भारत-पाक के बीच हुए कारगिल युद्ध में सैकड़ों भारतीय जवानों ने शहीद होकर वीरता की इबारत लिखी थी। इनमें से कई देशभक्तों ने देश की वि़जय में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
ऐसे जवानों में से ही एक जवान भीखाराम मूंढ भी थे। भीखाराम मूंढ राजस्थान के बाड़मेर जिले के रहने वाले थे। इनका जन्म बाड़मेर की परपदरा तहसील के पातासर गांव में 16 जनवरी 1977 को को हुआ था।
सन् 1994 में भीखाराम की शादी भंवरी देवी के साथ हुई। 26 अप्रैल 1995 को भीखाराम का चयन भारतीय सेना में 4 जाट रेजिमेंट में बतौर सिपाही किया गया। भीखाराम मूंढ को युद्ध के समय जम्मू कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में सीमा पर सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। उस समय युद्ध अपने चरम पर चल रहा था। भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों के सैनिक कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे और दोनों देशों की तरफ से कूटनीतिक चालें भी चली जा रहीं थीं।
युद्ध के समय मई 1999 में लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया अपने साथियों के साथ सीमा पर गश्त लगा रहे थे। लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के समूह में भीखाराम मूंढ भी शामिल थे। उसी समय पाकिस्तान के घुसपैठियों ने उनके गश्ती समूह पर हमला कर दिया। भारतीय सैनिकों ने पाक हमले का जमकर मुकाबला किया लेकिन 14 मई 1999 को 6 भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान के गुप्तचर विभाग ने पकड़ लिया। इन सैनिकों पर भारत के लिए पाकिस्तान के खिलाफ जासूसी करने का आरोप लगाया गया। इन सैनिकों में भीखाराम मूंढ भी थे।
पाकिस्तानी सेना द्वारा इन सैनिकों के साथ बड़ा ही अमानवीय तथा बर्बरतापूर्वक व्यवहार किया गया। पाक सैनिकों ने नृशंसतापूर्वक इनके आँख, कान और नाक काट लिए। इसके बाद उन्होंने इस सभी को एक सप्ताह तक कठोर एवं पाशविक यातनाएं दी। इन सबके बावजूद जब वे कुछ भी हासिल कर पाने में नाकाम रहे तो उन्होंने सभी की हत्या कर दी।
भीखाराम मूंढ भी इस हादसे के भुक्तभोगी थे। जब इस घटना के बारे में भारत सरकार और अन्य देशों को पता चला तो अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण पाकिस्तान को इन सैनिकों के शव भारत को सौंपने पड़े। 9 जून सन् 1990 को इन सैनिकों के क्षत-विक्षत शव भारत को प्राप्त हुए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाक के इस कृत्य की कड़ी भर्त्सना और निंदा की गयी थी।
सन् 1994 में भीखाराम की शादी भंवरी देवी के साथ हुई। 26 अप्रैल 1995 को भीखाराम का चयन भारतीय सेना में 4 जाट रेजिमेंट में बतौर सिपाही किया गया। भीखाराम मूंढ को युद्ध के समय जम्मू कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में सीमा पर सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। उस समय युद्ध अपने चरम पर चल रहा था। भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों के सैनिक कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे और दोनों देशों की तरफ से कूटनीतिक चालें भी चली जा रहीं थीं।
युद्ध के समय मई 1999 में लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया अपने साथियों के साथ सीमा पर गश्त लगा रहे थे। लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के समूह में भीखाराम मूंढ भी शामिल थे। उसी समय पाकिस्तान के घुसपैठियों ने उनके गश्ती समूह पर हमला कर दिया। भारतीय सैनिकों ने पाक हमले का जमकर मुकाबला किया लेकिन 14 मई 1999 को 6 भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान के गुप्तचर विभाग ने पकड़ लिया। इन सैनिकों पर भारत के लिए पाकिस्तान के खिलाफ जासूसी करने का आरोप लगाया गया। इन सैनिकों में भीखाराम मूंढ भी थे।
पाकिस्तानी सेना द्वारा इन सैनिकों के साथ बड़ा ही अमानवीय तथा बर्बरतापूर्वक व्यवहार किया गया। पाक सैनिकों ने नृशंसतापूर्वक इनके आँख, कान और नाक काट लिए। इसके बाद उन्होंने इस सभी को एक सप्ताह तक कठोर एवं पाशविक यातनाएं दी। इन सबके बावजूद जब वे कुछ भी हासिल कर पाने में नाकाम रहे तो उन्होंने सभी की हत्या कर दी।
भीखाराम मूंढ भी इस हादसे के भुक्तभोगी थे। जब इस घटना के बारे में भारत सरकार और अन्य देशों को पता चला तो अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण पाकिस्तान को इन सैनिकों के शव भारत को सौंपने पड़े। 9 जून सन् 1990 को इन सैनिकों के क्षत-विक्षत शव भारत को प्राप्त हुए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाक के इस कृत्य की कड़ी भर्त्सना और निंदा की गयी थी।
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