वेदो के बारे मे तथाकथित दलित विचारक कहते है की वेद पढने का अधिकार कभी शुद्रो को नही था. खैर ये क्या कहते है क्या नही कहते उससे कोई खास फर्क तो नही पङता पर उन महान शुद्र विद्वानो के नाम बताना मै जरुरी समझता हुं जिन्होने वेद लिखने मे अहम भूमिका अदा की.
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1- आचार्य कवस 2- एलुस 3- महिदास 4- ऐतरेय 5- दीर्घतमा 6- औशिज 7- काच्छीवान 8- वत्स 9- काण्वायन 10- सुदछिनच्छेमि 11- रैक्यमुनि 12- सत्यकाम 13- जाबाल
इन सब महान विद्वानो के चरणो मे कोटि कोटि नमन..
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वे आर्य जो न तो वैश्य थे न च्छत्रिय थे वो या तो ब्राह्मण थे या शुद्र थे. वे ब्राह्मण जो अध्ययन के बजाय शिल्प कार्य मे लगे उन्हे शुद्र कहा गया. ( तो क्या ब्राह्मण और शुद्र एक उत्पत्ति के नही हुए???मतलब ब्राह्मण और शुद्र एक ही हैं.) - रिगवेद मण्डल सात सुक्त 32 मंत्र 20
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जो ब्राह्मण वेद पठन पाठन नही करते कराते, अन्यत्र श्रम करते है वे और उनके तत्कालीन वंशज शुद्र होते है. - मनुस्मृति
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महान वैदिक संस्कृति और सभ्यता मे कमी वही निकाल सकते हैं जिन्होने कभी इसका अध्ययन भी नहीं किया हैं ऐसे म्लेच्छो से हम सभी को सावधान रहना चाहीये जो हम लोगो को बाटने के लिये झुठ का सहारा लेते है.कोई भी ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शुद्र जन्म के आधार पर नहीं हो सकता."कर्म" ही इसका पैमाना है,अगर ब्राह्मण शूद्रों की तरह काम करता है तो वह शुद्र है और शुद्र ब्राह्मण की तरह तो वह ब्राह्मण.यही हमारे वेदों की शिक्षा है.इसको तोड़ मरोड़ कर पेश करने वाले तथाकथित ब्राह्मणों और इसे दलित विरोधी बताने वाले स्वयंभू दलित विचारकों से ही महान वैदिक धर्म को खतरा है.
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