Tuesday, December 14, 2010
कल भारत सोने की चिड़िया होता था
कल भारत सोने की चिड़िया होता था
सारी दुनिया की पलकों पे सोता था
अब दुनिया में दो कौड़ी का नोट है
ये गौरव की परंपरा पर चोट है
हम डंकल के निर्देशों पर नाचे हैं
ये दिल्ली के मुह पर कड़े तमाचे हैं
हम ने अपनी खुद दारी को बेचा है
दिल्ली वाली दम दारी को बेचा है
ओढो और बिचावों आब कंगाली को
केवल सपनो में देखो खुशहाली को
आब दुनिया के आगे ऐसा दर्ज़ा है
पेटों के बच्चों के सर भी कर्जा है
अर्थ व्यवस्था टंगी हुई कंकालों में
सोना गिरवी है लन्दन के तालों में
निर्भरता है अमरीका की झोली में
देश खड़ा है भीख मंगो की टोली में
नकसल वादी चलन हुवा है तो क्या है
सीमावों का हनन हुवा है तो क्या है
कन्या सागर से पर्वत तक शोर है
पुरवा के दामन दामन में खूनी भोर है
हर चौराहे पर हिंसा का मेला है
गोहाटी में अपहर्नो की बेला है
बटवारे के नारे है दीवारों पर
बन्दोकों की नालें है अखबारों पर
इससे भी जायदा होगा आगे आगे
हम ने आंखे मीची है जागे जागे
डर कर घुटने टेके है दरबारों ने
जेलों से कातिल छोडे सरकारों ने
कायरता बैठी सत्ता की सेजो पे
हत्यारे हैं समझौतों की मेजो पे
मै तो चारण हो आंसू को गाता हूँ
अत्याचारो का दर्पण दिखलाता हूँ
मेरी कविता सुन कर कोई मत रोना
देश बचाने आएगा जादू टोना
अभी अभी तो केवल आंख मिचौनी है
इक दिन पूरी संसद बंधक होनी है
हर-हर महादेव
(एक देशभक्त की रचना)
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लहू सर्द हो चुका है..
ReplyDeleteक्रांति ,क्रांति ,क्रांति
ReplyDeleteलानी ही होगी
hum sabko aage aana hoga tabhi ham apne sunahre ateet ko vapas la payenge...sundar kavita ke liye dhanyvad
ReplyDeletePHIR SE KRANTI KA UDGHOSH KARNA HI PADEGA.
ReplyDeleteअब तो जागना ही होगा
ReplyDeleteBahut hi shaandaar aur ankhen kholne vaali post.......Badhaai...
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