Wednesday, December 8, 2010
काशी में फिर रक्तरंजित हुई आस्था
पहले
बाद में
आज आस्था पर फिर एक और हमला हुआ.जगह वही वाराणसी जो(काशी).२००६ में एक ऐसे हमले में अततयिओ ने पवित्र संकटमोचन मंदिर को रक्तरंजित कर दिया था.वही दिन-मंगलवार,हिन्दुओं के लिए विशेष धार्मिक महत्व का दिन,श्री हनुमान जी का दिन.आखिर ये चाहते के हैं,ये बात किसी से छिपी नहीं है,और हम आसानी से समझ सकते हैं की आतंक के सौदागरों फिर से गंगा महा आरती के दौरान दशाश्वमेध घाट दहल उठा..और सीढिया घायलों के खून से सन गयीं. की साजिश ६ दिसंबर को ही इस घटना को अंजाम देने की थी और शायद सुरक्षा की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाए.मै खाटी बनारसी हूँ और बनारस मेरी जन्मभूमि भी है.मुझे अच्छी तरह पता है की दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा महा आरती बनारस की एक एक पहचान है.हजारों की संख्या में श्रद्धालु हर रोज एकत्रित होते हैं जिनमे देशी भी होते हैं और विदेशी भी होते हैं. जब घंटा घड़ियाल की ध्वनि के के बीच में आरती और भजन शुरू होता है तो पूरा माहौल भक्ति में डूब जाता है.और इसी माहौल में अगर घंटा घड़ियाल की ध्वनि के साथ बम की शोरे सुनाई दे.अगरबत्ती की खुशबू की जगह बारूद और जले मानव अंगों की गंध सुनाई दे तो आप आसानी से समझ सकते हैं की वहां पर रहने वाले लोगों पर क्या गुजरती होगी.क्या यह एक छुपा प्रश्न है की किसने ऐसी हरकत की होगी?क्या यह हिन्दुओं से प्यार करने वालों की हरकत है?क्या ये लोग चाहते हैं की देश में सभी संप्रदाय के लोग एक साथ रहे?शायद कभी नहीं.फिर ये लोग हैं कौन?ये किसी दुसरे देश आये हुए लोग नहीं हैं.ये हमारे बीच के वही राक्षस हैं जिनको सिखाया जाता है की उनके धर्म के आलावा दुसरे धर्म के लोग मार दिए जाने योग्य हैं.इतनी बड़ी साजिश एक दिन में भी नहिओ की जा सकती.इसके लिए इन्होने बाकायदा योजनाबअद्ध तरीके से काम किया होगा.इनको आश्रय देने वाले हिन्दू कभी नहीं हो सकते क्युकी कोई भी हिन्दू ऐसी घिनौनी हरकत नहीं कर सकता.न तो कोई हिन्दू मंदिर में खून खराबा कर सकता है न तो किसी दूसरे संप्रदाय के धार्मिक स्थल पर क्यूँ की उन्हें तो सिखाया जाता है कई सभी लोग सामान है और ईश्वर की संताने हैं.क्या जिन लोगों ने इसको किया है,वे इस देश में रहने के लायक हैं?कभी नहीं.आज इनकी संख्या बहुत कम है लेकिन जिस दिन भी ये केवल २०% हो गए,हिंदुस्तान,हिंदुस्तान न रहकर अरब हो जायेगा.
बनारस में भी विस्फोटों का शोर सुनाई देता है
इंडियन मुजाहिदीन के नारों का शोर सुनाई देता है
भरे समीर मौसम आदमखोर दिखाई देता है
लाल किले का भाषण भी कमजोर दिखाई देता है
बनारस के चौराहों से आती आवाजे संत्रासो की
पूरा शहर नज़र आता है मंडी ताजा लाशो की
सिंघासान को चला रहे है नैतिकता के नारों से
मदिरा की बदबू आती है संसद की दीवारों से
देश के नेतावो से है जनता का ये सवाल
बोलो उग्रवाद वाले पृष्ठ कब बांचे है
सिंह हो कर भी सिंह सिंह नहीं दीखते है
और स्वान खुले आम भर रहे कुलाचे है
हो अहमदाबाद या फिर दक्षिण का बंगलुरु
उग्रवादी नंगा नाच चारो और नाचे है
बनारस के धमाके चीख चीख के ये कहते है
ये धमाके तो दिल्ली के गाल पे तमाचे है
(हर-हर महादेव
(एक देशभक्त की रचना))
इस आतंकवाद का भी रंग बताएं गृहमंत्री
हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए भगवा आतंकवाद शब्द को जन्म देने वाले हमारे माननीय गृह मंत्री पी.चिदमबरम जी बताएं की बनारस में हुए आतंक का काया रंग है.वो जानते हैं की यह रंग हरा है,लेकिन वो कह नहीं सकते...आतंकवादी उनके लिए वोट बैंक हैं.राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को बदनाम करने के लिए तरह-तरह की झूठी बातें करने वाले गृह मंत्री जी ये तो बताएं की इस संगठन को प्रतिबंधित होने के बावजूद अपना काम करने में दिक्कत क्यूँ नहीं होती?कभी बनारस में तो कभी दिल्ली में..हर जगह ये अपना काम इतनी आसानी से कैसे कर देते हैं?मत बोलना साहब नहीं तो बात १७ करोन वोट की है.बस दस जनपथ में इनके साथ बैठ कर बिरयानी की पार्टी करना.
हिन्दुओं को फिर से जागने की जरुरत है.
अगर आज तक देश में १९९२ की तरह हिन्दू एकता कायम रहती तो शायद बार-बार ऐसे दिन देखने की नौबत नहीं आती.अभी समय है...हमें जागना होगा नहीं तो कभी पुस्तकों में पढ़ा जायेगा की कभी हिन्दू नाम का एक धर्म हुआ करता था.
चिंतको चिंतन की तलवार गढ़ों रे
रिशिओं उद्दीपन मंत्र पढो रे
योगिओं जागो जीवन की और बढ़ो रे
बंदूकों पर फिर अपने अलोक मढ़ो रे
है जहाँ कही भी तेज उसे पाना है
रन में समस्त भारत को ले जाना है
पर्वत पति को फिर आमूल डोलना होगा
शंकर को विध्वंशक नयन खोलना होगा.
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बहुत ही दर्दनाक घटना है , इस घटना से देश में आम आदमी की सुरक्षा पर सवालिया निशान लग गया है .
ReplyDeleteसही है राहुल जी हिन्दुओं की एकता शिथिल पड गई है। शायद अगर हमारे नेता दम ठोक कर सामने खडे हो जाते कि बाबरी ढ़ाचा का गिरना कोई भूल नही था और यह एक राष्ट्रहित का कार्य है तो शायद ऐसा न होता, परन्तु................
ReplyDeleteपर फिर से संगठन होगा, और इस बार कोई गलती नही होने देना है, बस इतना ही मेरा कहना है।
देखिये आस्था कभी भी और कोई भी रक्त रंजित नहीं कर सकता, हाँ, आस्थावानों को रक्तरंजित किया गया और यह युगों से चला आ रहा है मानव और दानव युद्ध !
ReplyDeleteराहुल जी मैं आपसे सहमत हूँ. लिखा भी आपना ज़बरदस्त है।
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