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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Monday, January 21, 2013

उनके फन पर ऐड़ी - रगड़ी जाना शेष अभी भी है!


जो भारत में कटुता के फसलों को बोने वाले हैं
आतंकी सोचों के पोषक,उनके ही रखवाले हैं
अमर जवान ज्योति पर जिसने गंदे हाथ लगाये हैं
हैदराबाद की शांत फिजा में जिसने आग लगाये हैं
जो अजमल को बच्चा,बिस्फोटों को सही बताते हैं
उनके पैरों बेड़ी जकड़ी जाना शेष अभी भी है 
उनके फन पर ऐड़ी - रगड़ी जाना शेष अभी भी है
जिन लोगों ने गोद लिया है जिन्ना की परिपाटी को 
दुनिया में बदनाम किया है पूजित पावन माटी को 
जिन लोगों ने कभी तिरंगे का सम्मान नहीं सीखा 
अपनी जननी जन्मभूमि का गौरवगान नहीं सीखा 
जो दुश्मन के हित के पहरेदार बताएं जाते हैं 
जो सौ - सौ लाशों के जिम्मेदार बताये जाते हैं 
उनके पैरों बेड़ी जकड़ी जाना शेष अभी भी है 
उनके फन पर ऐड़ी - रगड़ी जाना शेष अभी भी है
जिन लोगों ने भारत को बदनाम किया उद्बोधन से
आतंकी का नाम लिया है "जी" जैसे संबोधन से
हाफिज जैसे आतंकी को मिस्टर सईद पुकारा है
अमर शहीदों की छाती पर जिसने खंजर मारा है
जो बिस्फोटों के दोषी को निर्दोष बताने वाले हैं
वोटों की खातिर जो आतंकी छुडवाने वाले हैं
उनके पैरों बेड़ी जकड़ी जाना शेष अभी भी है 
उनके फन पर ऐड़ी - रगड़ी जाना शेष अभी भी है
जो बिघटन की राजनीति से वोट सेकने वाले हैं
हिन्दू-मुस्लिम लड़ा-लड़ा कर कुर्सी के रखवाले हैं
जो मेजों के ऊपर भारत को गाली लिख देते हैं
नमक यहाँ का खाते हैं पर पक्ष विदेशी लेते हैं
राष्ट्रवादियों को जो आतंकी बतलाने वाले हैं
देशद्रोहियों को सह और संरक्षण दिलवाने वाले हैं
उनके पैरों बेड़ी जकड़ी जाना शेष अभी भी है 
उनके फन पर ऐड़ी - रगड़ी जाना शेष अभी भी है
((यह कविता मैंने माननीय हरिओम पवार जी की कुछ दिल को छूने वाली पंक्तियों से प्रेरणा लेकर लिखी है.महान राष्ट्रवादी कवि डाक्टर हरिओम पवार जी को प्रणाम और आभार))


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