे , लेकिन ये उनकी फितरत ही नहीँ कि महज एक अंक के लिए धर्मनिरपेक्षता से समझौता कर लेँ . -
हालांकि एक महीने बाद ही उन्होँने ये खुलासा कर दिया कि पेपर सेट करनेवाला आदमी संघी था और मदरसे जैसी पाक और धर्मनिरपेक्ष जगह को सांप्रदायिक बनाना चाहता था।
देखा मित्रोँ , हमारे केजरीवाल जी आज से नहीँ जन्म जन्मांतर से इन संघियोँ के निशाने पर रहे हैँ , लेकिन आजतक हार नहीँ मानी , आज भी वो नित-नए उत्साह के साथ सांप्रदायिकता के खिलाफ झंडा गाड़े हुए हैँ।
जय हो केजरीवाल जी की।
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