वे अचानक आये और बिना आज्ञा लिए मेरे कमरे में घुसकर इधर-उधर ताक-झाँक करने लगे।
मैंने पूछा- ‘क्या चाहिए?’
‘कुछ नहीं।’‘फिर क्या ढूँढ़ रहे हो?’
‘मैं आतंकवाद तलाश रहा हूँ।’
‘आतंकवाद? कैसा आतंकवाद?’
‘भगवा आतंकवाद।’
‘क्या बकते हो? तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है? मेरे कमरे में आतंकवाद कहाँ से आया?’
‘यहीं होना चाहिए। गृहमंत्री शिन्दे ने बताया है?’
‘क्या बताया है उन्होंने?’
‘कि संघ भगवा आतंकवादी पैदा करता है और उसके कार्यकर्ता भगवा आतंकवादी हैं।’
‘यह दिव्य ज्ञान उनको कैसे हुआ?’
‘उनको अपने खुफिया सूत्रों से पता चला है।’
‘तो उन्होंने अपनी खुफिया सूचनाओं के आधार पर आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध भी लगाया होगा।’
‘हाँ, लगाया है। 30-35 संगठनों पर लगाया है।’
‘क्या उनमें संघ या उसके किसी सहयोगी संगठन का नाम है?’
‘वह तो नहीं है।’
‘कुछ गुप्त सूचनाओं के आधार पर उन्होंने मान लिया कि संघ आतंकवादी संगठन है? क्या और भी कोई सबूत है?’
‘वही तो ढूँढ़ रहा हूँ।’
‘यानी तुम तलाशी लेते फिर रहे हो और अभी तक कोई सबूत नहीं मिला।’
‘हाँ।’
‘अगर मैं यह सूचना दे दूँ कि सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह ने आतंकवाद फैलाया है, तो बिना सबूत के तुम उनके घर की भी तलाशी लोगे?’
‘पता नहीं।’
‘शिन्दे को अभी तक कहीं आतंकवाद दिखाई नहीं पड़ा?’
‘पता नहीं।’
‘मुम्बई हमला, समझौता एक्सप्रैस, बटाला कांड वगैरह जो घटनाएँ हुईं, उनमें उनको कोई आतंकवाद दिखाई नहीं पड़ा?’
‘पता नहीं।’
‘उन्हें आतंकवाद के भगवा होने का पता कैसे चला?’
‘हिन्दू आतंकवादी पकड़े गये हैं, इसी से पता चला।’
‘अच्छा? कितने पकड़े गये हैं?’
‘दस-बारह।’
‘और मुस्लिम आतंकवादी कितने पकड़े गये हैं?’
‘वे तो सैकड़ों हैं।’
‘तो फिर तुम इस्लामी आतंकवाद भी तलाश रहे होगे।’
‘तुम साम्प्रदायिक हो।’
‘इस्लामी आतंकवाद की बात करना साम्प्रदायिकता है और हिन्दू आतंकवाद की बात करना सेकूलरटी है?’
‘हाँ। हमारी सरकार यही मानती है।’
‘क्या गृहमंत्री शिन्दे को सही-सही मालूम है कि हिन्दू या भगवा आतंकवाद कहाँ है?’
‘मालूम होता तो पकड़ नहीं लेते?’
‘लेकिन मुझे मालूम है कि कहाँ है।’
‘जरूर मालूम होगा। तभी तो यहाँ आया हूँ। बताओ कहाँ है?’
‘कांग्रेसी नेताओं की खोपडि़यों में है।’
‘क्या बक रहे हो?’
‘उनको बरेली या राँची ले जाकर पागलखाने में भर्ती करा दो। वहाँ बिजली के झटके दिये जायेंगे, तो भगवा आतंकवाद बाहर निकल आयेगा।’
मैंने पूछा- ‘क्या चाहिए?’
‘कुछ नहीं।’‘फिर क्या ढूँढ़ रहे हो?’
‘मैं आतंकवाद तलाश रहा हूँ।’
‘आतंकवाद? कैसा आतंकवाद?’
‘भगवा आतंकवाद।’
‘क्या बकते हो? तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है? मेरे कमरे में आतंकवाद कहाँ से आया?’
‘यहीं होना चाहिए। गृहमंत्री शिन्दे ने बताया है?’
‘क्या बताया है उन्होंने?’
‘कि संघ भगवा आतंकवादी पैदा करता है और उसके कार्यकर्ता भगवा आतंकवादी हैं।’
‘यह दिव्य ज्ञान उनको कैसे हुआ?’
‘उनको अपने खुफिया सूत्रों से पता चला है।’
‘तो उन्होंने अपनी खुफिया सूचनाओं के आधार पर आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध भी लगाया होगा।’
‘हाँ, लगाया है। 30-35 संगठनों पर लगाया है।’
‘क्या उनमें संघ या उसके किसी सहयोगी संगठन का नाम है?’
‘वह तो नहीं है।’
‘कुछ गुप्त सूचनाओं के आधार पर उन्होंने मान लिया कि संघ आतंकवादी संगठन है? क्या और भी कोई सबूत है?’
‘वही तो ढूँढ़ रहा हूँ।’
‘यानी तुम तलाशी लेते फिर रहे हो और अभी तक कोई सबूत नहीं मिला।’
‘हाँ।’
‘अगर मैं यह सूचना दे दूँ कि सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह ने आतंकवाद फैलाया है, तो बिना सबूत के तुम उनके घर की भी तलाशी लोगे?’
‘पता नहीं।’
‘शिन्दे को अभी तक कहीं आतंकवाद दिखाई नहीं पड़ा?’
‘पता नहीं।’
‘मुम्बई हमला, समझौता एक्सप्रैस, बटाला कांड वगैरह जो घटनाएँ हुईं, उनमें उनको कोई आतंकवाद दिखाई नहीं पड़ा?’
‘पता नहीं।’
‘उन्हें आतंकवाद के भगवा होने का पता कैसे चला?’
‘हिन्दू आतंकवादी पकड़े गये हैं, इसी से पता चला।’
‘अच्छा? कितने पकड़े गये हैं?’
‘दस-बारह।’
‘और मुस्लिम आतंकवादी कितने पकड़े गये हैं?’
‘वे तो सैकड़ों हैं।’
‘तो फिर तुम इस्लामी आतंकवाद भी तलाश रहे होगे।’
‘तुम साम्प्रदायिक हो।’
‘इस्लामी आतंकवाद की बात करना साम्प्रदायिकता है और हिन्दू आतंकवाद की बात करना सेकूलरटी है?’
‘हाँ। हमारी सरकार यही मानती है।’
‘क्या गृहमंत्री शिन्दे को सही-सही मालूम है कि हिन्दू या भगवा आतंकवाद कहाँ है?’
‘मालूम होता तो पकड़ नहीं लेते?’
‘लेकिन मुझे मालूम है कि कहाँ है।’
‘जरूर मालूम होगा। तभी तो यहाँ आया हूँ। बताओ कहाँ है?’
‘कांग्रेसी नेताओं की खोपडि़यों में है।’
‘क्या बक रहे हो?’
‘उनको बरेली या राँची ले जाकर पागलखाने में भर्ती करा दो। वहाँ बिजली के झटके दिये जायेंगे, तो भगवा आतंकवाद बाहर निकल आयेगा।’
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