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अगरहो प्यार के मौसम तो हमभी प्यार लिखेगें,खनकतीरेशमी पाजेबकी झंकारलिखेंगे

मगर जब खून से खेले मजहबीताकतें तब हम,पिलाकर लेखनीको खून हम अंगारलिखेगें

Tuesday, February 9, 2010

हम पथिक कंटीली राहों के

हम पथिक कंटीली राहों के,फूलों पर चलना क्या जाने?
जिसने अरुणोदय देखे हो,संध्या का ढलना क्या जाने?
हम देश प्रेम के मतवाले, भिड़ते हैं तरल तरंगो से,
गौरव मद अविरल टपक रहा,जीवन के अंग प्रयत्नों से.
जिसने सूरभोग पिलाए हो वह जहर उगलना क्या जाने?
हम पथिक.................................................
हम लहराने ही आये हैं,जग में भगवा लहरायेंगे,
जीवन की आहुति देकर भी,वेदों के मंत्र सुनायेंगे.
जो स्वयं प्रीटी पथ अनुयायी,इर्ष्या में जलना क्या जाने?
हम..................................................
हम शिवी दाधीच के वंसज हैं,परहित में मिटने जाते हैं,
ले मधुर प्रीति की अभिलाषा,बम बम का अलख जागते हैं.
जो हरदम ही मुस्काएं हो,घुट घुट कर जीना क्या जाने?
हम..................................................
-राहुल पंडित

1 comment:

  1. वाह !!! मुग्ध कर लिया आपकी इस सुन्दर गीत ने...
    बहुत ही सुन्दर प्रवाहमयी सार्थक रचना...

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