Monday, November 1, 2010
मेरी भारत माँ कि पीडाएं है मेरे गीतों में
शब्द अगर हैं ब्रह्म तो कवि उसका आराधक है
कविता अगर तपस्या है तो कवि ही उसका साधक है
कलम छोड़ कर कभी कवि को भाया ना कोई दूजा है
मेरी कविता मेरी देवी यही लेखनी पूजा है
ये लिखती है ठुमक ठुमक कर चलते हुवे कन्हिया पे
शबरी के जूठे बेरो पर और केवट की नैया पर
ये लिखती है गौरव गाथा झाँसी वाली रानी की
पन्ना का बलिदान लिखा और हिम्मत वाली रानी की
ये फटकार बिहारी के हाथो जयसिंह को लगवाती
अंधे पृथिवी राज के हाथो गौरी का वध करवाती
बस कविता के नाम पे हम ने काम ये कैसा कर डाला
नाम लिया कविता का उसमे जाने क्या क्या भर डाला
तुलसी लिखते मेरे राम पर हम सुखराम पे लिख बैठे
सूर दास को श्याम मिले हम कांशी राम पे लिख बैठे
कभी लिखा माँ अनसुइया सावित्री जैसी सतियों पर
अब लिखते है जय ललिता ममता और मायावतियों पर
ऐसा नहीं कि मुझे लुभाता जुल्फों का साया ना था
उसकी झील सी आँखों में खो जाने का मन करता था
मुझको भी कोयल कि कू कु बहुत ही प्यारी लगती थी
रूं झुन रूं झुन रूं झुन सी बरसते अच्छी लगती थी
मेरा भी प्रेयस पर गीत सुनाने का मन करता था
उसको गोद में सर रख कर सो जाने का मन करता था
तब मैंने भी बिंदिया काजल और कंगन के गीत लिखे
यौवन के मद में मदमाते आलिंगन के गीत लिखे
जिस दिन से क्षत विक्षत भारत माता का वेश दिखा
जिसे अखंड कहा हम ने जब खंड खंड वो देश दिखा
मै ना लिख पाया कजरारे तेज दुधारे लिख बैठा
छूट गयी श्रींगार कि भाषा मै अंगारे लिख बैठा
अब उन अंगारों कि भाषाएँ है मेरे गीतों में
मेरी भारत माँ कि पीडाएं है मेरे गीतों में
अमृत पुत्रो के अंदर लगता है कोई जान नहीं
रना और शिवा को अपने बल गौरव का ज्ञान नहीं
आज राम की तुलना बाबर से सेकुलर करते हैं
माँ दुर्गा की धरती पे महिसासुर खुले विचरते हैं
(( एक भारत माता के सच्चे बेटे की रचना ))
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सत्य को कविता में उकेर दिया..
ReplyDeleteआज राम की तुलना बाबर से सेकुलर करते हैं
ReplyDeleteमाँ दुर्गा की धरती पे महिसासुर खुले विचरते हैं
भई... वाह... क्या शानदार लिखा है .
हम तो आपकी लेखिनी के कायल हो गए दोस्त.
और हाँ ....आपका जो ये भारत माता के प्रति प्यार है .
काश ..अगर ऐसा ही प्यार सभी हिंदुस्तानियों के दिलों में आ जाएतो मज़ा आ जाए . आपको दीपावली की शुभकामनाएँ तथा साथ ही
इस उम्दा रचना पर आपको हार्दिक बधाई .