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Sunday, December 19, 2010

१९६२ दोहराने को आमादा चीन:सरकार सो रही है


आज के ताजा हालातों से जान पड़ता है की चीन दुबारा से १९६२ को दोहराने की पूरी साजिश कर रहा है और हमारे हुक्मरान दुखद अतीत की भाति निद्रित हैं. चीन के प्रधानमंत्री वन च्या पाओ के भारत दौरे के चंद दिनों बाद ही चीन ने भारत के साथ सीमा विवाद को एक नया मोड़ दे दिया है। ची
न की सरकारी समाचार एजेंसी 'शिन्हुआ' ने बताया है कि भारत-चीन सीमा महज 2000 किलोमीटर लंबी है, जबकि भारतीय दस्तावेज के मुताबिक यह करीब 3500 किलोमीटर है। यानी चीन ने करीब 1500 किलोमीटर दूरी को भारत के साथ सीमा मानने से इनकार कर दिया है।

जाहिर है, चीन अब उस 1500 किलोमीटर लंबी लाइन को सीमा नहीं मानता जिसके एक ओर जम्मू एवं कश्मीर है और दूसरी ओर तिब्बत और सिंचियांग प्रांत है। चीनी प्रधानमंत्री के भारत दौरे के पहले उनके सहायक विदेश मंत्री हू ने सीमा के बारे में जो ब्यौरा दिया था, शिन्हुआ ने उसी के आधार पर भारत-चीन सीमा को दर्शाया है
एक ओर जहां भारत और चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत का दौर चला रहे हैं। वहीं चीन की सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ और कम्युनिस्ट पार्टी के मुख पत्र पीपुल्स डेली के अंग्रेजी संस्करण 'ग्लोबल टाइम्स' के अनुसार, भारत-चीन सीमा की लंबाई महज 2 हजार किमी है। चीनी मीडिया ने भारत-चीन सीमा की लंबाई के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के 17 दिसंबर को संपन्न हुई भारत की तीन दिवसीय यात्रा के पहले यह रिपोर्ट शिन्हुआ और ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित हुई थी। शिन्हुआ ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा गया है कि भारत-चीन सीमा सिर्फ 2,000 किमी लंबी है। बीजिंग स्थित भारतीय राजदूत एस जयशंकर ने चीनी मीडिया के इस दावे का खंडन किया है। ग्लोबल टाइम्स को दिए साक्षात्कार में जयशंकर ने कहा है कि दोनों देशों के बीच 3,488 किमी लंबी सीमा है। मंगलवार को प्रकाशित इस साक्षात्कार में ग्लोबल टाइम्स ने जानबूझ कर यह नोट लगाया है कि चीन के दावे के अनुसार, दोनों देशों के बीच सीमा की लंबाई करीब 2 हजार किमी है।


1962 युद्ध के पीछे थी नेहरू का उदासीनता !

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1 जुलाई 1954 को ही (भारत-चीन) सीमा पर
बातचीत के दरवाजे बंद कर दिए थे। यह बात ए ज
ी नूरानी की नई किताब में कही गई है।

पुस्तक के मुताबिक नेहरू ने न केवल बातचीत के दरवाजे बंद कर दिए थे बल्कि
1960 में भारत दौरे पर आए और विवाद को समाप्त करने को तैयार चाउ एन लाइ
को टका सा जवाब दे दिया था। इन दोनों कारकों ने 1962 के भारत-चीन युद्ध
की नींव डाल दी।


लीगल मामलों के एक्सपर्ट ए.जी. नूरानी सरहद से जुड़े मसलों के अपने
अध्ययन के लिए भी जाने जाते हैं। नूरानी ने इस पुस्तक में 17 पैरा
मेमोरेंडम को उद्धृत किया है जिसमें नेहरू ने कहा है,'हमारी अब तक की
नीति और चीन से हुआ समझौता दोनों के आधार पर यह सीमा सुनिश्चित मानी जानी
चाहिए ऐसी जो किसी के साथ भी बातचीत के लिए खुली नहीं है। बहस के कुछ
बेहद छोटे मसले हो सकते हैं लेकिन वे भी हमारी ओर से नहीं उठाए जाने
चाहिए।'

इंडिया-चाइना बाउंडरी प्रॉब्लम 1846-1947: हिस्ट्री एंड डिप्लोमैसी' नाम
की इस पुस्तक में बताया गया है कि भारत ने अपनी तरफ से ऑफिशल मैप में
बदलाव कर दिया। 1948 और 1950 के नक्शों में पश्चिमी (कश्मीर) और मध्य
सेक्टर (उत्तर प्रदेश) के जो हिस्से अपरिभाषित सरहद के रूप में दिखाए गए
थे, वे इस बार गायब थे। 1954 के नक्शे में इनकी जगह साफ लाइन दिखाई गई
थी।'

लेखक ने कहा है कि 1 जुलाई 1954 का यह निर्देश 24 मार्च 1953 के उस फैसले
पर आधारित था जिसके मुताबिक सीमा के सवाल पर नई लाइन तय की जानी थी।
किताब में कहा गया है,'यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण था। पुराने नक्शे जला दिए
गए। एक पूर्व विदेश सचिव ने इस लेखक को बताया था कि कैसे एक जूनियर ऑफिसर
होने के नाते खुद उन्हें भी उस मूर्खतापूर्ण कवायद का हिस्सा बनना पड़ा
था।'
माना जा रहा है कि वह पूर्व विदेश सचिव राम साठे थे चीन में भारत के
राजदूत भी रह चुके थे। साठे की स्मृति को समर्पित इस पुस्तक का विमोचन 16
दिसंबर को चीनी प्रधाननमंत्री वेन जियाबाओ की बारत यात्रा के दौरान
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया था।

किताब के मुताबिक नेहरू चाहते थे कि नए नक्शे विदेशों में भारतीय
दूतावासों के भेजे जाएं, इन्हें सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने ला दिया
जाए और स्कूल-कॉलेजों में भी इस्तेमाल किए जाने लगें। किताब में 22 मार्च
1959 को चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाइ के लिखे पत्र में नेहरू की हर बात
को ' ऐतिहासिक रूप से गलत ' बताते हुए नूरानी कहते हैं कि 1950 तक भारतीय
नक्शों ने सीमा को अपरिभाषित बताया जाता था।


खोजो टीपू सुल्तान कहाँ सोये हैं
असफाक और उस्मान कहाँ सोये हैं
बम वाले वीर जवान कहाँ सोये हैं
वे भगत सिंह बलवान कहाँ सोये हैं
जा कहो,करे वे कृपा,न रूठे वे
बम उठा बाज़ के सदृश टूटे वे
हम मान गए जब क्रान्तिकाल होता ही
सारी लपटों का रंग लाल होता है
जाग्रत पौरुष प्रज्वलित ज्वाल होता है
शुरत्व नहीं कोमल,कराल होता है
वास्तविक मर्म जीवन का जान गए हैं
हम भलीभाति खुद को पहचान गए हैं
हम समझ गए हैं खूब क्रूर के चालों को
बम की महिमा को और बन्दूक की नालों को
साधना स्वयं शोणित कर वार रही है
शातलुज को साबरमती पुकार रही है.

12 comments:

  1. ye congress hai...inko to satta chahiye desh nahi.marne ke liye jawan to hai hi.jang hogi,jawan marenge,thodi jameen hi to jayegi.rahul ji aap kyun pareshan hote hain.ye desh to gandhi nehru parivar ki bapouti hai.jaise chahen use kar le.

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  2. चिंतनीय..संभलने की जरुरत है.

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  3. हमारी परिश्तिती पहले की तरह नहीं है फिर भी तैयार रहनेकी जरुरत है.

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  4. गंभीर चिंतन की जरुरत.आलेख के लिए धन्यवाद

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  5. सरकार गद्दारों की है गद्दार क्यों देश की चिन्ता करेंगे।ये काम तो अब क्रांतिकारियों को मिलकर करना है।

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  6. नीरो बंसरी बजा रहा है...

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  7. ये कांग्रेस है भाई साहब,तब नेहरु थे और अब मनमोहन ओर अंतोनियो .देश हमारा है,जब तक हम वास्तव में खड़े नहीं होंगे,कुछ नहीं होगा

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  8. hoihain soi jo ram rachi rakha...

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  9. hum akele kuchh nahi kar payenge..sabkojagkar congress ko ukhad fekna hoga.

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  10. Rahul ji aapne badi mehnat se apni post taiyaar ki hai.

    China ke saat hamare relation ke baare men aapke vacharon se main sahmat hun.


    Apka Geet bahut achhaa lagaa.

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