Monday, December 6, 2010
बाबरी विध्वंश के १८ साल:विश्रांति विनाश की तरफ ले जा रही है.
आज बाबरी विध्वंश के अठ्ठारह साल पुरे हुए.यह एक ऐसा दिन है जो भारत के इतिहास में शायद ही भुला जा सके क्यूंकि यह उन चंद वीरगाथाओं में से एक है..जो हमारे भारत भूमि को स्वर्णिम अतीत की याद दिलाते हैं.यह घटना उन चंद घटनाओं में से एक है जिसमे पूरा हिन्दुसमाज और अन्य धर्मो के राष्ट्रवादी मतावलम्बी एक हुए.बाबर जैसे बर्बर आक्रमणकरी द्वारा मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मंदिर को तोड़कर बनाये गए ढाचें को जमींदोज कर,अयोध्या में पुनः भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर को बनाने का प्रसश्त किया.यह हमारे लिए गर्व की बात है और समस्त हिन्दुस्तानी जिनके लिए अपना राष्ट्र प्रथम है इसको शौर्य दिवस के रूप में मना रहे हैं.लेकिन आज १८ साल बीत जाने के बाद भी,कुछ तथाकथित राष्ट्र विद्रोही(खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले)बाबर के अनुयायिओं के कारण भव्य मंदिर निर्माण में देरी हो रही है.कुछ दिन पहले लखनऊ उच्च न्यायलय द्वारा भव मंदिर निर्माण का आदेश देने के बावजूद कुछ राष्ट्र विरोधी तत्त्व अपना वोट बैंक बचने के लिए रस्ते में रोड़ा बन रहे हैं.यहाँ मै एक बात बताना चाहूँगा की भगवान श्री राम केवल हिन्दुओं के ही नहीं हैं.वो तो समस्त मानव समाज के लिए हैं.उन्होंने कभी भी नहीं कहा की हे हिन्दुओं ऐसा करो.उन्होंने जो कहा जो किया वह समस्त मानव समाज के लिए है.इसी का नतीजा है की भारतीय संबिधान जो की एक धर्म निरपेक्ष संबिधान है के पेज नंबर ३ पर भगवान श्रीराम की तस्वीर लगी है और कहा गया है की आप मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और हम आपके ही आदर्शों पर चलेंगे.यहाँ पर कुछ शब्द मै अपने देश के लोगों से पूछना चाहूँगा की क्या केवल हिन्दू श्रीराम जी के वंशज है और बाकि लोग क्या बाबर की औलाद हैं.सभी लोग जानते हैं की हिंदुस्तान में रहने वाले ९९.९९% लोग यहीं के रहने वाले हैं जो कुछ पिडियो पहले अपनी पूजा पध्धति बदल लिए.क्या पूजा पद्धति बदल लेने से हमारे पूर्वज बदल जायेंगे.राम हिन्दुओं के भी पूर्वज है और मुसलमानों के भी.तो हमारे मुस्लिम भाईओं को भी सामने आना चाहिए और श्रीराम मंदिर निर्माण में सहयोग कर अपना फ़र्ज़ अदा करना चाहिए.
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग कहते हैं-समय बदल चूका है और १९९२ की स्थिति नहीं है.अब हिन्दू समाज वैसा नहीं रहा जो ऐसी प्रतिक्रया दे जो १९९२ में दिया था.उनको लगता है की १९९२ में जो हुआ था वह गलत हुआ था लेकिन मै सभी देशवासिओं से कुछ सवाल पूछना चाहूँगा-
क्या अगर १९९२ की तरह हमारा हिन्दू समाज संगठित रहता तो कोई माँ का लाल आकर अक्षर धाम,काशी और आन्या अनेक धार्मिक जगहों पर अपने गंदे हाथों से खून की होली खेल पाता.
क्या हमारे संसद भवन और जम्मू कश्मीर विधानसभा जैसे लोकतंत्र के मंदिरों में रक्तरंजीत नज़ारे दीखते?
क्या कोई ....मुबई दिल्ली ओर बेंगलोरे की सड़कों को रक्तरंजीत लाशों से पाटता.
नहीं--कभी नहीं
जो विश्राम करता है,विनाश की तरह जाता है.विश्रांति हमारे लिए नहीं है.जब तक भारत माता अपनी अतीत की मर्यादा को पुनः से प्राप्त नहीं कर लेती,जब तक भारत पुनः जगतगुरु की उपाधि की प्राप्त नहीं कर लेता...हमें विश्राम करने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए.
भारत हमारा है.हमने यहाँ जन्म लिया और लाखों साल से हमारे पूर्वज यहाँ रह रहे हैं.इसकी पीड़ा हम समझ सकते हैं,इटली से आयी सोनिया गाँधी या हिब्रेड राहुल गाँधी नहीं.
अतः भारत की भलाई के लिए हमें पुनः जागने की जरुरत है.जागो हिन्दुओं और वे मुस्लमान भी जिनको धर्म से ज्यादा देश प्रिय है...और इस नेक काम में लग जाओ.क्योंकि राष्ट्र धर्म सर्वोपरि है हिन्दू या मुसलमान होना नहीं.जागो...और वन्देमातरम का विरोध करने वाले देश द्रोहिओं को देश से बहार भेजो और काशी,मथुरा और अयोध्या की प्रतिष्टा पुनः स्थापित करो.
वन्देमातरम
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बहुत ही उत्तम कोटि का लेख
ReplyDeleteएक दम खरा सत्य '
आप का बहुत बहुत धन्यवाद
जय हिंदू, जय हिन्दुस्तान!
ReplyDeleteसाधुवाद.
एकदम सत्य..सहमत हूँ।
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