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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Sunday, November 14, 2010

फिर तुम्हारी याद आयी





मेघ ने जब शंख ध्वनि की
चाहुदिशी बिखरा अँधेरा
जगत सारा सुख विह्वल हो
देखता शीतल सबेरा
हंस ने जब हंसिनी से
प्यार से आँखे मिलायी
फिर तुम्हारी याद आयी

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थिरकते जलकणों ने जब
प्रणय कर ली बादलों से
झूमते तरुओं ने भी जब
गीत गाये जंगलों से
प्रिय मिलन की आश में जब
मोरनी ने पर हिलायी
फिर तुम्हारी याद आयी

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रात के घनघोर में जब
जगत सारा सो गया था
भूल सरे झंझटों को
स्वप्रियम में खो गया था
बदलते करवटों में जब
आँख ने नींदे चुरायी
फिर तुम्हारी याद आयी

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ग्रीष्म की वह त्रीक्ष्ण दुपहर
आग नभ से टपकता है
जल बिना बेचैन जलचर
हर तरफ ही बिचरता है
प्यास से व्याकुल हुए जब
पपीहे ने बोल लगायी
फिर तुम्हारी याद आयी
हर तरफ ही बिचरता है

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माघ-फागुन का महीना
हर तरफ विंदास जीना
रजत मंजरिओं से लड़ गाये
आम्र तरु की हर टहनियां
काम से व्याकुल हुए जब
कोयल ने कूकें लगायी
फिर तुम्हारी याद आयी


-राहुल पंडित






4 comments:

  1. Really very romantic and meaningful poem. Picture also is very nice. Congrats.

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  2. सुन्दर कविता के लिए धन्यवाद

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  3. राहुल जी कहते है आह से कवि बनता है .
    और जितनी अच्छी कविताये आप लिख रहे है उस से तो यही लगता है की आप को भी किसी ने आह दी है .
    आप ऐसी ही कविताये लिखते रहे ,यही मेरी शुभकामना है

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