आज है वो काला दिन जिस दिन नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी जी की हत्या कर दी,पूरा भारत (और पकिस्तान भी)शोक में डूब गया था.हम रो रहे थे क्यों की हमने अपने बापू को खो दिया था और पाकिस्तानी रो रहे थे क्यों की उन्होंने अपने शुभचिंतक को खो दिया था,उस शुभचिंतक को जो बटवारे के बाद हुए पाकिस्तान की नापाक हरकतों के बावजूद अनशन पर बैठ कर पकिस्तान को ४० करोड़ रुपये दिलवा दिए थे.(जबकि सरदार बल्लभ भाई पटेल नहीं चाहते थे) ताकि भारत बटवारे के समय किये हुए अपने वादे को पूरा करे.हलाकि बाद में इस पासे का उपयोग पाकिस्तान सरकर ने पकिस्तान में रह रहे हिन्दू और सिक्खों का क़त्ल करने में किया."गाँधी हत्या क्यों"पढ़ा और इतिहास से सच निकलने का प्रयत्न किया,गांधी जी के ऊपर भी बहुत सी पुस्तकें पढ़ी और गोडसे और वीर सावरकर पर भी..मनन किया और लगा की शायद दोनों ने ही अपने हिसाब से राष्ट्र हित में ही काम किया था.ये अलग बात है की गाँधी और गोडसे दोनों ने कुछ गलत फैसले लिए जिसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ा.गोडसे ने गाँधी जी की हत्या की और उसके सैकड़ों कारण दे दिए लेकिन हत्यारा तो हत्यारा होता है,और उसमे भी गाँधी जी की हत्या करे तो पाप और बढ़ जाता है.नतीजा आप के सामने है,चंद लोग ही गोडसे का समर्थन करते हैं और उनके द्वारा किये हुए सारे अच्छे काम(आपको जानना चाहिए की स्वतंत्रता संग्राम के लडाई में गोडसे भी तीन बार जेल जा चुके थे)भुला दिए गए जबकि गांधी जी आज भी सबके साथ हैं चाहे रिश्वत की नोट में ही क्यों न हों.गांधी जी की भी गलतियाँ भी सबके सामने हैं,भगत सिंह की फाँसी के समय गांधी जी के निर्णय जगविदित हैं..क्या गांधी जी को शहीद भगत सिंह को बचाना नहीं चाहिए था.उनके एक निर्णय से वो बाख सकते थे.आखिर हम भगत सिंह की हत्या के लिए किसको दोष दें?
कभी-कभी इतिहास की गलत ब्याख्या हो जाती है और कुछ पन्ने जो स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने चाहिए,काले अक्षर में भी नहीं लिखे जाते.मै यहाँ गोडसे का महिमा मंडान करने नहीं बैठा,लेकिन मेरी ये सोच है की अगर गाँधी जी कई गलतियों के बाद राष्ट्रपिता बन सकते हैं तो गोडसे को उसकी एक गलती(जो अपने हिसाब से और बहुतों के भी)उसने राष्ट्र हित में की थी,हत्यारा कहना ज्यादती है.
नीचे नाथूराम गोडसे का आखिरी पत्र है जो उसने अपने भाई को लिखी थी,पढ़े,मनन करें और इतिहास के पन्नों को कुरेदें,शायद खुरचे हुए ही सही,कुछ सच सामने आ जाये.
कभी-कभी इतिहास की गलत ब्याख्या हो जाती है और कुछ पन्ने जो स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने चाहिए,काले अक्षर में भी नहीं लिखे जाते.मै यहाँ गोडसे का महिमा मंडान करने नहीं बैठा,लेकिन मेरी ये सोच है की अगर गाँधी जी कई गलतियों के बाद राष्ट्रपिता बन सकते हैं तो गोडसे को उसकी एक गलती(जो अपने हिसाब से और बहुतों के भी)उसने राष्ट्र हित में की थी,हत्यारा कहना ज्यादती है.
नीचे नाथूराम गोडसे का आखिरी पत्र है जो उसने अपने भाई को लिखी थी,पढ़े,मनन करें और इतिहास के पन्नों को कुरेदें,शायद खुरचे हुए ही सही,कुछ सच सामने आ जाये.
प्रिय बंधो चि.दत्तात्रय वि. गोडसे ,
मेरे बीमा के रुपिया अगर आ जाएँ तो उस रुपिया का बिनिभोग आपके परिवार के कार्य के लिए करना.रुपिया २००० आपके पत्नी के नाम पर. रुपिया ३००० चि. गोपाल की धर्मपत्नी के नाम पर और रुपिया २००० आपके नाम पर.इसप्रकार बीमा के कागजों पर मैंने रुपिया मिलने के लिए लिखा है.
मेरी उत्तर क्रिया करने का अधिकार यदि आपको मिलेगा तो आप आपकी इच्छा से किसी प्रकार इस शुभ कार्य को संपन्न करना.लेकिन मेरी अंतिम विशेष इच्छा यहीं लिखता हूँ.
अपने भारतवर्ष की सीमा रेखा सिंधुनदी है. जिसके किनारे पर वेदों की रचना प्राचीन द्रष्टाओं ने की है.वह सिंधुनदी जिस शुभ दिन में फिर भारत वर्ष की ध्वज की छाया में स्वछंदता से बहती रहेगी उन दिनों मेरी अस्थिओं या रक्षा का कुछ छोटा सा हिस्सा उस सिंधुनदी में बहा दिया जाय.
मेरी यह इछ्चा सत्यसृष्टि में आने के लिए शायद और भी एक दो पिधिओं का समय लग जाय तो मुझे चिंता नहीं.उस दिन तक वह अवशेष वैसा ही रखो और आपके जीवन में वह शुभ दिन न आये तो आपके वारिशों को ये मेरी अंतिम इच्छा बतलाते जाना.
अगर मेरे न्यायलय वक्तव्य को सर्कार कभी वन्ध्मुक्त करेगी तो उसके प्रकाशन का अधिकार भी मै आपको दे रहा हूँ.
मैंने १०१ रुपिया आपको आज दिए हैं जो आप सौराष्ट्र सोमनाथ मंदिर का पुनरोद्धार हो रहा है उसके कलश कार्य के लिए भेज देना.
वास्तव में मेरे जीवन का अंत उसी समय हो गया था जब मैंने गाँधी पर गोली चलायी थी.उसके पश्चात मानो मै समाधी में हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ.
मै मानता हूँ की गाँधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाये,जिसके लिए मै उनकी सेवा के प्रति और उनके प्रति नतमस्तक हूँ,किन्तु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि का विभाजन करने का अधिकार नहीं था.
मै किसी प्रकार की दया नहीं चाहता और नहीं चाहता हूँ की मेरी ओए से कोई दया याचना करे.
आपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना अगर पाप है तो मै स्वीकार करता हूँ की वह पाप मैंने किया है.अगर वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य पद पर मेरा नम्र अधिकार है.
मेरे बीमा के रुपिया अगर आ जाएँ तो उस रुपिया का बिनिभोग आपके परिवार के कार्य के लिए करना.रुपिया २००० आपके पत्नी के नाम पर. रुपिया ३००० चि. गोपाल की धर्मपत्नी के नाम पर और रुपिया २००० आपके नाम पर.इसप्रकार बीमा के कागजों पर मैंने रुपिया मिलने के लिए लिखा है.
मेरी उत्तर क्रिया करने का अधिकार यदि आपको मिलेगा तो आप आपकी इच्छा से किसी प्रकार इस शुभ कार्य को संपन्न करना.लेकिन मेरी अंतिम विशेष इच्छा यहीं लिखता हूँ.
अपने भारतवर्ष की सीमा रेखा सिंधुनदी है. जिसके किनारे पर वेदों की रचना प्राचीन द्रष्टाओं ने की है.वह सिंधुनदी जिस शुभ दिन में फिर भारत वर्ष की ध्वज की छाया में स्वछंदता से बहती रहेगी उन दिनों मेरी अस्थिओं या रक्षा का कुछ छोटा सा हिस्सा उस सिंधुनदी में बहा दिया जाय.
मेरी यह इछ्चा सत्यसृष्टि में आने के लिए शायद और भी एक दो पिधिओं का समय लग जाय तो मुझे चिंता नहीं.उस दिन तक वह अवशेष वैसा ही रखो और आपके जीवन में वह शुभ दिन न आये तो आपके वारिशों को ये मेरी अंतिम इच्छा बतलाते जाना.
अगर मेरे न्यायलय वक्तव्य को सर्कार कभी वन्ध्मुक्त करेगी तो उसके प्रकाशन का अधिकार भी मै आपको दे रहा हूँ.
मैंने १०१ रुपिया आपको आज दिए हैं जो आप सौराष्ट्र सोमनाथ मंदिर का पुनरोद्धार हो रहा है उसके कलश कार्य के लिए भेज देना.
वास्तव में मेरे जीवन का अंत उसी समय हो गया था जब मैंने गाँधी पर गोली चलायी थी.उसके पश्चात मानो मै समाधी में हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ.
मै मानता हूँ की गाँधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाये,जिसके लिए मै उनकी सेवा के प्रति और उनके प्रति नतमस्तक हूँ,किन्तु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि का विभाजन करने का अधिकार नहीं था.
मै किसी प्रकार की दया नहीं चाहता और नहीं चाहता हूँ की मेरी ओए से कोई दया याचना करे.
आपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना अगर पाप है तो मै स्वीकार करता हूँ की वह पाप मैंने किया है.अगर वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य पद पर मेरा नम्र अधिकार है.
देश भक्ति को पाप कहें यदि
मै हूँ पापी घोर भयंकर
किन्तु रहा वो पुण्य कर्म तो
मेरा है अधिकार पुण्य पर
अचल खड़ा मै इस वेदी पर
मेरा विश्वाश अडिग है,नीति की दृष्टि से मेरा कार्य पूर्णतया उचित है.मुझे इस बात पर लेशमात्र भी संदेह नहीं है की भविष्य में सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेंगे तो मेरा कार्य उचित ठहराएंगे.
आपका सुभेच्च्हू
नाथूराम वि. गोडसे
१४-११-४९
मै हूँ पापी घोर भयंकर
किन्तु रहा वो पुण्य कर्म तो
मेरा है अधिकार पुण्य पर
अचल खड़ा मै इस वेदी पर
मेरा विश्वाश अडिग है,नीति की दृष्टि से मेरा कार्य पूर्णतया उचित है.मुझे इस बात पर लेशमात्र भी संदेह नहीं है की भविष्य में सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेंगे तो मेरा कार्य उचित ठहराएंगे.
आपका सुभेच्च्हू
नाथूराम वि. गोडसे
१४-११-४९
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